अनंत पूजा,Anant Puja, पूजन विधि, महत्त्व।
श्री अनंत पूजा भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी (चौदहवीं) को संपूर्ण विधि विधान से मनाया जाता है। इस व्रत के करने वाले भगवान विष्णु की पूजा पूरी भक्त्ति भावना से करते हैं तथा मनोवांछित फल प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाते हैं। भगवान विष्णु इस जगत के पालनहार है।
द्वापर युग (महाभारत काल) में पाडंव अपना सारा वैभव और सुख-शांति जुए में हार कर निश्तेज हो गये और जब उन्हें कुछ भी मार्ग दिखाई नहीं देता था।तब श्री कृष्ण ने उन्हें पूरे विधि-विधान से भगवान अनन्त का व्रत और पूजन करने की सलाह दी थी।पाडंव अनंत भगवान का पूजन कर फिर से अपना खोया साम्राज्य और वैभव प्राप्त करने में सफल हो गए थे। तभी से यह व्रत करने की परंपरा भारत सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में चलने लगी।(गणेश जी की पूजा भी पढ़ें)
पूजन विधि एवं सामग्री----
केला, गुड़,हल्दी, कच्चे धागे,दूध, दही,घी,मधु,फल,गाय का गोबर,अथवा चावल,आटा, अनंत बंधन धागा।
व्रत करने वाले उपवास रखते हैं। केला के पते पर श्रीविष्णु का आसन बनते हैं। पंडित पुरोहित को बुलाकर अनंत भगवान का पूजन करते हुए कथा सुनते हैं।सूती धागे में चौदह गांठ लगाकर पुरुष दाये बांह तथा स्त्री बांये बांह में बांधकर वर्ष भर भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।कहा जाता है कि इससे चौदहो भुवन(लोक) का सुख प्राप्त होता है।घर में खीर, पकवान बनाए जाते हैं। ब्राह्मण भोजन कराया जाता है।तब प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसी दिन श्री गणेश मूर्ति विसर्जन का भी विधान है।
Jai Anant deo
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