एकादश(11th) Hindi, मियां नसीरुद्दीन,Miyan Nasiruddin, लेखिका-कृष्णा सोबती www.bimalhindi.in(Krishna Sobati)
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Krishna Sobti
मियां नसीरुद्दीन, 11वीं हिन्दी, सारांश, प्रश्न उत्तर, नानबाई। लेखिका -कृष्ण सोबती
कृष्णा सोबती आधुनिक हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध गद्य लेखिका हैं । इस कक्षा 11 का पाठ "मियाँ नसीरुद्दीन" उनकी प्रसिद्ध पुस्तक "हम हसमत" नामक संग्रह से लिया गया है। यहाँ हमने लेखिका के जीवन के कुछ पहलुओं को दर्शाते हुए पाठ के मुख्य अंश को प्रस्तुत किया है और महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
मियां नसीरुद्दीन पाठ की लेखिका कृष्णा सोबती का जन्म सन् 1925 में गुजरात के पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई बेहतरीन उपन्यास, कहानी संग्रह, शब्द चित्र और संस्मरण प्रदान की है। उनकी प्रमुख रचनाओं में जीवननामा, दिलो दानिश, ऐ लड़की, समय सरगम, डार से बिछड़ी, मित्रो मरजानी, बादलो के घेरे, सूरजमुखी अंधेरे के, हम हसमत, शब्दों के आलोक में आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी साहित्य का शलाका सम्मान और के अध्यक्ष पद से सम्मानित किया गया है।
मियां नसीरुद्दीन पाठ का सारांश
मियां नसीरुद्दीन "एक ऐसा शब्द चित्र है जिसमें एक खानदानी नान बाई मियां नसरुद्दीन के व्यक्तित्व उनकी रूचियों, स्वभाव और अपने पेशे के प्रति उनकी निष्ठा और ईमानदारी को बड़ी रोचक ढ़ंग से दर्शाया गया है।
एक दिन लेखिका जामा मस्जिद के आसपास पुराने गढ़ैया मोहल्ले से गुजर रही थी कि उन्होंने देखा कि एक साधारण सी दुकान में बहुत सा आटा साना जा रहा है। पूछने पर पता चला की यह प्रसिद्ध नान बाई मियां नसीरुद्दीन के नान की दुकान है। वे कुछ बातचीत करने और उनके स्वभाव और बीते जीवन के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। लेखिका ने देखा कि मियां अपने कारवाही में पूरी तरह से व्यस्त है। उन्होंने बड़ी लगन और मेहनत से इस हुनर को अपने वालिद और दादा से सीखा है। उनके वालिद मियां बरकत शाही" गढ़ैया वाले नानबाई" के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकेे दादा साहिब मियां कल्लन भी बहुत ऊंचे दर्जे के नानबाई थे। मियां नसीरुद्दीन ने अपने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि यह रोटी बनाने का खाश हुनर उन्होंने अपने वालिद साहब की खिदमत में रहकर सीखा था। वे अपने शागिर्द और स्टाफ को भी पूरी लगन और कड़ाई से काम करने का संदेश देते हैं। उनका कहना था कि हुनर ऐसे ही बाजार में नहीं बिकती इसके लिए कड़ी मेहनत और संयम से काम लेना पड़ता है। जैसे पढ़ाई में 'अलिफ' से शुरू होकर आगे बढ़ा जाता है या फिर कच्ची पक्की से ऊंची जामातो में पहुंच जाता है, वैसे ही हुनर सीखने के लिए उससे जुड़े हुए छोटे से छोटे काम स्वयं करने होते हैं। छोटे काम से फिर बड़े काम की ओर बढ़ा जाता है।
मियां नसीरुद्दीन ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि उन्होंने भट्टी बनाने , भट्टी में आंच देने और बर्तन धोने से तक छोटे छोटे काम अपने हाथ से करके रोटी बनाने का इल्म सीखा था। दुकान पर भी वे सीधे आकर नहीं जम बैठे थे । दुकानदारी और गाहकी का सीधा अनुभव पाने के लिए उन्होंने मुद्दत तक खोमचा भी लगाया था।
खानदान की बात आते ही मियां नसीरुद्दीन के चेहरे पर बड़प्पन की एक चमक आ जाती है। उनकी छाती गर्व से फूल उठती है । मियां खानदान की बात किसी भी सूरत में नीचे नहीं रहने देते । उन्होंने गर्व से लेखिका को बताया कि उनके बुजुर्ग बादशाह सलामत के खास नान बाई रहे हैं। बादशाह सलामत के कहने पर उन बुजुर्गों ने ऐसी चीज बना कर दिखलाई थी जो ना आग में पकती है ना उसमें पानी लगता है। बादशाह सलामत का नाम या फिर उस खास चीज का नाम मियां नसरुद्दीन सभी को बताना जरूरी नहीं समझते । शायद उन्हें खुद भी पता नहीं, लेकिन अपनी शान को ऊपर रखने के लिए वह अपने खानदान पर घटती हुई एक कहावत कहते हैं खानदानी नान बाई कुएं में भी रोटी पका सकता है।
लेखिका ने भट्ठी पर पकने वाली रोटियों की किस्म जानने की इच्छा प्रकट की, इस पर एक अजीब सी खीज उनके चेहरे पर उभर आई। कुछ तुनक कर उन्होंने चंद रोटियों के नाम फटाफट गिना डालें। तूनकी रोटी की तारीख में उन्होंने कहा कि वह पापड़ से भी महीन होती है लेकिन कहते कहते वे पिछले जमाने की यादों में डूब गए। उनका दर्द सच्चा था। पहले के समान खाने पकाने का ना अब शौक है और ना चीजों की कद्र है आज के जमाने में भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। क्या बनाएं ? क्या खिलाए ?
उन्हें अफसोस है कि आज के जमाने में कला की कोई भी सम्मान और रिटर्न नहीं रह गया है।
मीराबाई के पद" कविता भी पढ़ें) click here
मियां नसीरुद्दीन पाठ का प्रश्नोतर
प्रश्न १। मियाँ नसीरुद्दीन को नानीबाई का मसीहा क्यों कहाँ गया है?
उत्तर-मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी नान बाई थे। उनके दादा मियां कल्लन बादशाह के यहाँ अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे थे। मियां नसीरुद्दीन को 56 प्रकार की रोटियां बनाने का हुनर था। वे पापड़ से भी महीन रोटियां बनाने की कला जानते थे। इसलिए उन्हें नान बाई का मसीहा कहना बिल्कुल सही है।
प्रश्न 2 - लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थी?
उत्तर - जब लेखिका उनकी दुकान के पास से गुजर रही थी तो उन्होंने देखा की एक छोटी से दुकान के पास कई मन आटा साना हो रहा है। पूछने पर पता चला की यह प्रसिद्ध नान बाई मियां नसीरुद्दीन का दुकान है। लेखिका के मन में उनकी कला व्यक्तित्व और सोच के बारे में जानने की इच्छा हुई। वह मियां के स्वभाव, खानदान और व्यवसाय के प्रति निष्ठा को उनके प्रमुख से सुनकर प्रकाशित करना चाहता था। इसलिए उनके पास गया।
प्रश्न ३.---बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियां नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तर--बादशाह के नाम का प्रश्न आते हैं मियां नसीरुद्दीन की रुचि लेखिका की बातों में इसलिए कम होने लगी की बादशाह वाले प्रसंग की प्रमाणिक जानकारी उनके पास नहीं होगी । वे सुनी सुनाई बातों के आधार पर यह कह दिए की उनके दादा कल्लन मियां बादशाह को भी अपने हुनर का लोहा मनवा चुके थे।
प्रश्न ४.----- मियां नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दवे हुए अंधड़ का आसार देख यह मजमून ना छेड़ने का फैसला किया---इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर---मियां नसीरुद्दीन पत्रकारों को एकदम बेकार बिना काम का समझते थे और स्वयं को बहुत कामकाजी आदमी मानते थे। इसलिए वे लेखिका की बातों में बेरुखी दिखला रहे थे। उनकी बातों से स्पष्ट हो रहा था की वह लेखिका को वहां से हटाना चाह रहे थे। एक बार तो उनकी बात को बीच में ही काटकर अपने कारीगर को बोले भी__मियां भट्ठी सुलगा दो तो काम से निपट ले। लेखिका उनके बेटे बेटियों के बारे में भी पूछना चाह रहे थे लेकिन उन्होंने मियां नसरुद्दीन के चेहरे पर आए तनाव को स्पष्ट पढ़ लिया था इसलिए उन्होंने इस सवाल को डाल दिया।ं
प्रश्न ५.-- पाठ में मियां नसीरुद्दीन का शब्द चित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?
उत्तर---पाठ में लेखिका ने मियां नसीरुद्दीन का शब्द चित्र इस प्रकार खींचा है--हमने जो अंदर झांका तो पाया मिया चारपाई पर बैठे बीड़ी का मजा ले रहे हैं। मौसम की मार से पका चेहरा आंखों में काइयां भोलापन और पेशानी पर मज़े हुए कारीगर के तेवर।
अतिरिक्त प्रश्न- उत्तर। ******************
प्रश्न---मियां को किस बात का अफसोस है?
उत्तर---मियां नसीरुद्दीन सचमुच बहुत अच्छे प्रतिभाशाली कलाकार थे। वह 56 प्रकार की रोटियां बनाने में माहिर थे परंतु उन्हें अफसोस इस बात का है कि आजकल लोग रोटी बनाने की कला की कद्र नहीं करते ।
प्रश्न---पाठ में पंच हजारी अदांज से क्या आशय है?
उत्तर --- पंच हजारी अंदाज का आशय बड़ी सेनापतियों सा अंदाज । मुगलो के जमाने में 5000 की सेना के अधिकारी और नायक पंच हजारी कहलाते थे। इनकी टाट बाट और बोलचाल मैं अकड़ होती थी। मियाँ नसीरुद्दीन की बोलचाल और थाट बाट मैं वैसा ही आत्मविश्वास और शान था। (मन का साँची चूड़धार)
प्रश्न -- मियां नसीरुद्दीन की कौन सी बात आपको अच्छी लगी ?
उत्तर -- मियां नसीरुद्दीन की ये बातें हमें अच्छी लगी ------- * उनके आत्मविश्वास हमें अच्छा लगा। वे आत्मविश्वास से लबरेज है। वे जो कुछ भी कहते हैं, परे आत्मविश्वास से कहते हैं।
* वे कर्मवीर हैं अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। वे घबराते नहीं है।
* वे अपने शागिर्दों का भी सम्मान करते हैं। उन्हें इमानदारी से काम सिखाते हैं।
प्रश्न -- मियां नसीरुद्दीन का रहन सहन एक दम साधारण है , प्रमाणित कीजिए।
उत्तर -- मियां नसीरुद्दीन का रहन सहन एवं बाहरी रूप एकदम साधारण है। उनके रहन-सहन एवं वेशभूषा देखकर नहीं लगता कि वे ऐसे महान व्यक्ति हैं। उनकी दुकान भी मामूली है।
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लेखक
डॉ. उमेश कुमार सिंह,
भूली नगर, धनबाद, झारखंड, भारत
email address
kumarsinghumesh277@gmail.com
Useful post.
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंThanks to all
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