नमक का दारोगा (कहानी)Namak ka daroga, प्रेमचंद


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१. प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद



मुंशी प्रेमचंद का जन्म (सन् 1880) उत्तर प्रदेश के लमही नामक गाँव में हुआ था। पूर्व अवस्था खराब होने के कारण जैसे तैसे बी। ए। किया है। प्रेमचंद आगे पढ़ना चाहते थे, किंतु घर की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें सरकारी स्कूल में नौकरी करनी पड़ी। मृत्यु 1936 में हुई।

प्रमुख रचनाएँ
सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गवन, गोदान।  उन्होंने लगभग तीन हजार कहानियाँ लिखी हैं जो मानसरोवर नाम से आठ भागों में संग्रहित है। दो बैलों की कथा, कफ़न, नमक का दारोगा, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी आदि इनकी प्रतिनिधित्व कथाएँ हैं।

प्रेमचंद की सौतेली मां ने उनकी शादी उनसे उम्र में बड़ी लड़की से करवा दी थी । वह स्वभाव से बहुत बड़ी क्रूर थी। प्रेमचंद से उसकी नहीं बनती थी। बाद में उन्होंने शिवरानी नामक बाल विधवा से विवाह किया।




     प्रेमचंद की कहानियाँ आदर्श और यथार्थ का संगम है।
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नमक का दारोगा: कहानी का सारांश


नमक का दारोगा नामक कहानी सत्यनिष्ठ, ईमानदारी और, धर्मपरायणता को स्थापित करने वाली आशाभरी आदर्श वादी कहानी है ।  जब से सरकार ने नमक पर रोक लगाने का फैसला किया, तब से एक नए विभाग नमक विभाग बन गया। बंशीधर जी पढ लिख कर नौकरी की तलाश में निकले तो उनके पिता ने समझाते हुए कहा, बेटा! घर में जो कुछ था वह आपकी पढ़ाई-लिखाई में ख़र्च हो गया है। घर की माली हालत ठीक नहीं है। नौकरी ऐसी हो जिसमें वेतन कम हो लेकिन उपरी आय अधिक हो, क्योकि मासिक आय तो पूर्णमासी का चांद होता है और ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत। जब चाहे प्यास बुझा लो। भाग्य से उन्हें नमक विभाग में दारोगा की नौकरी मिल गई।

  एक रात की बात थी। दारोगा जी अपने सिपाहियों के साथ नदी के किनारे चेक पोस्ट पर ड्यूटी में तैनात थे। रात्रि के समय के कारण थोड़े ऊधते हुए लेटे थे कि गाड़ियों की कर्कश आवाज से नींद खुल गई। सतर्कतापूर्ण देखा तो पता चला कि नमक लदी गाड़ियां नदी पार कर रही हैं। ये सभी गाडियां इलाके के प्रसिद्ध व्यक्ति पंडित आलोपीदीन की थी। पंडित अलोपिदीन अपने सजीले रथ में उगते -  सोते अवस्था में चले जा रहे थे, उन्हें पता चला कि दरोगा जी ने उनकी गाड़ियां रोक दी हैं और वे घाट पर उन्हें बुलाते हैं। पंडित जी को लक्ष्मी पर पूरा भरोसा था, वे मानते थे कि न्याय और नीति तो लक्ष्मी के खिलौने हैं।

दो बैलों की कथा      (क्लिक करें और पढ़ें)

वह निश्चिंत होकर दरोगा के पास पहुंचे और बोले- हम ब्राह्मणों पर तो आपकी कृपा दृष्टि बनी हुई है। पंडित अलोपिदिन ने घूस की ओर इशारा किया। हालांकि दारोगा जी पर उनकी बातों का जरा भी असर नहीं हुआ। वह कड़क कर बोले, मैं उन नमक हरामो में नहीं हूं जो थोड़े से पैसों के लिए अपना नेम - धर्म हाथों में लिए  फिरते हैं, आप इस समय हिरासत में है।

अलोपीदिन हतप्रभ रह गए। उन्होंने आज तक धन को धर्म के आगे हारते हुए नहीं देखा था। वे गिरगिराने लगे , लेकिन वंशीधर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने तत्काल 1000  रूपए देने की बात कही लेकिन वंशीधर ने क्रोधित होकर कहा, एक क्या 100000 भी मुझे सच्चा मार्ग से हटा नहीं  सकता। सेठ जी ने 40000 रुपए तक की रिश्वत देने की बात कही। लेकिन बंशीधर का विश्वास नहीं डोला। सेठ जी हिरासत में ले लिए गए।

सुबह का नजारा बदला-बदला सा था। चारों ओर पंडित  आलोपीदीन के ही चर्चें। पंडित जी के व्यवहार की चारों ओर निंदा होने लगी। बेइमान और भ्रष्टाचारी अफसरों ने भी उन पर टीका टिप्पणी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पंडित जी जब अदालत पहुंचे तो सारा शहर उन्हें इस हालत में देखने के लिए उमर पड़ा था। अदालत में पहुंचते ही हालत बदल गई।

अदालत में अलोपिदीन


अदालत के सभी कर्मचारी बिना कीमत के उनके गुलाम थे। वकीलों की एक टोली उन्हें बाइज्जत निकालने में दाव पेंच लगाने लगी। इधर बंशीधर के पास सत्य और स्पष्ट भाषण के अलावे और कोई शस्त्र नहीं था। फल स्वरूप न्याय पक्ष अन्याय की ओर झुका और डिप्टी मजिस्ट्रेट ने लिखा, - पंडित अलोपिदीन बहुत बड़े आदमी हैं। वह थोड़े से लाभ के लिए इतना छोटा काम नहीं कर सकता। बंशीधर की नमक हलाली ने उनकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है, इसलिए उन्हें सावधान रहना चाहिए।

यह निर्णय सुनकर वकील लोग  उछल पड़े। अलोपीदीन बाइज्जत अदालत से बाहर निकले। चारों ओर बंशीधर की शिकायत होने लगी। बंशीधर को जीवन का सबसे खेद जनक अनुभव हुआ। कोई भी सत्य के लिए समर्पित होने को तैयार नहीं है। यह लंबे चौड़े चोगे वाले लोग सब निरादर के पात्र हैं। सप्ताह दिन के अंदर ही वंशीधार को नौकरी से मुअत्तल कर दिया गया । घरवालों ने जब यह समाचार सुना तो माथा पीट लिया । पिताजी बहुत कुपित हुए और मां और पत्नी ने भी नाराजगी व्यक्त की।

एक सप्ताह बाद पंडित  आलोपीदिन बंशीधर के घर पहुंचे। उन्हें देखकर बंशीधर के पिता बंशीधर के नालायकी का रोना रोने लगे। लेकिन पंडित अलोपीदिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया और कहा कि आपका बेटा आपके कुल का भूषण है। ऐसे धर्मपरायण व्यक्ति पर तो सर्वस्व न्योछावर किया जा सकता है।

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उन्होंने बंशीधर से कहा - आज मैं स्वयं आप की हिरासत में चला आया।
मैंने इस संसार में सबको खरीद कर गुलाम बना लिया है लेकिन मुझे परास्त किया है तो बस आप। मैं आपके सामने एक विनय लेकर आया हूं।

पंडित अलोपिदीन की विनयशीलता देखकर  वंशीधर पिघल गए। सेठ जी ने कहा कि आप मेरे सभी सम्पत्ति का स्थायी प्रबंधक होना स्वीकार करें। छ: हजार रुपए वार्षिक वेतन के अलावा गाड़ी, बंगला, नौकर चाकर सब मुफ्त ।। वंशीधर ने कहा - मुझमें न वैसी योग्यता है न बुद्धि। ऐसे महान कार्य के लिए एक बड़े मर्मज्ञ व्यक्ति की जरूरत होती है।

दो बैलों की कथा      (क्लिक करें और पढ़ें)

पंडित  आलोपदीन ने कलमदान से कलम निकाल कर बंशीधर की हाथों में देकर कहा- न मुझे विद्वता की चाह है न अनुभव की। इन गुणों के महत्व का अनुभव खूब पा चुका है। भाग्य से विधाता ने मुझे वह मोती प्रदान किया है जिसके सामने योग्यता और विद्वता की चमक फीकी पड़ जाती है। परमात्मा से यह प्रार्थना है कि आप उसी नदी के किनारे वाले बेमुरवत, उद्दंड, धर्मनिष्ठ और कठोर मनुष्य बनाए रखें। बंशीधर की आंखें कृतज्ञता से डबडबा गई। उसने भक्ति भाव से नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। पंडित अलोपिदीन ने उन्हें प्रभुल्लित होकर गले लगा लिया।

कृष्णा सोबती द्वारा मिया नसरुद्दीन की कहानी

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प्रश्न उत्तर

1. कहानी का कौन सा पात्र आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर - बंशीधर इस कहानी के नायक है और वही हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि वह सत्य निष्ठ और चरित्रवान दारोगा है। उसके माता-पिता उसे बेईमानी की सलाह देते हैं। उसके चारों ओर का समाज पूरी तरह भ्रष्ट है, फिर भी वह कीचड़ में खिले हुए कमल की तरह, अंधेरे में जले हुए दीपक की तरह बड़े ही अभिमान और स्वाभिमान से जीता है। उसकी यही चारित्रिक दृढ़ता हमें प्रभावित करती है। मुकदमा हारने पर भी वह सिर ऊंचा करके जीता है। मिट्टी में मिला दिया जाने पर भी उसे कोई पछतावा नहीं है। इसीलिए अंत में पंडित अल आरोपदीन भी उसकी इस दृढ़ता पर मुग्ध हो जाते हैं।

2। नमक का दरोगा कहानी में पंडित अलोपीदिन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू उभरकर आते हैं?
उत्तर - पंडित आलोपीदिन के व्यक्तित्व के दो पक्ष उभर कर कर सामने आते हैं- शुभ और अशुभ।

कहानी के आरंभ से मध्य तक पंडित आलोपीदीन का भ्रष्ट व्यक्तित्व सामने आता है। वह गंदे तालाब का सबसे बड़ी मछली है। अदालत का वह शेर है। इतना ही नहीं वह ऊपर से लेकर नीचे तक सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को अपने पैसे पर खरीद कर भ्रष्ट बना दिया है। वह रात के अंधेरे में अपने पूरे काले धंधे को आसानी से चला रहा है और दिन के उजाले में वह एक सम्मानित व्यक्ति बना हुआ है। उसका यह दोगला चरित्र अशुभ है।

कहानी के अंत में उसका उज्ज्वल चरित्र सामने आता है। वह अपने को गिरफ्तार करने वाले बंशीधर के सामने झुक जाता है और उन्हें सम्मान के साथ अपनी सारी संपत्ति का स्थाई प्रबंधक नियुक्त करता है। वह मानवीय गुणों का आदर करते हुए एक महान व्यक्ति बन जाता है।

3. कहानी के लगभग सभी पात्र कहानी के किसी न किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ के उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं -

क . ( वृद्ध मुंशी )  ख . ( वकील )  ग . ( शहर की भीड़ )

उत्तर - क . वृद्ध मुंशी --- 

वृद्ध मुंशी का चरित्र समाज में भ्रष्टाचार का पोषक है। वह स्वयं तो रिश्वत खोरी किया ही होगा , आने वाली पीढ़ी को भी रिश्वत का पाठ पढ़ाता है। वह वंशीधर को समझाते हुए कहता है -- " नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना,यह तो पीर का मजार है। निगाह चादर और चढ़ावे पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ उपरी आय हो।

ख. वकील -- 

इस कहानी में वकीलों के करतूतों की भी खूब बखिया उधेड़ दी गई है। कानून के रखवाले किस तरह पैसे के लिए कानून की धज्जियां उड़ाते हैं, इस कहानी में प्रेमचंद ने खूब सटीक वर्णन किया है।

प्रसंग देखिए -- जब नमक पर पाबंदी लगी और नमक का दारोगा का पद महत्वपूर्ण हो गया तब सभी वकील यही चाहने लगे कि वे वकालत छोड़कर इस विभाग के दारोगा बन जाएं।
सरकारी हो या गैर सरकारी वकील , वे न्याय की जीत पर खुश होने के बजाय अपने मुवक्किल की जीत पर खुश होते हैं। वे न्याय का गला दबाकर भी खुश होते हैं। न्याय की इससे बड़ी पराजय नहीं हो सकती। -- वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े।

ख. शहर की भीड़ -- शहर के लोग भी मजे लेने के अवसर ढूंढते हैं। बस बात बात पर भीड़ लगाना उनका स्वभाव है। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदिन को कांस्टेबलों ने अदालत में पेश करने के लिए लाया तो इतनी भीड़ थी कि छत और दिवार में कोई अंतर ही न था।


MCQ, with answers, Namak ka daroga



1. नमक का दारोगा कहानी के लेखक कौन हैं ?

क. वंशीधर शुक्ल
ख. प्रेमचंद
ग.शिव पूजन सहाय
घ. राम सुधीर सिंह

2. नौकरी ऐसी हो जिसमें वेतन कम हो लेकिन ऊपरी आय अधिक हो।' यह कथन किसका है ?

 क.वंशीधर 
ख. वंशीधर के पिता जी
ग. मुन्ना भाई
घ. पंडित अलोपिदीन

3. नमक लदी गाडियां पार हो रही थी

क. दोपहर में
ख. शाम में
ग. रात के अंधेरे में
घ. सुबह में

4. नमक का दारोगा कहानी का मुख्य पात्र कौन है ?

क. मजिस्ट्रेट
ख. पंडित अलोपिदीन
ग. जमादार बदलूसिंह 
घ. बंशीधर
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डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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