सच्चा मित्र , sachcha mitra
सच्चा मित्र, True Friends
असली दोस्त कैसा हो
एक दिन सिंह ने सोचा, "राजा का तो दरबार होना चाहिए? बिना दरबार के राजा कैसे?" यह सोचकर सिंह ने लोमड़ी को अपने पास बुलाया।
उन्होंने लोमड़ी से कहा, "तुम बहुत समझदार और चतुर हो। मैं तुमको अपना सलाहकार बनाना चाहता हूं।" लोमड़ी ने सिर झुका कर कहा, "जैसी आज्ञा महाराज।" इसके बाद सिंह ने चीते को बुलाया।
बाडीगार्ड
सिंह ने उसे कहा, "तुम बहुत चौंक्कने और तेज दौड़ने वाले हो। मैं तुम्हें अपना बॉडीगार्ड बनाना चाहता हूँ।" चीते ने झुककर नमस्कार किया और महाराज को धन्यवाद दिया। अब सिंह ने कौवे को बुलाया और कहा, "हे कौवे आप बहुत ऊंची उड़ान भर सकते हैं। आप मेरी दूत बनोगे।"कावे ने सिर झुका कर महाराज का अभिवादन किया।
लोमड़ी, चीता और कौवे ने शपथ ली कि वे हमेशा स्वामी भक्त रहेंगे। राजा ने उन्हें भी वचन दिया कि वह उन तीनों को अपनी मित्र समझेगा, उन्हें खाना देगा और उनकी रक्षा करेगा।
राजा के दरबार में सबके दिन आराम से कटने लगे। तीनों दरबारी कभी भी राजा का विरोध नहीं करते थे। उसकी हर इच्छा उनके लिए कानून थी। सिंह दहाड़ता तो वे तीनों सहम कर खड़े हो जाते हैं। जब वह चलता है तो तीनों उसके पीछे-पीछे चलते हैं।
जब सिंह राजा शिकार के लिए जाता था तो यह तीनों उसके लिए जानवर ढूंढते और उसके खा लेने के बाद जो कुछ बचता वह खाकर संतुष्ट हो जाता है।
एक दिन कौवा कहीं से उड़कर वापस आ गया। सिंह से पूछा, महाराज! आपने क्या उंट का मांस चखा है? बड़ा मजेदार होता है। एक बार मैंने रेगिस्तान में ऊंट का मांस खाया था। "सिंह ने कभी ऊंट देखा भी न था। ऊंट का मांस चखने का विचार उसे बहुत अच्छा लगा। उसने पूछा, पर ऊंट मिलेगा कहां? कावे ने कहा," यहां से कुछ मील दूर एक रेगिस्तान है? मैं वहां का चक्कर लगाकर आ रहा हूं। वहाँ मैंने एक मोटा ताजा ऊंट को देखा है।वह अकेला है। "
सिंह ने अपने दूसरे सलाहकारों की ओर से देखा। उन्होंने उनकी राय पूछी।लोमड़ी और चीते को तो रेगिस्तान का कुछ पता नहीं था, लेकिन उन्हें कैवे से ईर्ष्या थी। सोचा, कौवा हमसे ज्यादा होशियार कैसे बन गया। उन्होंने कहा, "विचार तो बुरा नहीं है। महाराज। कौवा आगे-आगे उड़कर हमें रास्ता दिखाता है।
अगले दिन राजा सिंह और उसके तीनों दरबारी ऊंट के शिकार के लिए निकले। रेगिस्तान के पास तो वे आसानी से पहुंच गए पर जंगल की हरियाली खत्म होने के बाद धूप तेज हो गई हैं। सूरज आग उगल रहा था। बहुत तेज गर्मी थी। कौवा ऊपर आसमान में उड़ता चला जा रहा था। उन्होंने पुकार कर कहा, "जल्दी चलो बहुत दूर नहीं है।"पर सिंह के लिए एक- एक कदम भी चलना मुश्किल था। जलती हुई बालू से उसके झरवे झुलस रहे थे। उन्होंने दरबारियों से गरज कर कहा, "रुक जाओ हम जंगल वापस जाएंगे। मुझे ऊंट का मांस नहीं खाना है।"
सिह राजा के दरबारी डर गए। जंगल तो बहुत पीछे छूट गया था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि थके हारे शेर को अब जंगल वापस कैसे ले जाओ।चीता भाग जाना चाहता था। कव्वे ने सोचा, देखिए अब क्या होता है लोमड़ी ने एक चाल चली। उन्होंने कहा, मैं अभी किसी को मदद के लिए बुलाती हूं। यह कहती हुई वह रेगिस्तान की ओर भाग गई।
कुछ देर बाद लोमड़ी ने ऊंट को देख लिया। ऊंट रेगिस्तान में लोमड़ी को देखकर चकित हो गया है। लोमड़ी ने ऊंट से कहा, "जल्दी चलो दोस्त, हमारे महाराज तुम्हें बुला रहे हैं। उसने कहा, कौन तुम्हारा महाराज है? मैं किसी राजा महाराजा को नहीं जानता। मैं तो बस अपने मालिक को जानता हूं। जिसके लिए मैं बोझा लादकर रेगिस्तान में हूँ।" पार जाता हूं। लोमड़ी ने कहा कि हमारे राजा सिंह ने तुम्हारे मालिक को मार डाला है। अब तुम आजाद हो। सिंह ने तुम्हें अपने दरबार में रहने को बुलाया है। चलो मेरे साथ।
ऊंट लोमड़ी के पीछे- पीछे चल दिया।
ऊंट को देखकर कौवा और चीता दंग रह गए। लोमड़ी ने सिंह के सामने सब बात दोहराई। ऊंट इस बात पर राजी हो गया कि राजा उसे दरबार में जगह दे तो बदले में वह उसकी सेवा करेगा।
लोमड़ी ने सिंह से कहा, ऊंट की पीठ पर बैठ जाइए। हम लोग जंगल वापस जा रहे हैं। सिंह ऊंट की पीठ पर जा बैठा। उसकी दरबारी लोमड़ी और चीता भी उसके पीछे बैठ गए। आगे-आगे कौवा रास्ता दिखाता रहा। इस तरह सभी जंगल की ओर बढ़ने लगे। लंबी यात्रा के बाद जंगल पहुंचते-पहुंचते सभी थक गए। सभी को जोर की भूख लगी थी। लोमड़ी कौवा और चीते ने ऊंट की ओर देखा, फिर एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराने लगे। अब तो दावत उड़ेगी।सिंह ने दरबारियों की मन की बात ताड़ ली। उसने ऊंट को अपने पास बुला कर कहा, "दोस्त! तुम मेरी जान बचाई है। मैं उपकार स्वीकार कर रहा हूँ। तुम जब तक चाहो मेरे दरबार में रह सकते हो। मैं तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूँ।" यह सुनकर दरबारियों को बहुत बुरा लगा।उन्होंने राजा को उंट का मांस चखने के लिए अपनी जान खतरे में डाल दिया और अब वह ऊंट को जिंदा छोड़ देना चाहता है।
दरबारियों को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। पर वे क्या?अंत में राजा तो राजा था!
सिंह शिकार पर जाने में असमर्थ था। उसकी भूख बढ़ती जा रही थी। वह चिल्लाकर बोला, लोमड़ी, कौवा, चीता! तुम्हें तुमसे दिखाई नहीं देता, मैं परेशान हूँ और भूख से मरा जा रहा हूँ। मेरे लिए खाना ले आओ। दरबारियों को तो राजा की आज्ञा का पालन करना ही था। वह बाहर तो निकले पर बहुत दूर नहीं गया। एक जगह बैठ कर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।
लोमड़ी ने कहा, मैंने सोच लिया है। हम लोग ऐसे ही करने जा रहे हैं कि ऊंट अपने आप ही सिंह के पास जाकर अपने आपको खाने के लिए कहे।
लोमड़ी ने उन लोगों को अपनी चाल बताई। सब राजी हो गए। तीनों राजा के पास वापस गए हैं। पहले कौवा आगे बढ़ा और खु झुक कर बोला, महाराज हमें कोई शिकार नहीं मिला, हमारे रहने पर आप कोई कष्ट नहीं उठा पाएंगे। मैं छोटा- सा जीव हूँ। मुझे खा जाओ और अपनी भूख मिटाइए।
लोमड़ी ने कावे को धकेल कर बोली, नहीं महाराज मुझे खाइए। अब चीता सामने आ गया और बोला, महाराज मैं लोमड़ी से बड़ा हूं। ऊंट ने उन सब की बात सुनी। उसने सोचा कि उसे भी वैसा ही करना चाहिए। उसने कहा, राजा! आपकी जान बचाने के लिए मैं भी अपनी जान दे सकता हूं। यह लोग आपके पुराने मित्र हैं। आपका बहुत काम आया मैं ही खाइए। लोमड़ी और चीता तो तैयार ही थे। ऊंट के यह कहते ही वह सब उसकी ओर लपके। सिंह ने उन्हें रोककर कहा, तुम मेरे अच्छे और स्वामी भक्त सेवक हो। मैं किसी का दिल दुखाना नहीं चाहता। मैं सब की बात मानूँगा। जिस सिलसिले में आप लोगों ने अपने को पेश किया है, उसी सिलसिले में मैं एक-एक करके खाना शुरू करूंगा।
यह सुनकर कौवा, लोमड़ी और चीता सन्न रह गया। वे ऐसा कब चाहते थे। कौवा, लोमड़ी और चीता भाग निकले। सिंह जोर- जोर से हंसने लगा और कहा, तुम स्वामी भक्त हो। जब तक हम जिंदा हैं, हम और आप मित्र बने रहेंगे। ऊंट बहुत खुश हुआ।राजा होना तो बड़ी बात है, पर दयालु होना उससे भी बड़ी बात है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार जन्म दिन कैसे मनाएं
https://www.bimalhindi.in/2021/03/1.html
शिक्षा - राजा को समझदार और दयालु होना चाहिए।
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