कर्ण को गुरु के श्राप ने मारा

 

महाभारत युद्ध में कर्ण की मृत्यु होने पर अर्जुन का अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच गया था।
उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, केशव आप लोग व्यर्थ ही कर्ण को इतना महत्व दें रहे थे। वह तो मेरे पैर की जूती के बराबर भी नहीं था। उसकी क्या औकात जो मुझ -सा संसार के महान धनुर्धर का सामना कर सके। 

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फिर उसने घमंड में नथूऩे को फूलाते हुए कहा, - केशव! मैं ठीक कह रहा हूँ न?

पार्थ सारथी श्रीकृष्ण ने देखा कि अब अर्जुन अपने अहंकार के जोश में सीमा से अधिक आगे बढ़ता जा रहा है, अब उसके अहंकार के घोड़ों को रोकना बहुत जरूरी है। तब उन्होंने कहा, अच्छा पार्थ! मैं कौन हूँ, यह तो तुम अच्छी तरह जानते हो। मैंने अपना विराट रूप भी तुझे दिखाया है। मैं तीनों लोकों का स्वामी हूं और तीनों लोकों का भार लेकर आपके रथ पर विराजमान था, फिर भी कर्ण युद्ध भूमि में अपने अस्त्रों के आघात से आपके रथ को दो कदम पीछे ढकेलने में सफल हो जाता है। अब आप ही कहेंगे, श्रेष्ठ धनुर्धर तुम हो या कर्ण? वास्तव में कर्ण का वध आप नहीं, बल्कि उसके गुरु भार्गव परशुराम के श्राप ने किया है।

श्रीकृष्ण ने आगे समझाते हुए कहा, कर्ण बहुत महत्वाकांक्षी थे। वह तुम्हारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी था और धनुर्विद्या में तुमसे आगे निकलने की होड़ में सदैव बेचैन रहा था। एक दिन कर्ण भार्गव परशुराम के आश्रम में ब्राह्मण कुमार का वेश बदलकर पहुंच गए। परशुराम जी केवल ब्राह्मण कुमार को ही शिक्षा देते थे। इसलिए महामुनि परशुरामजी को धोखा देने के लिए ही कर्ण ने ब्राह्मण कुमार का वेश धारण कर लिया।

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कर्ण का ब्राह्मण वेश और उसकी मीठी-मीठी बातों में आकर गुरु परशुरामजी ने बिना सोचे विचारे उसे शिक्षा देना आरंभ कर दिया। उन्होंने कर्ण को ब्रह्म अस्त्र सहित कई अमोघ शक्तियाँ प्रदान की। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन की बात है। गुरु परशुराम अपने शिष्य कर्ण की जंघा पर शिर रखकर विश्राम कर रहे थे। कर्ण एक बड़े पत्ते से उनके मुख -  मंडल पर हवा दे रहा था। तभी दुर्भाग्य से एक विषैला कीड़ा कर्ण की जांच में काटना शुरू कर दिया। उस विषैले कीट के काटने से कर्ण को बहुत दर्द हो रहा है, लेकिन गुरु की नींद न  उचट जाए, इस डर से कर्ण ने अपनी जंघा को हिला न सका दिया।    कीड़ा मजे से कर्ण के जांघें को काटता रहा और कर्ण चुपचाप पीड़ा सहता रहा। 

                           
कर्ण को गुरु के श्राप ने मारा 



रक्त की गरम गरम धार जब गुरु के शरीर को स्पर्श करने लगी तो वे नींद से हड़बड़ाकर जग गए। कर्ण की जंघा से निकलते खून की धारा और कर्ण की सहनशीलता देखकर परशुरामजी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने दिव्य ज्ञान से देखा कि कर्ण उन्हें धोखा दे रहा है। वह ब्रम्ह कुमार नहीं है। उन्होंने गुरु के साथ छल किया है। गुरु ने कुपित होकर श्राप दिया, जा, जो विद्या के लिए तूने छल किया है, समय पर आप उसे भूल जाएंगे। इतना ही नहीं, अर्जुन के साथ अंतिम युद्ध में धरती मां तुम्हारे रथ के पहिए को पकड़ लेगी। श्रीकृष्ण ने फिर कहा, कर्ण की मृत्यु का असली कारण गुरु के साथ किया छल और कपट है। गुरु के श्राप ने ही कर्ण को मारा है। तुम तो एक साधन मात्र हो। श्रीकृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन का सारा अहंकार चूर चूर हो गया।

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