कपट मृग, रामचरितमानस, तुलसी दास
कपटी मृग,kapti Mrig
1.कपट मृग(श्रीराम चरित मानस ) कविता का प्रसंग 2. कपट मृग कविता 3. शब्दार्थ 4.कपट मृग कविता का भावार्थ 5.प्रश्न उत्तर
राम चरित मानस के अरण्य कांड में कपटी मृग का वर्णन है। यह प्रसंग राम कथा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ है जहां से लंका के महाविनाश का बीजारोपण प्रारंभ हो जाता है। राक्षसराज रावण जगजननी माता सीता के अपहरण की योजना बनाकर अपने मामा मारीच नामक दैत्य के पास पहुंच कर अपनी योजना की सफलता के लिए उसे सोने का मृग बनकर पंचवटी में सीता जी के सामने विचरण करने को विवश कर देता है। वह ताड़का राक्षसी का पुत्र बड़ा मायावी था। कविता की भाषा अवधी और छंद चौपाई है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी उसी कपटी मृग का वर्णन करते हुए क्या लिखते हैं। इससे पहले कविता की चौपाई और कुछ कठिन शब्दों के अर्थ जानते हैं, साथ-साथ भावार्थ और प्रश्नोतर भी देखें।
चौपाई
तेहि वन निकट दशानन गयऊ।
तब मारीच कपट मृग भयऊ।।
अति विचित्र कछु बरनि न जाई।
कनक देह मनि रचित बनाई।।
सीता परम रुचिर मन देखा।
अंग - अंग सुमनोहर बेसा।।
सुनहु देव रघुवीर कृपाला।
एहि मृग कर अति सुन्दर छाला।।
सत्यसंध प्रभु बधि करि एहि।
आनहु चर्म कहति बैदेही।।
तब रघुपति जानत सब कारन ।
उठे हरषि सुर काज संवारन ।।
मृग बिलोकी कटि परिकर बांधा।
करतल चाप रुचिर सर सांधा ।।
प्रभु लछिमनहि कहा समुझाई।
फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई।।
सीता केरी करेहु रखवारी ।
बुद्धि बिबेक बल समय बिचारी।।
शब्दार्थ
तेहि -उस। निकट - पास। मृग - हरिण । विचित्र -- अनोखा । सत्यसंध -सत्यप्रतिज्ञ । सुर - देवता ।कटि - कमर । करतल - हथेली । चाप - धनुष । बिपिन - जंगल । कनक - सोना । सुमनोहर - सुन्दर । रघुबीर - राम । निसार - राक्षस । रुचिर - सुंदर ।
भावार्थ
उस वन के पास दशानन रावण और मारीच गए जहां श्रीराम कुटिया बनाकर लक्ष्मण और सीता जी के साथ रहते थे। मारीच नामक दैत्य माया से अपना भेष बदलकर सोने का मृग बन गया। उसका रूप रंग विचित्र था। सोने का शरीर और उसपर मणियों की कलाकृति। बेजोड़ लग रहा था वह नकली हरिण । सीता जी उसे देखकर मोहित हो गई । उन्होंने श्री राम से कहा, -
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हे नाथ ! इस मनोहर स्वर्ण मृग को देखिए। आप कृपा करके मेरे लिए इसके सुंदर चर्म को ला दीजिए।
सीता जी की बातें सुनकर श्रीराम समझ गये कि अब देवताओं के लिए काम करने का समय आ गया है। अर्थात अब राक्षसों के संहार का समय आ गया है। ऐसा सोच कर वे अपने हाथों में धनुष बाण लेकर खड़े गएऔर अपने अनुज लक्ष्मण से बोले,- इस वन में बहुत से राक्षस भेष बदलकर घूमते हैं, इसलिए अपनी बुद्धि से सीता की सुरक्षा करना।
और ऐसा कहकर वे कपटी मृग के पीछे चल दिए।
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प्रश्न उत्तर
1. मारीच कौन था ? रावण उसके पास किस उद्देश्य से गया था ?
उत्तर - मारीच एक मायावी राक्षस था। सीता हरण में सहयोग करने के लिए रावण उसके पास गया था। वह चाहता था कि मारीच के सहयोग से राम लक्ष्मण कुटिया से दूर चले जाए तब सीताजी का हरण आसानी से हो जाए।
2. " कपट मृग" से क्या आशय है ?
उत्तर - कपट मृग से आशय है - धूर्त और मायावी हरिण ।
3. सीता जी ने सोने के हिरण को देखकर श्रीराम से क्या प्रार्थना की ?
उत्तर - सोने के हिरण को देखकर सीता जी ने श्री राम से कहा - इस सोने के हिरण को मारकर इसका सुंदर चर्म ला दीजिए।
4. " सुर काजु " से क्या आशय है ?
उत्तर - राक्षस देवताओं को बहुत परेशान करते थे। श्रीराम का अवतार राक्षसों को मारकर देवताओं की रक्षा करने के लिए ही हुआ था। यहां सुर काजु का आशय राक्षसों को मारकर देवताओं की रक्षा करने से है।
5. हिरण को मारने चलने से पूर्व श्रीराम ने क्या - क्या तैयारियां की ?
उत्तर -- सीता जी के आग्रह पर श्रीराम हिरण को मारने चले । चलने से पूर्व उन्होंने अपना धनुष बाण उठाया और लक्ष्मण जी को समझाया कि वन में बहुत मायावी राक्षस विचरण करते हैं। सीता की सुरक्षा करना।
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लेखक
डॉ. उमेश कुमार सिंह,
भूली नगर, धनबाद, झारखंड
email address
kumarsinghumesh277@gmail.com
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