उषा कविता, कवि शमशेर बहादुर सिंह,12वीं,Usha poem
Usha poem, shamsher Bahadur Singh
ऊषा Usha poem
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उषा कविता
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौंका
( अभी गीला पड़ा है)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर
कि जैसे धुल गयी हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और-----
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
कवि शमशेर बहादुर सिंह का जीवन परिचय
कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 11 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ था। इनकी रचनाओं में प्रमुख हैं – कुछ कविताएं, कुछ और कविताएं,चुका भी हूं नहीं मैं,इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी आदि। हिन्दी साहित्य की सेवाओं के लिए इन्हें साहित्य अकादमी और कबीर सम्मान सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
वर्ण्य विषय और शिल्प दोनों में ही इनका अभिनव प्रयोग मिलता है। शमशेर बहादुर सिंह प्रगति वाली और प्रयोग वाली दोनों के धरातल पर पूरी तरह खरे उतरे हैं। इनकी कविताओं के विंब,उपमान और प्रतीक नित्य नवीन दिखाई पड़ते हैं जो पाठकों को अनायास ही प्रभावित करने में सक्षम है।
शब्दार्थ
भोर – सवेरा से पहले का समय। नभ – आकाश । चौंका – भोजन बनाने का स्थान। सिल – मशाला पीसने वाला पत्थर । केशर – फूल का सुगंधित पदार्थ। सूर्योदय – सूर्य का उदय, गौर – गोरा।
कविता का भावार्थ, उषा कविता का मूल भाव। व्याख्या
प्रातःकालीन नभ का रंग नीला शंख के समान था। बिल्कुल नीला। परन्तु भोर होते ही रंग बदलकर आकाश लीपे हुए चौकें के समान हो गया। ऐसा नहीं के कारण हुआ। फिर अगले ही पल रंग बदल जाता है। सूर्योदय की लालिमा और अंधेरे के मिश्रण के कारण आकाश ऐसा लगता है जैसे गहरी काली सिल पर लाल केसर मली हो। या फिर काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो।
अगले ही पल आकाश का रंग फिर बदलता है । ऐसा लगता है जैसे गहरे नीले जल में किसी सुन्दरी की गौर देह झिलमिल कर रही हो। ऐसा नीले आकाश में सूर्य की किरणों के प्रभाव से हो रहा है।
कुछ समय बाद सूर्योदय होने पर रंगों का सौंदर्य समाप्त हो जाता है। यहां उपमा,उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया गया है। कवि की विंब योजना और चित्रात्मक शैली देखते बनती है।
उषा कविता प्रश्नोत्तर
Questions answers Usha poem
1. उषा कविता के किन उपमानों से पता चलता है कि यह कविता गांव की सुबह की गति शील चित्र है?
उत्तर – कविता में कयी विंबों का निर्माण कवि ने किया है। कभी सुबह के आकाश को राख से लिपा चौंका तो कभी काली सिल, तो कभी स्लेट पर लाल खड़िया कहा है। राख से लीपा चौंका शहरों में कहां ? शहरों के बच्चों के पास स्लेट के बदले कापियां और टैबलेट है। कविता के उपमानों से लगता है कि इसमें गांव की झांकी दिखाई देती है।
2 प्रश्न – सूर्योदय से उषा का कौन सा जादू टूट जाता है ?
उत्तर – सूर्योदय से पहले आकाश का रंग रूप पल पल बदलता है कभी वह शंख की तरह तो कभी राख से लीपा चौंका की तरह।कभी स्लेट की तरह। तात्पर्य है कि कवि ने इस पर के लिए कयी उपमान जुटाए हैं। परन्तु सूर्योदय होने से सब कुछ बदल जाता है। जादू नुमा दृश्य मिट जाता है।
3. कवि ने प्रातःकालीन वातावरण की समानता नीले शंख से क्यों की है ?
उत्तर - एकदम भोर का वातावरण न तो अधिक काला होता है न अधिक उजला। उसका रंग नीला शंख जैसे ही होता है, बुझा बुझा। इसलिए नीले शंख की उपमा अच्छी बनी है।
4. चौके के गीले होने का क्या प्रतीकार्थ है ?
उत्तर - प्रातःकालीन वातावरण में ओस की नमी होती है, गीले चौके में भी नमी होती है। दोनों में एक प्रकार की समानता है। इसलिए ऐसा कहा गया है।
5. काली सिल और स्लेट किस दृश्य को प्रकट कर रहा है ?
उत्तर - भोरकालीन आकाश में सूरमयी अंधकार रहता है। यह अंधेरा काली सिल अथवा स्लेट के रंग जैसा होता है। इसलिए कवि काली सिल अथवा स्लेट के माध्यम से भोरकालीन अंधेरे का चित्रण किया है।
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