फणीश्वरनाथ रेणु , जन्म शताब्दी पर विशेष ,phanishwarnath Renu
फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाले ऐसे आंचलिक उपन्यास कार हैं जिनका नाम सदा अमर रहेगा। उनका जन्म बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना नामक गांव में 4 मार्च 1921 को हुआ था। उस समय यह गांव पूर्णिया जिले में था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही नेपाली समाज के उत्थान में इनका महत्वपूर्ण योगदान है । उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में तत्कालीन ग्रामीण जीवन का यथार्थ वर्णन किया है। उनके जन्म शताब्दी के अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन होगा जिसमें विभिन्न देशों के विद्वान और साहित्यकार भाग लेकर रेणु साहित्य के द्वारा ग्रामीण जीवन, ग्रामीण इतिहास , भारतीय ग्रामीण संस्कृति पर बात करें
रेणु जी की प्रसिद्ध रचनाएं
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उपन्यास
मैला आंचल, परती परिकथा, दीर्घतपा , कितने चौराहे, कलंक मुक्ति।
कहानी संग्रह
ठुमरी, अग्नि खोल,आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूम।
संस्मरण
ऋणजल, वनतुलसी की गंध,श्रुत अश्रुत पर्व ।
रिपोर्ताज
नेपाली क्रांति कथा ।
प्रसिद्ध कहानियां
ठेस , मारे गए गुलफाम ( तीसरी कसम ), लाल पान का बेगम , एक आदिम रात्रि की महक,पंचलाइट आदि।
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रेणु जी के जन्म शताब्दी पर विशेष कार्यक्रम
प्रसिद्ध कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु जी की जन्म शताब्दी के सुअवसर पर एक अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया जाएगा, इस वेबिनार में भारत सहित जर्मनी, उज़्बेकिस्तान, श्रीलंका,मारिशस, चीन, फ्रांस, जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, पुर्तगाल आदि देशों के विद्वान सामिल होगे। इसमें तत्कालीन भारतीय गांव और ग्रामीण जीवन पर विचार होगा।
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आंचलिक उपन्यास की परिभाषा
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"कभी कभी उपन्यासकार अपने उपन्यास की छोटी सी सीमा के परिसर में ध्वन्यात्मकता की सहायता से अनेक विराट तत्वों का बोध करा देता है। जैसे रेणु जी ने अपने उपन्यास मैला आंचल में गांव के आंचल को नहीं, अपितु राष्ट्र के आंचल पर पड़ने वाले विभिन्न धब्बों और उसे मैला करने वाले अनेक तत्वों का चित्रण किया है। इससे उपन्यास की परिसीमा गांव से बढ़ते बढ़ते राष्ट् की गतिविधियों की व्यंजना करने लगी है।"
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रेणु जी को आंचलिक उपन्यास का जन्म दाता कहा जाता है।
उन्होंने बिहार के जन जीवन पर आधारित उपन्यास मैला आंचल तथा परती परिकथा लिखकर लेखन के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। मैला आंचल उपन्यास में लेखक ने 1942 से लेकर महत्मा गांधी जी के निधन तक की मेरीगंज की परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण किया है। इस उपन्यास में लेखक ने मेरीगंज की लोक संस्कृति तथा,विदा पद नाच,जाट जाट्टिन का खेल,संथाल नृत्य, गांव की वेशभूषा,रहने बहन, धार्मिक विश्वास,भूत प्रेत आदि में विश्वास का पूरी यथार्थ रूप में वर्णन किया है।
रेणु जी का दूसरा आंचलिक उपन्यास " परती परिकथा "
में पूर्णिया जिले के परानपुर गांव और उसके आसपास के इलाके का सजीव चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास में जमींदारी प्रथा के अंत, नमी बन्दोबस्ती, भूमिदान, गांव की नेताओं का अभ्युदय, उनकी बेईमानी,घूस, दलाली, राजनीतिक पार्टियों का संघर्ष, समाचार पत्रों की शक्ति और उनकी अनैतिकता आदि का वर्णन बखूबी किया गया है। यहां लेखक लोक संस्कृति के चित्रण में मैला आंचल से भी आगे निकल गया है। लोक कथाओं में - कोसी मैया की कथा,सुन्दरी नौका की कथा,शामा चकेवा का खेल का अत्यन्त मनोरम वर्णन है।
इन दोनों उपन्यासों में ग्रामांचलों की
धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का (क्लिक करें और पढ़ें)
छोटी छोटी घटनाओं, रीति रिवाजों, राजनैतिक सामाजिक अवधारणाओं आदि के जो चित्र प्रस्तुत किए गए हैं वे पूरे अंचल के संदर्भ में गत्यात्मक हो गये हैं।
रेणु जी का देहांत 11 अप्रेल 1977 को पटना में हुआ।
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