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डॉ.उमेश कुमार सिंह
बिमल हिंदी - सरल, शुद्ध, निर्मल और भावपूर्ण हिंदी की दिशा में एक सार्थक कदम है। हिंदी ऐसी भाषा है जो विश्व भर में बोली और समझी जाती है। भारत की राजभाषा के आसन को यह सुशोभित तो करती ही है, बोलने, लिखने और समझने में भी सरल है। इसकी लिपि देवनागरी विश्व की अन्य लिपियों से अधिक श्रेष्ठ है। फिर भी ऐसा देखा जाता है कि हिंदी सीखने की दिशा में अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता शेष है। हम अपनी पूरी टीम के साथ यही करने का प्रयास कर रहे हैं।
मेरा जन्म गंगाहारा,थाना दानापुर जिला पटना , बिहार, भारत देश में हुआ। बिल्कुल दियारा क्षेत्र। शेरपुर से दो मील उत्तर। शेरपुर से नीचे उतरिए तो सोन का सोता । बरसात में खूब पानी। नाव से पार करने में घंटों लगते, परन्तु जाड़े- गर्मी में हेलान हो जाता था। फिर बालू ही बालू। बैलगाड़ी,टैक्टर या साइकिल का ही सहारा। शाम में जयमंगल चाचा के यहां बैठकी लगती। लोग तरह तरह की बातें करते, कुछ खेती बाड़ी की ,कुछ देश दुनिया की तो कुछ और भी। इसी बीच वे गंगाहारा के नामकरण की भी सप्रसंग व्याख्या करते हुए कहते,- पुराने जमाने में गंगा प्रसाद नाम के प्रसिद्ध पहलवान थे,जो यहीं आकर हार गए थे। इसीलिए इस गांव का नाम गंगाहारा हुआ। सच्चाई चाहे जो भी हो, परन्तु हां, 1985 के कटाव में बसा बसाया , हरे हरे पेड़ पौधे से युक्त आधा गंगाहारा गंगा नदी में सदा के लिए विलीन हो गया। गंगाहारा का भव्य ठाकुरबाड़ी, बड़ा बगीचा, ग्राम कचहरी, मिडिल स्कूल, हाई स्कूल , सब कुछ खोकर हमलोग शेरपुर आ बसे।। अभी शेरपुर से दीघवारा गंगा नदी पर एक और पुल बनने जा रहा है जो गंगाहारा से होकर ही गुजरेगा। तब यातायात और सुगम हो जावेगी।
मैं अपने पूज्य चाचा श्री प्रभुनाथ सिंह के साथ रहकर बोध गया में पढ़ता था।स्कूली शिक्षा बुद्धमहा विद्यालय, फिर गया कालेज, तत्पश्चात मगध विश्वविद्यालय, बोध गया। निरंजना नदी ( फल्गू ) के किनारे आवास, महत्मा बुद्ध की तपोभूमि। पी- एच. डी तक की पढ़ाई वहीं हुई। श्री कृष्ण मोहन सिंह, गंगाहारा
1996 ई में धनबाद आ गया। पिता जी श्री कृष्ण मोहन सिंह बीसीसीएल में कार्यरत थे। अन्य दो चाचा, श्री भरत सिंह एवं श्री गणपति सिंह पटना में थे। उनका अपना व्यवसाय है। 2000 ई से भूली, धनबाद में हिंदी की सेवा में समर्पित हूं। बिमल मेरा छोटा पुत्र है। यह वेवसाईट इसी के नाम पर है।
साथियों! यहाँ विभिन्न श्रेणियों में पढ़े जाने वाले निबंध, कविता, कहानी के साथ- साथ कुछ त्योहारों तथा सम सामयिक लेख और शुद्ध सात्विक मनोरंजन पर भी विस्तार से चर्चा की गई है जो भारत के साथ साथ विदेशों में भी रहने वाले हमारे पाठकों को अपनी सभ्यता - संस्कृति का बखूबी ज्ञान प्रदान करने में मदद करेगा।
इसके साथ- साथ यहां ऐसे विचारात्मक निबंध और कहानियों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है जो पाठकों के मनोरंजन के साथ- साथ ज्ञानवर्धक और सहायक बने। पंचतंत्र, हितोपदेश, जातक की कथाएँ ऐसी ही कहानियों का संग्रह है जिसमें मनोरंजन के साथ ज्ञान का अथाह सागर भरा पड़ा है। एक बात और, सीखने की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। जोश और जज्बा होना चाहिए। "करत करत अभ्यास से जड़मति होती सुजान" तो आइए, इसी भाव से बिमल हिंदी में संग्रहित रचनाओं का अध्ययन करें। सुधी पाठकों के सुझावों का सदैव हार्दिक स्वागत रहेगा।
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