परोपकारpropkar

 

परोपकार , propkar essay

परोपकार क्या है, propkar kya hai

परोपकारी के गुण, propkar ke goon

तुलसी दास का परोपकार पर मत

वर्तमान में परोपकार की दशा, propkar ki dasa

   परोपकार पर अनुच्छेद, propkar pr anukshed

परोपकार पर निबंध ,propkar pr nibandh

परोपकार के परिणाम propkar ke prinam

परोपकार पर 100 शब्दों में निबंध

परोपकार पर कविता 



आहार, निद्रा, भय, विलाप, भावना आदि सभी चीजें मनुष्य और पशुओं में सामान्य रूप से विद्यमान रहती हैं। लेकिन धर्म ही वह मूल विशेषता है जो मनुष्यों और पशुओं को पृथक करता है। धर्म के अभाव में मनुष्य पशुओं से भी निम्न हो जाता है। यही धर्म है और यही परोपकार है।

सच्चा हितैषी निबन्ध । क्लिक करें और पढ़ें।

नींद नींद अलम्मंच, सामान्यमेत पशुबलि: नारायणाय!

धर्मोहि तेषामधिको विशेषांक, धर्मनेनहीन पशुभिः समानः।


 तुलसीदास जी ने कहा है, 

परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा  सम नहीं अधमाई ।।


परोपकार



मनुष्य केवल अपने लिए जिने वाला प्राणी नहीं है। वह स्वार्थी केवल नहीं है, बल्कि परोपकारी है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर उसे कितने प्रकार के कर्मों का निर्वहन करना पड़ता है। अतः उसका संपूर्ण कार्य व्यापार पूरे समाज के हित साधने के लिए ही होना चाहिए।

मीराबाई के पद "कविता भी पढ़ें)

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप केवल चेरे हैं।

वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।

राष्ट्रकवि स्वर्गीय मैथिली शरण गुप्त की इस प्रसिद्ध उक्ति का यही संदेश है कि मानवता की भलाई के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर देने वाला ही सच्चा मनुष्य है। महर्षि दधीचि, राजा दिलीप, राजा शिवि आदि इसी श्रेणी में आते हैं। इन महापुरुषों ने दूसरे की रक्षा और भलाई के लिए अपने शरीर तक का भी दान दिया था। इन्हीं विशेषताओं के कारण वे समाज में आज भी आदर और भावनाओं के पात्र हैं।

सर्जित होते मेघ विसर्जित कण कण पर हो जाते हैं।

सरिता कभी न बहती है अपनी प्यास बुझाने ।

हरा रहता है धरा क्या हमसे कुछ पाने के लिए।

 अपने लिए न रत्नाकर का अंग अंग दहकता है।

मानव सृष्टि परम पिता भगवान की सर्वोत्तम कृति है। जब प्रकृति का प्रत्येक कण नि: स्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दूसरों को न्योछावर कर देती है और प्रसन्न रहती है तो हम परोपकार के मार्ग से कैसे विमुख हो सकते हैं। यह वाक्य हमारी सनातन संस्कृति को सदा सर्वदा परोपकार के संदेश देता है ---

सर्वे भवंतु सुखिन सर्वे संतु निरामया।।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु, माँ कश्चिद् दुख भागबेते ।।

  लेकिन आज, आधुनिक भौतिकवादी युग में परोपकार लाचार।स्वार्थ की अंधी और औसत भावनाओं ने परोपकार जैसे पवित्र और कोमल भावनाओं को अपने पैरों से रौंदकर रख दिया है। परिणाम स्वरूप चारों ओर भय, भूख, अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अविश्वास का वातावरण बन गया है। आज पशुत्व प्रबल और मानवता कमजोर है। अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए हमें सदवृतियों को जगाना होगा। प्रेम और परोपकार का वातावरण बनाना होगा, तभी विश्व में सुख और शांति स्थापित हो पाएगी।


लेखक परिचय=
डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।


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