Bhai Bhai Ka Prem (भाई- भाई का प्रेम)
संसार में भाई-भाई का प्रेम अनमोल और अनुपम है। संसार में सब कुछ खो कर पुनः पाया जा सकता है, परन्तु भाई को खोकर दुबारा पाना नामुमकिन है। रामायण हो या महाभारत अथवा विश्व का कोई अन्य महाकाव्य, या विश्व का कोई भी भाग, भाई - भाई के बीच प्यार को संसार की अमूल्य निधि माना गया है। परन्तु आधुनिक युग में इस अनमोल प्रेम के बीच कई कारणों से दरार और दूरियां भी देखी जा रही है।
श्रीराम -भरत मिलाप राा
दोस्तों! भारत में कहीं भी जाइए, जब भातृ - प्रेम की बात आती है तो राम चरित मानस की यह पंक्तियां मुख से अनायास ही निकल आती है- सुत वित्तनारि भवन परिवारा।होहि जाहि जंग बारहिबारा। अस विचार जियंजागहु ताता।मिलेन जगत सहोदर भ्राता। पुत्र,धन,स्त्री, घर और परिवार-- ये सभी जगत में मिलते और बिछुडते है, परन्तु इस संसार में सहोदर भाई बार - बार नहीं मिला करते। यह प्रसंग तब का है,जब लंका में रावण- पुत्र मेघनाद के द्वारा लक्ष्मण को शक्ति लगी थी।अमोघ शक्ति के कारण लक्ष्मण मुर्छित होकर धरती पर पड़े थे और श्रीराम विवश होकर विलाप कर रहे थे।यह भातृ प्रेम की पराकाष्ठा है।
राम चरित मानस में ही चित्रकूट में श्रीराम- भरत मिलाप का प्रसंग याद करिए। माता- पिता की आज्ञा से श्रीराम वन में आ गए हैं।भरत उन्हें वापस ले जाने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुए हैं। भरत नाना प्रकार के तर्कों के साथ बड़े भाई श्रीराम को अयोध्या वापस लौट चलने का आग्रह करते हैं। परन्तु,जब वे अपने बड़े भाई श्रीराम को वापस लाने में असमर्थ हो जाते हैं तब थक हारकर श्रीराम का चरण पादुका ही लेकर वापस लौट जाते हैं। इतना ही नहीं,भरत भी बड़े भाई श्रीराम की तरह राजधानी से दूर नंदीग्राम में कुटिया बनाकर संन्यासी जीवन व्यतीत करते हैं।उनका मानना है कि जब बड़ा भाई वन का कष्ट झेल रहे हों तो छोटा राजमहल में कैसे रह सकता है।यह है भाई भाई के बीच प्रेम का आदर्श। और आज--?
श्रीराम सुग्रीव से पूछते हैं--हे मित्र ! मैं तो अपने पिता की आज्ञा से वन में भटक रहा हूं, परन्तु तुम किस कारण से इस एकांत निर्जन पर्वत पर रहते हो। सुग्रीव कहते हैं, भाई के डर से। राम सुनकर आश्चर्य चकित हो जाते हैं।भाई के डर से ! सुग्रीव बताते हैं, इस सब के मूल में सत्ता, राज़,धन- दौलत है,जो भाई को भाई का जानी दुश्मन बना देता है।
भाई - भाई के बीच दुश्मनी का कारण
जोरू,जन,जमीन। मतलब,पत्नी,बच्चे,धन - दौलत। यह बहुत पुराना मत है कि पत्नी और बच्चे भाई- भाई के बीच दूरी लाने का सबसे बड़ा कारण है। वास्तव में बढ़ती आवश्यकता और महत्त्वाकांक्षाओं के कारण भाई - भाई से दूर होने लगते हैं। शादी-व्याह होने के बाद, बच्चे बड़े होने के बाद आवश्यकताओं का बढ़ना लाजिमी है,तब आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मन घूमते- घूमते भाई तक आ जाता है। हां, कोई- कोई पत्नियां इस कार्य में उत्प्रेरक का काम अवश्य करने का श्रेय ले लेती हैं।
इस संदर्भ में एक बात समझ में नहीं आती, पत्नी-पति, भाई-बहन, मित्र- मित्र के प्रेम को दर्शाने वाले त्योहार है, परन्तु भाई- भाई के बीच प्रेम दर्शाने वाले त्योहार नहीं दिखाई देते।
बड़ा भाई छोटे का आधार होता है। वही बचपन में छोटे की उंगली पकड़कर दुनिया से उसका परिचय करवाता है। लोगों को बताता है, यह मेरा छोटा भाई है। फिर कैसे कोई भाई अपने भाई को संकट में छोड़ कर मुख मोड़ सकता है। ना--! भाई समान मित्र नही, भाई समान कोई हितैषी नहीं, भाई समान कोई नहीं। तभी तो मरते- मरते लोग कहते हैं---"मिलहि न जगत सहोदर भ्राता।"
( Click करें और इसे भी पढ़ें )
रिश्ता (क्लिक करें और पढ़ें)
Republic Day Essay
https://amzn.to/3B6W8DR
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें