सच्चा हितैषी (प्रेरक कथा) वाणी का मोल
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ईसरदान के चाचा से ईसरदान की यह दशा देखी नही जा रही थी। एक दिन वह ईसरदान से बोला,"बेटा ! होनी को भला कौन टाल सकता है , इसलिए गुमसुम और उदास रहकर शेष जीवन होम करना उचित नहीं है। अतः तुम्हें तीर्थ यात्रा कर अपना मन शांत और शुद्ध करना चाहिए। तुम द्वारिका धाम की यात्रा करो। द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के दर्शन से मन को शांति तो मिलेगी ही, एक नवीन ऊर्जा का संचार भी होगा।"
अगले दिन दोनों चाचा - भतीजे द्वारिका की ओर चल पड़े।रात्रि विश्राम के लिए वे जामनगर में ठहरे। कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि वहां का राजा विद्वान कवियों की बड़ी कद्र करते हैं । अच्छे कवियों और उनकी कविताओं का वे बहुत स्वागत करते हैं और मनचाहा पुरस्कार भी देते हैं।
ईसरदान कवि था,उसका मन मचल उठा। अगले ही दिन दोनों चाचा भतीजे राजदरबार में जा पहुंचे। उन्होंने राजदरबारी को अपना परिचय दिया और राजा को कविता सुनाने का आग्रह किया। राजा बहुत खुश हुए। उन्होंने फौरन ईसरदान को कविता सुनाने की अनुमति दे दी।
ईसरदान ने राजा की प्रशंसा में कविता सुनाकर राजा का दिल जीत लिया। उसने रानी की सुन्दरता की प्रशंसा में भी कविता सुनाया।राजा- रानी ईसरदान से बहुत खुश थे। राजा अपने राजगुरु को ईसरदान के लिए मनचाहा पुरस्कार की व्यवस्था करने का आदेश देकर राजदरबार से निकल गए। इसरदान आशा भरी निगाहों से राजगुरु की ओर देख रहे थे। उसे लगा आज उसे भरपूर इनाम मिलेगा और उसकी गरीबी भी दूर हो जाएगी। परंतु ऐसा हुआ नहीं राजगुरु ने सिपाहियों को बुलाया और ईसरदान को धक्के देकर वहां से भगा देने का आदेश दिया। सिपाहियों ने ईसरदान को धक्के मार कर राज दरबार से बाहर भगा दिया। इस अपमान से ईसरदान बेहोश हो गए।
कुछ देर बाद जब इसरदान को होश आया तो उसे राजगुरु पर बहुत क्रोध आया। उसने सोचा, राजा ने राजगुरु से मुझे इनाम देने को कहा था, परंतु राजगुरु ने तो मेरा घोर अपमान किया है। मैं राजगुरु का बध करके अपने अपमान का बदला लूंगा। ऐसा सोच कर वह एक घातक हथियार लेकर राजगुरु के घर में छुप गया।
"नगर में एक कवि को इनाम देने के वजाए राजगुरु ने दरबार से उसे अपमानित कर बाहर निकलवा दिया है," यह समाचार पूरे नगर में फैल गया। राजगुरु की जगह- जगह निंदा होने लगी। रात्रि में जब राजगुरु अपने घर पहुंचे तो उनकी पत्नी उनसे बहुत नाराज थी। उसने अपने पति से इसरदान को अपमानित कर राज दरबार से बाहर निकालने का कारण पूछा। राजगुरु ने बताया , यह ठीक है कि कवि इसरदान बहुत अच्छी-अच्छी कविताएं लिखता और सुनाता है परंतु आज जो उसने कविताएं सुनाई है उसमें सिर्फ राजा और रानी की प्रशंसा थी। इसमें कहीं भी ईश्वर की प्रशंसा नहीं थी। जिस ईश्वर ने उसके जीह्वा पर सरस्वती का वास दिया है, क्या उस ईश्वर को भूल जाना उचित है? प्रतिभा को व्यर्थ ही चापलूसी में गंवाना उचित है क्या ?
"इसरदान सांसारिक लोगो की चापलूसी कर ईश्वर द्वारा दी गई प्रतिभा का दुरुपयोग कर रहा है। काश ! अब भी वह अपनी प्रतिभा का मूल्य समझ पाता और तब उसका जीवन धन्य हो जाता। मैंने उसे सही रास्ते पर लाने के लिए ही अपमानित कराया है।" राजगुरु ने दुखी मन से कहा।
घर के कोने में छिपा कवि ईसरदान राजगुरु और उनकी पत्नी की सारी बातें सुन रहा था। बातें सुनकर उसकी आंखें खुल गई और वह राज गुरु के चरणों में गिरकर अपनी भूल का पश्चाताप करने लगा। उसने कहा मैंने कविता में राजा की प्रशंसा कर अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग किया है। अब मैं भक्ति के पद रच कर अपनी वाणी को शुद्ध और पवित्र करना चाहता हूं। ऐसा संकल्प लेकर इसरदान द्वारका धाम आए और भगवान की भक्ति में लीन होकर "भक्ति रस" नामक ग्रंथ की रचना की।
वाणी का मोल कहानी का प्रश्न उत्तर
1. ईसरदान में क्या गुण था ? वह गुमसुम क्यों रहने लगा ?
उत्तर - ईसरदान एक उच्च कोटि का कवि था। वह बहुत अच्छी अच्छी कविताएं लिखता था। उसकी कविताएं सुनकर लोग वाह वाह करते थे। लेकिन एक दिन उसकी पत्नी का निधन हो गया। इस सदमे से वह गुमसुम रहने लगा।
2. ईसरदान के चाचा ने उसे क्या सलाह दी ?
उत्तर - ईसरदान के चाचा ने उसे सलाह दी कि तुम तीर्थ यात्रा करो। इससे मन भी बहल जाएगा और पुण्य भी होगा।
3. ईसरदान का कविता प्रेम कब और कैसे जाग उठा ?
उत्तर -- धर्मशाला में किसी ने बताया कि जामनगर का राजा कविता सुनने के बड़ प्रेमी हैं। वह समय समय पर कवियों को बुलाकर कविता सुनते हैं और कवियों को मुंहमांगा इनाम देते हैं। यह सुनकर ईसरदान का कवि प्रेम जाग उठा।
4. राजा ने ईसरदान से क्या कहा ?
उत्तर - राजा ने ईसरदान से कहा ,- " मैं बहुत दिनों से कोई अच्छी कविता नहीं सुना हूं। आप अचानक आ गये। अपनी कविता सुनाकर कृतार्थ करें।
5. ईसरदान ने अपनी दोनों कविताओं में किसका वर्णन किया था ?
उत्तर - ईसरदान ने पहली कविता में राजा की और दूसरी कविता में रानी का वर्णन किया था।
6. राजा अपने राजगुरु से क्या कहते हुए दरबार से चले गए ?
उत्तर - राजा ने ईसरदान की कविताएं सुनकर राजगुरु से कहा कि आप स्वयं कविता के पारखी है , कवि ईसरदान को आप अपने विवेक से इनाम दे सकते हैं।
7. भट्ट ने दूत को क्या आदेश दिया ?
उत्तर - भट्ट ने सिपाहियों को आदेश दिया कि ईसरदान को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया जाय।
8. भट्ट ने ऐसा क्यों किया ?
उत्तर - भट्ट को लगा कि ईसरदान अपनी वाणी का दुरूपयोग कर रहा है। इसलिए भट्ट ने ईसरदान को धक्के मारकर बाहर निकाल देने का आदेश दिया।
9. होश में आने के बाद ईसरदान ने क्या निश्चय किया ?
उत्तर - होश में आने के बाद ईसरदान को बहुत बुरा लगा। उसने निश्चय किया कि वह अपने अपमान का बदला लेगा। वह राजगुरु पीताम्बर भट्ट का वध कर देगा।
10. भट्ट की पत्नी ने अपने पति के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर - भट्ट की पत्नी ने अपने पति से कहा - एक कवि को आपने ईनाम देने के बदले धक्के मारकर भगा दिया। ऐसे अन्यायी पति का मैं मुंह भी नहीं देखना चाहती हूं।
10. ईसरदान की आंखें किस घटना से खुली ?
उत्तर - ईसरदान अपनी पत्नी को समझा रहा था कि" ईसरदान एक अच्छा कवि है । उसने अपनी कविता में सिर्फ राजा रानी का ही गुणगान किया है। उसने भगवान को बिल्कुल याद नहीं किया है। वह दैवी शक्ति का दुरूपयोग कर रहा है। उसे सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैंने उसे अपमानित कराया है। काश ! अब भी वह अपनी वाणी का मोल समझ जाये।" ईसरदान छुपकर राजगुरु की बातें सुन रहा था। इससे उसकी आंखें खुल गईं।
11. इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर - इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें वाणी का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। ईश्वर का भजन करना चाहिए।
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