भिक्षुक, Bhikshuk,कविता, निराला जी
भिक्षुक महाकवि निराला जी द्ववारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है जिसमें कवि ने गरीब भिक्षुक की मार्मिक और दयनीय दशा का यथार्थ चित्रण किया है। कवि के वर्णन में भिखारी अपने वास्तविक रूप में पाठक के सामने आ खड़ा होता है। यहाँ कविता, भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्नोतर सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
विषय - सूची
1. भिक्षुक कविता
2. पाठ का शब्दार्थ
3.भिक्षुक कविता का भावार्थ
4.कवि निराला जी का जीवन परिचय
5. भिक्षुक कविता का प्रश्न उत्तर
6. भिक्षुक कविता में कौन सा रस है ? करूण रस
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता ।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुंह भटी पुरानी झोली को फैलाता -
दो टूक कलेजे के साथ पछता पथ पर आता है
साथ खड़े दो बच्चे भी हैं, सदा हाथ फैलाए
बाएं से वे मलते हुए पेट को आगे बढते हैं,
और दाहिना दया दृष्टि पाने को बढ़ाए।
भूख से ओंठ सूख जब जाता
दाता भाग्य विधाता से क्या पाता
घूंट आंसुओं के पीकर रह जाता।
चाट रहे झूठे पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी अड़े हुए हैं।
ठहरो, अहो मेरे दिल में शरण, मैं सींच दूंगा।
अभिमन्यु - जैसे हो सकोगे तुम,
तुम्हारा दुख मैं अपने दिल में खींच लूंगा।
--- सूर्य कांत त्रिपाठी निराला
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शब्दार्थ
दो टूक -अलग ,दुखी करना। पथ - रास्ता , लकुटिया - छोटी लकड़ी। दाता - देने वाले। अभिमन्यु - अर्जुन का वीर पुत्र।
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Bhikshuk poem summery
भिक्षुक कविता का भावार्थ
महाकवि निराला कहते हैं , -- वह आता, अर्थात जब भिक्षुक आता है तो उसकी दयनीय दशा देखकर मन दुखी हो जाता है। कलेजा भट जाता है । हृदय तार - तार हो जाता है। भिक्षुक धीरे धीरे कुछ सोचते , पछताते हुए रास्ते पर चला आ रहा है। वह अत्यंत निर्बल है। बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं है। पेट खाली होने के कारण पीठ में सट गया है। कमजोरी के कारण चलने में भी लाचार है। लकुटिया टेक कर चल रहा है। उनके पास फटी पुरानी झोली है।उसे ही फैलाकर वह कुछ मांग रहे हैं।
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इतना ही नहीं, उनके साथ उनके दो बच्चे भी हैं जो उनके साथ ही दाता से कुछ पाने की इच्छा रखते हैं। वे भी भूखे हैं। वे अपनी बाये हाथ से भूखे पेट मलते हैं और दाहिने हाथ से कुछ पाने की इच्छा रखते हैं। लेकिन जब उन्हें कुछ नहीं मिलता तो वे आंसूओं की घूंट पीकर ही रह जाते हैं।
आगे कवि कहते हैं, वे सड़क किनारे जूठे पत्तलों को चाटने के लिए खड़े हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश उन जूठे फेंके पतलों को इनसे झपटने के लिए कुत्ते भी तत्पर हैं। उनकी इस दुर्दशा को देख कर कवि का हृदय द्रवित हो जाता है।वह कहता है। ठहरो ! मैं तुम्हें अपने हृदय में शरण दूंगा। तुम वीर अभिमन्यु के जैसा बनने का वचन दो, मैं तुम्हें सहारा दूंगा।
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भिक्षुक कविता के प्रश्न उत्तर
1. भिक्षुक कविता में वर्णित भिक्षुक की दीन हीन दशा का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर - महाकवि निराला जनजीवन के प्रति संवेदनशील कवि हैं। अपने समाज में फैले अव्यवस्था, ऊंच नीच अमीरी गरीबी को देखकर उनका मन बहुत द्रवित हो जाता था। कलकत्ता एक ऐसा शहर है जहां एक से बढ़कर एक अमीर भी रहते हैं, तो दोनों शाम के भोजन के लिए तरसते गरीब भी। ऐसे भूखे नंगें गरीब भिखाडियों को महाप्राण निराला बहुत करीब से देखे है। यही कारण है कि इस कविता में भिखारी का ऐसा यथार्थ चित्र उभरकर सामने आ गया है।
भिक्षुक दीन हीन प्राणी होता है। भिक्षुक के बच्चे भी भिक्षुक ही होते हैं। किसी दयावान व्यक्ति की कृपा से ही उनका जीवन चलता है। सकुचाते हुए, धीरे धीरे वे आगे बढ़ते हैं कि शायद कोई दाता कुछ दें। उनका शरीर दुर्बल है। डंडे के सहारे ही वे आगे बढ़ते हैं। फटे चिथड़े वस्त्र और फटी हुई झोली ही उनकी सम्पत्ति है। इतना ही नहीं, भिक्षुक के साथ उनके बच्चे भी हैं, जिनकी आंखों में दुःख का सागर उमड़ पड़ा है।
2. आपके विचार से क्या ईश्वर ने उनके साथ न्याय किया है ?
उत्तर - बिल्कुल नहीं, हमारे विचार से ईश्वर ने उनके साथ न्याय नहीं किया है। सभी प्राणी ईश्वर के ही संतान हैं , तब भला ईश्वर , जो समदर्शी भी कहलाते हैं, अपने ही संतान को ऐसे विषम परिस्थितियों में क्यों ला खड़ा कर देते हैं। तब एक दूसरी बात भी है, ऐसे लोगों के प्रति हमारा भी कर्तव्य होना चाहिए। हमें उनकी मदद करनी चाहिए। जैसा कवि निराला करना चाहते हैं।
3. अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम " -- पंक्ति में अभिमन्यु शब्द का प्रयोग किसके लिए और क्यों हुआ है ?
उत्तर - इस पंक्ति में अभिमन्यु शब्द का प्रयोग भिक्षुक के साथ-साथ चल रहे बच्चे के लिए कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने किया है। महाभारत काल में अभिमन्यु ही अकेला ऐसा वीर बालक था जिसने अपने साहस और बलिदान से सबको अचंभित कर दिया और इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। कवि चाहता है कि भिक्षुक के बच्चे ऐसे ही साहसी और वीर बने।
4. सप्रसंग व्याख्या करें
मुट्ठी भर दाने को --- भूख मिटाने को
मुंह फटी पुरानी झोली को फैलाता --
दो टूक कलेजे के करता पछताता पर पर आता।
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियां महाकवि निराला जी द्वारा रचित " भिक्षुक " कविता से ली गई है। इन पंक्तियों में कवि निराला ने सड़क पर भीख मांगने वाले भिक्षुक का बड़ा सजीव और यथार्थ चित्रण किया है।
कवि एक भिक्षुक का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उसकी दशा बिल्कुल बदतर है। खाने के भी लाले पड़ गए हैं। मुट्ठी भर दाने के लिए वह मोहताज है। मुट्ठी भर दाने के लिए वह फटी पुरानी झोली फैलाता है। इस दयनीय दशा को देखकर कलेजा फट जाता है। लेकिन वह भिक्षुक धीरे धीरे पछतावा करते हुए आगे बढ़ता जाता है। किसी दानवीर से कुछ पाने की आशा में।
कविता की भाषा खड़ी बोली हिन्दी और मुक्त छंद है । फिर भी सुन्दर लय और प्रवाह है। विम्ब योजना में कवि की कुशलता स्पष्ट दिखाई दे रही है। बड़ी कविताओं के साथ-साथ छोटी-छोटी कविताओं के रचना में निराला की कुशलता प्रमाणित करने के लिए यह कविता प्रयाप्त है।
ठहरो, अहो, मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा।
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम,
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूंगा।
कविता में करुण रस है।
व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियां महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा लिखित "भिक्षुक " कविता की अंतिम पंक्तियां हैं। यहां कवि भिक्षुक को यह सांत्वना देते हुए कहते हैं कि मैं तुम्हारे कष्टों को दूर करूंगा। मैं तुम्हारी मदद करूंगा।
कवि निराला भिक्षुक का यथार्थ चित्रण करते हुए कहा रहें हैं कि भिक्षुक को देखकर मन बहुत दुखी हो उठता है। उसकी दशा ऐसी हैं कि उसे देख कर किसी का भी मन पसीज सकता है। यहां कवि आशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए कहता है कि मैं भिक्षुक और उसके बच्चों की मदद करूंगा। लेकिन उन बच्चों को भी वीर अभिमन्यु की तरह बनना होगा। उन्हें जीवन की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना होगा।
पंक्तियां छंद मुक्त होकर भी लय में है। यह कविता निराला की प्रसिद्ध कविता है।
प्रश्न - अभिमन्यु कौन थे ? कवि निराला ने बच्चों को अभिमन्यु बनने की सलाह क्यों दी है ?
उत्तर - अभिमन्यु सुभाद्रा और अर्जुन के पुत्र थे। उन्होंने महाभारत युद्ध में अकेले ही दुश्मन के सारे महारथियों के छक्के छुड़ा दिए थे। उनकी वीरता का गुणगान युगों युगों तक होता रहेगा।
अभिमन्यु वीर और साहसी थे इसलिए कविवर निराला ने आज के बच्चों को उनकी तरह बनने की सलाह दी है।
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। इनका जन्म 1897 ई में बंगाल के महिषादल में हुआ था। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया था। वे बहुमुखी प्रतिभा के क्रांतिकारी साहित्यकार थे। उनका देहांत 1962 में हुआ।
निराला जी की प्रमुख रचनाएं हैं - अनामिका,(1923), परिमल ( 1930), गीतिका (1936), तुलसीदास ( 1938 ) , इनके अलावा भी इनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य में प्रसिद्ध है। कुछ समय तक इन्होंने मतवाला और समन्वय नामक पत्रिका का संपादन भी किया था।
निराला जी का जीवन अनेक अभावों और विपत्तियों से पीड़ित था। लेकिन इन्होंने किसी के सामने झुकना नहीं सीखा था। वे अभावों की मर्मान्तक पीड़ा को सहते हुए अपनी साधना में लीन रहते थे। निराला जी 1916 से 1958 तक निरंतर काव्य साधना में लीन रहे।
निराला जी को अपने व्यक्तिगत जीवन और काव्यात्मक जीवन, दोनों में धोर विरोध का सामना करना पड़ा था। जब उनकी काव्य संग्रह " जूही की कली " प्रकाशित हुई तो तत्कालीन कवि समाज में एक अजीब सी खलबली मच गई। क्यों भाई ? क्योंकि उसके कथ्य और काव्य कौशल परंपरागत लेखन से बिल्कुल अलग था। इसमें वर्णित प्रणय केलि के चित्र और मुक्त छंद की शक्तिशाली शिल्प दोनों ही तत्कालीन मान्यताओं से मेल नहीं खाते थे। निराला जी अपने धुन के पक्के थे। उन्होंने किसी। की परवाह नहीं की।
निराला जी की दर्शन का प्रत्यक्ष और गंभीर असर देखा जा सकता है। उनकी भाषा संस्कृत निष्ट है जिसमें समास का बाहुल्य है। वे अपने युग की सच्चाई के प्रति जागरूक कवि थे।
Posted by Dr Umesh Kumar Singh, Bhuli Nagar Dhanbad Jharkhand, India
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