घर की याद,(Ghar ki yaad)Bhawani Prasad Mishra.परिचय 11th hindi,
घर की याद कविता Ghar ki yaad
Poet - Bhawani Prasad Mishra
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घर की याद कविता का भावार्थ, कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जीवन परिचय और प्रश्नोत्तर।आज पानी गिर रहा है , कविता का मूल भाव********घर की याद कविता सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और कवि भवानी प्रसाद मिश्र की रचित प्रसिद्ध कविता है जिसे कवि ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जेल में रहकर लिखा था। यह कविता ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ाई जाती है। यहां घर की याद कविता , भावार्थ और प्रश्नोत्तरी सरल भाषा में दिया गया है जिसमें विद्यार्थियों को समझने में आसानी हो।--------------------------------- ---------- कवि परिचय (भवानी प्रसाद मिश्र): भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म सन् 1913 और मृत्यु सन् 1985 में हुआ था। मध्य प्रदेश का होशंगाबाद जिला साहित्य कार जननी जिला है। वहीं टिगरिया गांव में इनका जन्म हुआ था। प्रमुख रचनाएँ ----- सतपुड़ा के जंगल, सन्नाटा, गीत फरोश, चकित हैं दुःख, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम आप आते हो, इदं न मम् आदि। सम्मान ------ साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन का योग सम्मान, दिल्ली प्रशासन का गालिब पुरस्कार और पद्मश्री। कविता और साहित्य के साथ साथ राष्टीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले महान नेताओं की श्रेणी में भवानी प्रसाद मिश्र का नाम प्रमुखता से लिया गया है। उन्हें कविता का गांधी भी कहा जाता है।गांधी वाद पर इनकी गहरी आस्था थी।इनकी कविता सहज और सरल और आम जन के अनुरूप है। कविता का भाव
भारतीय इतिहास में 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के नाम से जाना जाता है। कवि महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लेने के कारण कारावास में बंद है। उसे अपने घर की याद आ रही हैं। बरसात का मौसम है। रिमझिम रिमझिम वर्षा हो रही है। उसका मन घर की यादों में खो गया है। घर में चार भाई और चार बहने हैं। वे सबसे छोटे हैं। सभी रिश्ते बहुत प्यार करते हैं। (मियाँ नसीरुद्दीन पाठ भी देखें) कवि की माँ ममता की मूरत है। उनकी ममता की धारा उन्हें कारावास में भी मूर्त कर देती है। कवि के पिता चिर युवा है। उनकी उम्र अधिक हो गई है फिर वे भी करते हैं। वे खुलकर हंसते हैं और साहस का जीवन जीते हैं। इसलिए उन्हें सोने पर सुहागा कहते हैं।भवानी उन्हें सबसे प्रिय है।यहाँ कवि यह कल्पना करते हैं कि उनके पिताजी साहसी हैं और धैर्यवान तो हैं लेकिन उनमें उनके बीच नहीं पाकर रो पड़े होंगे। कवि की माताजी भी बड़ी साहसी और हिम्मती महिला हैं। ऐसी स्थिति में वे अपने पति को समझाती हैं की अगर आप ही रो पड़ेंगे तो अन्य बच्चे भी रो पड़ेंगे। भवानी आप ही के पद चिन्ह पर चलकर कारावास गया होगा। यदि वह देश भक्ति के इस महान कार्य में पाव खींच लेता है तो क्या वह मेरे दूध को नहीं लजाता है।
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सावन का महीना है। कवि बादल को संदेशवाहक बनाते हुए कहते हैं कि आप मेरे पिताजी के पास जाते हैं, लेकिन उन्हें यह बताना नहीं है कि भवानी दुखी है। कवि कहता है कि उन्हें यह बताना कि मैं जेल में मस्ती का जीवन जिता रहा हूं। खूब खाता हूं और ऐश करता हूं। खेलता हूं और मस्त रहता हूं। सावधान रहना कहीं यह न बता देना की भवानी बहुत उदास है और बेचैन है।
शब्दार्थ ------ प्राण मन घिरना - प्राणो और मन में छा जाना। तिरना - तैरना.पुर - भंडार, बाढ़। गढी - धसी, स्नेह धारा - प्रेम की भावना, पसारा - फैलाव, बोल - वाणी, झंझा --- हेरती, दंड - दंड बैठक, मुकदर - भारी करने का एक उपकरण, क्षण - पल, पूर्वा --फैला हुआ, सोने पे सुहागा - बहुत अच्छा होना! हेटे-छोटा। लीक-परम्परा, पांव पीछे हटाना - कर्म मार्ग से पीछे हटना। कोख को लजाना - मां को ललित करना।पुण्य पावन - अति पवित्र। (www.bimalhindi.in/ Man ki sachchi sawtantrata)
सप्रसंग व्याख्या करें -
हे सजीले हरे सावन
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पांचवें को वे न तरसें।
प्रसंग--प्रस्तुत पद्याशं कवि भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित "कविता घर की याद' से ली गई है।कवि स्वतंत्रता सेनानी है और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कारागार में बंद हैं। बरसात का मौसम है, वहां उन्हें अपने घर के सदस्यों की याद आ रही है।वह अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते और बादल को अपना संदेश वाहक बनाकर कहते हैं------
हे हरे भरे मनभावन सावन! तुम जल बरसाकर सभी का उपकार करते हो। तुम पवित्र और पुण्यात्मा हो, खूब बरसों,जगत का कल्याण करो, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें बरसता देख अपने पांचवें पुत्र की याद में पिता जी की आंखें बरसने लगे। इसलिए तुम इस तरह बरसना कि उन्हें मेरी याद न आए।
*कवि की भाषा बातचीत के समान सरल, सहज और प्रवाह पूर्ण है। * छोटे-छोटे वाक्य और तुको के सहारे कविता मनमोहक लगती है। * संबोधन शैली के कारण कविता मैं सौंदर्य आ गया है। ़ * पुण्य पावन मैं अनुप्रास अलंकार है। *कवि सावन को दूत बनाकर पुरानी काव्य परंपरा का निर्वाह किया है। मेघदूत में भी महाकवि कालिदास ने बादल को अपना संदेशवाहक बनाया था।
सप्रसंग व्याख्या करें--
मैं मज़े में हूं सही है घर नहीं हूं बस यही है, किन्तु यह बस बड़ा बस है, इसी बस से सब विरस है।
Very nice
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