बोपदेव की कथा,Bopdev ki story
बोपदेव की कहानी, Bopdev story
बोपदेव क्या थे
बोपदेव क्या बनें।
बच्चे बोपदेव को कैसे चिढ़ाते थे।
बच्चे बोपदेव को क्या कहकर चिढ़ाते थे।
गुरु देव ने बोपदेव से क्या कहा
कुएं के पास क्या था
बालक बोपदेव पढ़ने में बहुत कमजोर था। परन्तु वह प्रतिदिन पाठशाला आना नहीं छोड़ता था। गुरु जी उसे पढ़ाने - दिखाने का बहुत प्रयास करते, परन्तु लाख प्रयास करने पर भी उसे कुछ भी समझ में नहीं आता। सभी बच्चे उसे बरदराज अर्थात बैलों का राजा कहकर चिढ़ाते थे। गुरु जी भी प्रयास करते - करते थक गये। एक दिन उन्होंने बालक बोपदेव को अपने पास बुलाया और कहा, बेटा बोपदेव ! लगता है, विद्या तुम्हारे भाग्य में नहीं है। इसलिए अच्छा है कि तुम अपने घर वापस लौट जाओ और वही कुछ अन्न उपजाकर अपने परिवार की सहायता करो। गुरु जी की बातें सुनकर बोपदेव उदास मन से अपने घर वापस जाने लगा।
चलते - चलते वह सोचने लगा, घर जाकर वह क्या करेगा ? वहां भी लोग उसे चिढ़ाएंगे ही। उसका जीवन ही बेकार है। तभी उसे प्यास का अनुभव हुआ । रास्ते में एक कुआं दिखाई दिया। वहां कुछ स्त्रियां पानी भर रही थी। बोपदेव पानी पीने वहीं जा पहुंचा। उसकी नजर कुंए की दीवारों पर पड़ी। दीवारों पर बार बार रस्सियों की रगड़ से निशान पर गया था। फिर कुएं की जगत पर भी मिट्टी के बर्तन के निशान थे। यह देखकर बोपदेव की आंखें खुल गईं। उसने सोचा, क्या मेरा दिमाग पत्थर से भी कड़ा है ? मेहनत करने से मैं भी विद्वान बन सकता हूं। वह पुनः वापस गुरु के पास जा पहुंचा। गुरु जी भी उसे मन लगाकर पढ़ाने लगे। वह भी मेहनत और लगन से पढ़ने लगा। बोपदेव बहुत बड़ा विद्वान बना। उन्होंने व्याकरण की पुस्तक भी लिखी।
शिक्षा ---- हिम्मत कभी न हारो।
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