प्रेम क्या है, prem, Love
प्रेम क्या है ? प्रेम का अर्थ, Prem, Love
1. प्रेम का मतलब 2. प्रेम का महत्व 3. कबीर का प्रेम
"मनवा प्रेम जगत का सार!" संपूर्ण जगत का सारांश प्रेम तत्व ही है। जिस तरह पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण संपूर्ण वायुमंडल पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमता रहता है, उसी प्रकार सभी चराचर को प्रेम तत्व ही एक आगोश में समेटे हुए है। प्रेम के कारण ही तो सारा संसार एक सूत्र में बंधा है।
इसलिए विद्वानों ने एक मत से इस संसार में प्रेम की महता को स्वीकार किया है। ईश्वर ने भी प्रेम को ही संसार की अनमोल वस्तु माना है। यदि प्रेम सांसारिक वस्तुओं या व्यक्ति से किया गया तो वह प्रेम कहलाता है लेकिन वही प्रेम ईश्वर से किया जाता है तो वह भक्ति कहलाता है।इस तरह प्रेम लौकिक से पारलौकिक बन जाता है।
महात्मा कबीर ने कहा "पोथी पढ़ी-पढ़ी जग पंडित भया ना कोई । ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।।" संपूर्ण विद्या का सार प्रेम ही है। लेकिन प्रेम निस्वार्थ और तटस्थ हो। संपूर्ण भाव से परिपूर्ण प्रेम ही ईश्वर को प्रिय है।
यह कहानी बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें