श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (गोकुल धाम में) Gokul me Shree Krishna janmotsav

Shree Krishna janmotsav Gokul dham me श्री कृष्ण जन्मोत्सव गोकुल धाम में


गोकुल में श्री जन्मोत्सव

 नन्दस्त्वात्मज उत्पन्नेजाताह्लदो महा।                             आह्यविप्रान वेदज्ञान सरनाम: शुचिरलंकृत:।।                  

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में मध्य रात्रि को हुआ। सारे पहरेदार सैनिक सो गए। वासुदेव जी की बेड़ियां अपने आप खुल गई। वे नवजात शिशु को लेकर यमुना पार गोकुल गांव में अपने मित्र संबंधी नंदलाल जी की पत्नी यशोदा के पास छोड़ आए। यह सभी निद्रा अवस्था में थे। किसी को भी भगवती योग माया की इस लीला का जरा भी ज्ञान नहीं हुआ।                                                                          प्रातः होने पर नंद के घर पुत्र जन्म की बधाइयां का ताता लग गया। यशोदा जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है यह सुनकर गोपियों को भी बड़ा आनंद हुआ। उन्होंने सुंदर सुंदर वस्त्र आभूषण धारण कर यशोदा जी को बधाइयां देने जाने लगी। उनके मुख मंडल पर अद्भुत आनंद की शोभा चमक रही थी। उनके सिंगार और केशु में गुथे फूलों के पराग से मार्ग में एक अद्भुत सुगंधी का संचार हो रहा था। नंद जी इस सुंदर अवसर पर बड़े प्रसन्न थे। उन्होंने सुयोग्य ब्राह्मणों को बुलाकर अपने पुत्र का जात कर्म संस्कार करवाया तथा उन्हें आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित दो लाख गाये और तिल के सात पहाड़ दान की। चारों ओर उत्साह और आनंद का वातावरण था। 

गोपियां सुंदर -सुंदर सुरीली गीत गा रही थी। गांव के ग्वाले सुंदर सुंदर रंग-बिरंगे वस्त्र और पगड़ी पहने नाच गान में मद मस्त थे। भगवान    श्री कृष्ण समस्त जगत के एक मात्र स्वामी हैं। उनके ऐश्वर्य, माधुर्य, वात्सल्य    -सभी अनंत हैं। जब वे नंद बाबा के वृज में अवतार लिए तो उस समय उनके जन्म का महान उत्सव मनाया गया। बड़े- बड़े मंगल बाजे बजे। आनंद से मतवाले होकर गोप गण एक दूसरे पर दही दूध ,घी और पानी उरेलेने लगे। एक दूसरे के मुख पर मक्खन मलने लगे और मक्खन फेंक कर आनंद उत्सव मनाने लगे। नंद बाबा भी उन्हें भरपूर उपहार दिए। यह परंपरा आज भी यथावत चलती आ रही है। गोकुल धाम में श्री कृष्ण जन्म उत्सव का वह दृश्य आज भी देखा जा सकता है।


                                    पूतना वध                                                             -------------------------         

 पूतना एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। वह अहीरों की बस्तियों में घूम घूम कर छोटे-छोटे शिशु को मारने का जघन्य काम करती थी।                                               कंस की प्रेरणा से वह एक दिन नंद बाबा के गोकुल में गई। उस दिन श्री कृष्ण का छठी था। उसने अपनी माया से खूब सुंदर स्त्री का रूप बनाया। उसने सुंदर वस्त्र धारण किए थे। चोटियों में सुगंधित फूल गुथे थे। उसके कानों में सुंदर सुंदर कर्णफूल लटकते हुए उसके सुंदर मुख को चूम रहे थे। वह किसी अप्सरा की तरह अपने सुंदर चितवन से ब्रिज वासियों का चित चुरा रही थी। वह अपने सुंदर हाथों में कमल पुष्प लिए ऐसे चली आ रही थी मानव किसी को लक्ष्मी का दान देने जा रही हो। सभी गोपियां भी उसे देखकर मंत्र मुक्त सी हो गई थी। यहां तक की माता यशोदा भी उससे मोहित होकर शिशु श्री कृष्ण के पास जाने की अनुमति दे दी। वह उनके घर में घुसकर पालने तक जा पहुंची और शिशु कृष्ण को झट से अपने गोद में उठाकर अपना स्तन पान कराने लगी। वह श्री कृष्ण को मारने के लिए अपने स्तन पर काल कूट विष का लेप लगाकर आई थी ।                                       भगवान उसे देख कर सब समझ गए। उन्होंने अपनी आंखें मुद ली मानो उस दुष्ट आत्मा को देखना नहीं चाहते थे। भगवान दोनों हाथों से उसके दोनों स्तनों को दबाकर उसका दुग्ध पान करने लगे। पूतना दर्द से छटपटा ने लगी। असहनीय दर्द के कारण वह अपना राक्षसी रूप में आ गई । वह हाथ पैर पटक पटक कर छटपटा ने लगी और अब छोड़ दे, अब छोड़ दे चिल्लाने लगी। परंतु दुष्टो को भगवान भला कब छोड़ने वाले थे। वे जैसे पूतना के वक्ष पर क्रीड़ा करते हुए मन ही मन कह रहे थे---"मैं दूध मुंहा शिशु हूं, स्तन पान मेरी जीविका है। तुमने स्वयं ही अपना स्तन मेरे मुंह में डाला है। इसमें तुम मर जाती हो तो इसमें मेरा क्या अपराध है।"  

                                    वास्तव मैं पिछले जन्म में पूतना दानवराज बलि की पुत्री रत्न माला थी। यज्ञशाला में भगवान बामन को देखकर उसके हृदय में पुत्र स्नेह का भाव उदय हो आया। वह मन ही मन अभिलाषा करने लगी की यदि मुझे ऐसा बालक हो और मैं उसे स्तन पान कराऊ तो मुझे बड़ी खुशी होगी । भगवान सच्चे ह्रदय से मांगी गई अभिलाषा की अवश्य पूर्ति करते हैं इसलिए द्वापर में वही पूतना बनकर श्री कृष्ण का स्पर्श प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त की।



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Recommended Post

Bade Ghar ki Beti , story, बड़े घर की बेटी, कहानी , प्रेमचंद

फूल और कांटा (Phul aur Kanta) poem

1.संपादन ( sampadan) 2. संपादन का अर्थ एवं परिभाषा तथा कार्य 3.संपादन के सिद्धांत

चेतक ( कविता ) Chetak horse

बच्चे काम पर जा रहे हैं , कविता, कवि राजेश जोशी, भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर, राजेश जोशी का जीवन परिचय, Bachche kam pr ja rhe hai poem, 9th class hindi