बसंत ऋतु ( spring season ) निबंध
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१.कालिदास का बसंत वर्णन,२.भूमिका,३.प्रकृति पर बसंत का प्रभाव ४ मनुष्य पर बसंत का प्रभाव ५. उपसंहार
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Basant aur prem, beauty of Basant, flowers of Basant, festival of Basant, fruit of Basant.
कविकुल गुरु कालिदास ने ऋतु- राज बसंत का चित्रण कुछ इस प्रकार किया है --- "सिर पर मुकुट, जिसमें आम्र मंजरी खौंसी हुई, कान में नव कर्णिकाट, हाथ में चंपे का पुष्प, लाचारस रंजीत वस्त्र, जीवों की भांति लटकते बाल में गुथें अशोक और नवमल्लिका के पुष्प।]
बसंत ऋतुओं का राजा है। भारत में इसका आगमन माघ शुक्ल पक्ष पंचमी (जनवरी) मास में होता है। यहाँ इसका आयु मात्र दो महीने की होती है। इसके आने से ही लोगों को जाड़े से छुटकारा मिल जाता है। सुनहरी धूप बड़ी प्यारी- न्यारी लगती है। संपूर्ण चराचर हर्ष उल्लास और नव उत्साह का अहसास करते हैं। न अधिक ठंड होती है न अधिक गर्मी होती है। बसंत सब को अच्छा लगता है।बाबा नागार्जुन कहते हैं ------
शीत समीर, गुलाबी जाड़ा, धूप सुनहरी। जग बसंत की अगुवाई में बाहर निकला ।।
ऋतु राज बसंत के आते ही प्रकृति की सुंदरता बढ़ जाती है। चारों ओर रंग-बिरंगे पुष्प खिल उठते हैं। कनेर, सेमल, चंपा, पलाश, अमलतास, सरसों, तीसी, मटर, गुलाब, गेंदा आदि फूलों की सुंदरता और सुगंध, सभी वातावरण को रोमांचित कर देते हैं)। चारों ओर मोहनी छटा बस्ती जाती है। कोयल की कूकी और पपीहे की पी के वातावरण में एक अलग समां का निर्माण करता है। शीतल मंद समीर मदमस्त हाथी की तरह चलकर संपूर्ण जगत में मस्ती का संचार करता है। नाना प्रकार के पुष्प परागों से चारों दिशाओं में महक उठती है। आम्र अशोक के कोमल व्हेल की लालिमा युक्त हरियाली देख ही बनती है। तितलियों और भ्रमरों के आवारा झूंड फूल और कलियों के घूंघट खिसकाने को आतुर होते।) सर्वत्र उत्साह और उमंग का वातावरण होता है।मतवालों की टोली ढोल मजीरा के बारे में फाग की धुन पर नाचते हैं। उमंगों का त्योहार होली आता है।
रंग बिरंगी होली आई.सबके मन उमंग भर लाई ।।
रंग भरी पिचकारियां तन जाती हैं। अबीर और गुलाल, प्रेम और अनुराग लोग एक दूसरे को अर्पित करते हैं ।अपना- पराया, जात- पात, बड़े- छोटे का भेद मिट जाता है।
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प्रेम और बसंत का गहरा रिश्ता है। परंपरा में कामदेव को बसंत का मित्र कहा गया है।
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कालिदास सहित अन्य कवियों ने बसंत वर्णन में कामुकता सहित मौसम के साथ जीव जंतुओं का रागात्मक संबंध स्थापित किया है। बसंती हवा, मादक गंध, पक्षियों के मन का कल कलजन, नवांकुरों का देह सजाने में पुष्प बनाने और कामोद्दीपक वर्णनों में भाव प्रसार, मनुष्य तक ही नहीं, प्रकृति के रोम-रोम तक हुआ है। कवि पद्माकर जी के शब्दों में ----
कूलन में केलि में कछारन में कुजन में क्यारिन में कालिन कलीन किल्कियाँ है। कहे पद्माकर परागन में पौन हूँ, पानन में पिंक में पौल्सन प्रचंड है।
बैशाखी का त्योहार इसी समय आता है। हिंदू वर्ष प्रतिपदा, रामनवमी, सरहुल आदि त्यौहार बसंत ऋतु में ही मनाया जाता है। वसंत ऋतु आशा, उत्साह, उमंग और प्रेम का ऋतु है। जगत की निराशा, आलस्य, ईर्ष्या, द्वेष दुश्मनी मिटाने का नाम है बसंत। होलिका तैराकी के द्वारा हम यही करने का प्रयास करते हैं। लेकिन अभी भी हमें बहुत कुछ करना बाकी है। तभी तो कविवर जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद पूछते हैं। "ऐसा बसंत कब होगा। जब मानवता के वन उपवन का हर प्रसून खिल पायागा। सबको दे भोजन वसन भवन सबके जीवन में रस छाए। खिल जाए अधर हंस दे मन, ऐसा बसंत जग में आये।
डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 05 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवसंत ऋतू वाकई ऋतुओं का राजा है. बहुत बढ़िया निबन्ध.
जवाब देंहटाएंसमय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला