राजस्थान की रजत बूंदें (11 th hindi ) Rajasthan ki Rajat bunden
राजस्थान की रजत बूंदे
Rajasthan ki Rajat bunden, story
1.राजस्थान की रजत बूंदें: पाठ का लेखक एवं सारांश rajsthan ki rajat bunden saransh
2.शब्दार्थ
3. राजस्थान की रजत बूंदें पाठ का प्रश्नोतर
प्रसिद्ध प्रर्यावरण विद अनुपम मिश्र द्वारा रचित इस पाठ में राजस्थान की रेतीली बंजर ज़मीन में पानी के स्रोत कुई की उपयोगिता का वर्णन किया गया है। राजस्थान में तीन प्रकार का पानी है। पालर पानी, पाताल पानी और रेजाणी पानी। वहाँ के लोग किस प्रकार पानी के लिए कुईं का निर्माण कर अपना जीवन सरल बना लिया है, इस बात की चर्चा यहाँ विस्तार से की गई। इसके साथ ही प्रश्न उत्तर भी दिया गया है।
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1.राजस्थान की रजत बूंदें - कहानी का सारांश एवं लेखक ।
रेगिस्तान बालू के लिए प्रसिद्ध है। वहाँ वर्षा बहुत कम होती है। अगर होती भी है
तों बालू उसे सोख लेती है। लेकिन प्रकृति ने जमीन के नीचे वहाँ खड़िया पत्थर की पट्टी बिछा दी है जिसके कारण पानी उसके नीचे नहीं जा पाता है। पट्टी के नीचे खारा पानी रहता है, लेकिन खड़िया पत्थर की पट्टी ऊपर के पानी को खाड़ा पानी में मिलने से रोक देती है। । वहां के अनुभवी लोगों ने कुईं का निर्माण कर खाड़ा पानी से पहले ही पीने लायक पानी निकालने का उपाय खोज लिया है।
राजस्थान में कुईं बनाने वाले लोगों को चेलवांजी या चेजारो कहते हैं । ये लोग बड़े अनुभवी कलाकार होते हैं। चार-पांच हाथ के घेरे में तीस से साठ हाथ की गहराई में जमीन के अंदर गर्मी में बड़ी कुशलता से उतरकर कुईं बनाने का काम करते हैं। वे छोटी बसौली के द्वारा मिट्टी की खुदाई करते हुए बारीकी से मिट्टी ऊपर भेजने का काम करते हैं।
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कुएं और कुई में अन्तर
कुएं और कुईं में अन्तर है। कुई कुएं का छोटा रूप है। कुआँ ब्यास में कुई से बड़ा होता है। गहराई दोनों की लगभग समान होती है। कुएं की गहराई खड़िया पत्थर पर निर्भर होती है। कुएं में पानी पाताल के जल से मिलता है। अर्थात् कुएं में जल भूमि के नीचे से ऊपर उठकर आता है। इसके विपरीत कुईं में पानी चारों ओर के रेत से इकठ्ठा होकर आता है। वर्षा का पानी रेत में समा जाता है जिसे कुईं बनाकर निकल लिया जाता है।
राजस्थान में पानी के प्रकार : 1.पालर पानी, 2. पाताल पानी 3. रेजाणी पानी।
यहां तीन प्रकार का पानी है। पहला रूप है - पालर जल। यह धरातल पर बहने वाला पानी है। दूसरे प्रकार का पानी है - पाताल जल। यह भूमि के नीचे पाया जाता है। खारा होता है। तीसरा रूप है - रेजाणी पानी। इसे कुईं के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
कुईं निर्माण के बाद सफलता उत्सव मनाया जाता है। इस समय त्योहार जैसा माहौल रहता है। चेलबांजों को खूब उपहार देकर सम्मानित किया जाता है। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ रिवाज भी बदल गया। अब केवल मजदूरी देकर काम पूरा करवा लिया जाता है।
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कुईं में पानी बहुत कम रहता है। दिन रात मिला कर तीन चार घड़ा पानी ही प्राप्त हो पाता है। यहां कुईं लगभग हरेक घर में मिलेगा लेकिन इस पर ग्राम पंचायत का नियंत्रण बना हुआ है। किसी नए कुईं के निर्माण की अनुमति कम ही मिलती है क्योंकि नयी कुईं के निर्माण से भूमि की नमी का बंटवारा हो जाता है। चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर में खड़िया पत्थर की पट्टी पाई जाती है इसलिए यहां हर घर में कुईं पाया जाता है।
शब्दार्थ
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चेलवांजी -- कुईं की खुदाई और चिनाई करने वाले लोग।
उखरूं -- घुटने मोड़ कर बैठना।
संकरा -- थोड़ी जगह । बिसौली -- लोहे का छोटा और नुकीले औजार। मलबा - मिट्टी। चेजा - कुईं की खुदाई और चिनाई का काम। नेति नेति -- अंतहीन। आशंका - डर। मरूभूमि- रेगिस्तान
खींप - एक तरह का घास जिससे रस्सी बनती है।
आंच प्रथा -- राजस्थानी परंपरा। गोधूलि - शाम का समय।
गोचर -- चारागाह।
प्रश्नोत्तर
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1.राजस्थान में कुईं किसे कहते हैं ? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अन्तर है ?
उत्तर - राजस्थान में पानी की किल्लत है। इस समस्या के निदान के लिए वहां के लोग वर्षा के जल से भीगे रेत की नमी को पानी के रूप में बदलने के लिए कुईं का निर्माण करते हैं। चार पांच हाथ के व्यास में जमीन को तीस से साठ हाथ तक खोदा जाता है। फिर ईंट चूने से पक्का कर दिया जाता है। इसे ही कुईं कहते हैं।
कुआं और कुईं गहराई में समान होते हैं परन्तु व्यास में अन्तर होता है। कुएं का व्यास कम होता है। कहीं कहीं दोनों की गहराई भी भिन्न होती है।
2.प्रश्न-- दिनों दिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपको कैसे मदद कर सकता है ? देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं ?
उत्तर -- जल की समस्या संपूर्ण विश्व की समस्या है। खासकर शुद्ध पेयजल की कमी सभी झेल रहे हैं। भू जल स्तर का बुरा हाल है। वर्षा की अनियमितता ने भूजल को प्रभावित कर दिया है। इस पाठ में वर्षा के जल के संरक्षण और सदुपयोग पर चर्चा की गई है। साथ ही यह बताया गया है कि वर्षा के बूंद बूंद जल का सदुपयोग कैसे करें।
कहा जाता है कि भगवान जब खुश होते हैं तो वर्षा देते हैं। हमें ईश्वर के इस अनमोल उपहार का संरक्षण करना चाहिए। कुएं का निर्माण कर इस जल को बचाया जा सकता है। अपने देश के कई राज्यों में यह प्रयोग सफलतापूर्वक हो रहा है।
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दक्षिण भारत के कई राज्यों में छोटे मुंह वाले कुएं का निर्माण कर जल को बचाने और सदुपयोग करने का काम सफलतापूर्वक हो रहा है।
3.चेजारो के साथ गांव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में क्या फर्क आया है ?
उत्तर -- राजस्थान में कुईं निर्माण करने वाले को चेजारो कहा जाता है। वहां यह परंपरा थी कि काम शुरू करने के दिन से ही उन्हें खूब सम्मान दिया जाता था। और तो और, कुईं निर्माण का कार्य पूरा हो जाने पर त्योहार जैसा भोज का आयोजन किया जाता था। चेजारो को खूब उपहार देकर सम्मानित किया जाता था।
वर्तमान में चेजारो का सम्मान नहीं होता। उन्हें केवल मजदूरी दिया जाता है।यह व्यवसायिकरण का नतीजा है।
4.प्रश्न -- निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुईयों पर ग्राम समाज का अंकुश क्यों लगा रहता है ?
उत्तर -- राजस्थान में जमीन के नीचे से नमी को कुईं के द्वारा पानी के रूप में प्राप्त किया जाता है। इस जल की मात्रा वर्षा पर निर्भर करता है। क्षेत्र में जितनी कुइयां होगी, उतनी ही नहीं सुखेगी। यदि नयी कुईं का निर्माण किया गया तो नमी बंट जाएगी। पहले वाली कुईं प्रभावित हो जाएगी। इसलिए ग्राम समाज में कुईं बनाने की अनुमति बड़ी कठिनाई से मिलती है। यही कारण है कि कुईं निजी होते हुए भी सार्वजनिक सम्पत्ति बन जाती है और ग्राम सभा का अंकुश रहता है।
प्रश्न 5.निम्न शब्दों के बारे में संक्षिप्त परिचय दें- पालर पानी, पातालपानी,रेजानी पानी।
उत्तर - पालर पानी -- वर्षा का सीधा जल पालर पानी कहलाता है। वर्षा का जल नदियों, तालाब, झीलों में रूक जाता है।यह पालर पानी कहलाता है।
पातालपानी -- वर्षा का जल जमीन के अन्दर चला जाता है। फिर इसे कुआं, पंपों आदि से निकालते हैं।यह पातालपानी कहलाता है।
रेजानी पानी -- यह पानी पालर पानी और पातालपानी के बीच में रहता है। यह पातालपानी में न मिलकर नमी के रूप में बीच में ही रह जाता है।इसे ही कुईं के द्वारा निकाले जाते हैं। भूमि के अंदर के खड़िया पत्थर के कारण यह पातालपानी में नहीं मिल पाता है।
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MCQ Rajsthan ki rajat bunden MCQ
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