मन की स्वतंत्रता
तन का मन से बहुत गहरा और अन्योनाश्रित संबंध है। कहते हैं,मन स्वस्थ , सुंदर और स्वतंत्र तो तन भी स्वस्थ, सुंदर और स्वतंत्र रहेगा, इसमें थोड़ा भी संसय नहीं करना चाहिए।आप देखिएगा, बड़े बड़े जानलेवा और घातक बीमारियों से मनुष्य तब बचा रहता है जब तक उसे बीमारी का पता नहीं चलता, लेकिन जैसे ही उसे यह अहसास हो जाता है कि उसे तो बड़ी भयंकर और घातक बीमारी ने धर दबोचा है तो उसे बचाना बड़े बड़े चिकित्सक के लिए भी कठिन हो जाता है। तात्पर्य बिल्कुल साफ है,मन सुदृढ़ और सही तो तन भी ठीक। इसीलिए विद्वानों ने तन की पराधीनता से अधिक खतरनाक मन की पराधीनता को माना है। मनुष्य मन से परतंत्र रहेगा तो वह स्वतंत्रता की बात भी सोच नहीं सकेगा।इस तरह वह युगों युगों तक, पीढ़ी दर पीढ़ी गुलामी की इन जंजीरों में जकड़ा हुआ रहेगा। इस संदर्भ में एक बड़ी रोचक कहानी याद आ रही हैं। एक सांप और मेंढक में बहस छिड़ गई। मैं तो मैं। मेंढक ने कहा, तुम्हारे बिष से नहीं,वल्कि तुम्हारे बिष के भय से लोग मर जाते हैं। सांप मेंढक की इस बात को मानने को तैयार नहीं था। उधर से एक आदमी आ रहा था, हाथ कंगन को आरसी क्या, हुआ कि आजमा लिया जाए।तय हुआ कि मेंढक काटेगा और सांप वहां सिर्फ़ दिखाई देगा। काटा मेंढक, लेकिन आदमी को लगा कि उसे बड़ा बिषैला सांप ने डस लिया, नतीजा,डेथ। कहने का तात्पर्य है कि मन जैसा,तन वैसा। इसीलिए मन की स्वतंत्रता और स्वस्थता पर सदैव ध्यान रखना चाहिए।
Blog banae hai sir
जवाब देंहटाएंYes
हटाएंAachi baatein me kuch aaya nahi
जवाब देंहटाएंComming soon
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