होली, Holi festival निबंध
1. होली का त्योहार 2. बसंत का मुुख्य त्योहार 3. मस्ती उमंग 4. होलिका दहन 5 हिरण्यकश्यपु की कथा 6. होली के गीत
बसंत ऋतु और होली
Holi होली
बसंत के चरमोत्कर्ष का नाम होली है। इसे बसंत उत्सव अथवा मदनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। बसंत ऋतु की मादकता जब पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है तब रंगों का त्योहार होली आती है। चंपा , चमेली , कनेर, गुलाब, जुही, मालती, बेला, की मादक महक, आम्र-अशोक कटहल – जामुन की किसलय कोंपलों की चमक पिंक – पपीहे की पुकार आदि चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाता है तब आनंद और अलमस्ती का त्योहार होली आती है।
होली के संबंध में कई पौराणिक कथाएं भारतीय समाज में प्रचलित है। एक कथा के अनुसार असुराधिपति सम्राट हिरण्यकशिपु अपने आप को भगवान मानता था और अपनी प्रजा को भी ऐसा ही करने को विवश करता था। परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद श्री विष्णु भगवान का परम भक्त था। इसलिए दोनों पिता-पुत्र एक दूसरे के बैरी बन गए थे।
हिरण्यकशिपु अपने पुत्र की हरिभक्ति से तंग आकर उसे मरवाने की बड़ी कोशिशें की, लेकिन ईश्वर कृपा से वह बार-बार बच जाता था। अंत में वह प्रहलाद को मारने का जघन्य कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा। होलिका प्रहलाद को धधकती अग्नि कुंड में लेकर बैठ गई। उसकी योजना प्रहलाद को जला देने की थी। लेकिन परिणाम उसकी योजना के विपरीत हुआ। उल्टे होलिका जल मरी और हरि कृपा से प्रहलाद बच गया। इस प्रकार दुष्टा होलिका के मरने और प्रहलाद के बचने की खुशी में लोगों ने होली का त्योहार मनाया। इस तरह यह पाप और पुण्य की, अधर्म पर धर्म की और अनीति पर नीति की जीत का त्योहार है।
दूसरी कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने दुष्टों का संहार कर गोपिकाओं के साथ रास रचाया था, तब व्रज में होली हुई थी। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
वस्तुत: होली नवजीवन के संदेश का त्यौहार है। किसानों के मन प्राण आनंद से प्रफुल्लित हो उठते हैं। खेतों में गेहूं जौ, मटर, रहर की बालियों में नवान्न का आगमन होता है। वातावरण नवान्न की खुशबू से महक उठता है। सर्वत्र आशा और हर्षोल्लास का संचार होता है। तब अलमस्त किसान अपने ढोल मंजीरे की ताल पर फाग की सुरीली गीत गा उठते हैं। रंग भरी पिचकारी एक – दूसरे पर छोड़ते हैं। अबीर – गुलाल क पोटलियां खुल जाती हैं । इस दिन स्त्री - पुरुष , बाल – वृद्ध सभी एक-दूसरे के गालों पर गुलाल लगाकर गले मिलते हैं।
आज गांव – गांव में
कुओं की छांव में,
सरसों के फूल खिले, सरसों के फूल।
सज गयी वसुंधरा , ज्योति के सिंगार से,
मंजरी थिरक उठी खिल समीर प्यार से
मंद हो गया पवन फिर सुगंन्धि भार से।
किन्तु लुट गई कली ,प्रीति में गई छली
प्रेम से पगी अली फाग खेलने चली
कुंज में गली – गली ।।
कैसे मनाते हैं होली
होली के दिन लोग किसी धार्मिक स्थल या फिर ग्राम प्रधान के घर से टोलियां बनाकर फाग के गीत गाते हैं और अपने मित्रो, रिश्तेदार,बंधु – बांधवों के यहां जाकर गले मिलते हैं एवं होली की शुभकामनाएं देते हैं। वे उन्हें गुलाल लगाकर अपना प्रेम स्नेह अर्पित करते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग उदंडता करने से भी बाज नहीं आते। न चाहते हुए भी कीचड़, गोबर, पोटिन आदि डालकर रंग में भंग डालते हैं तथा वृद्ध बच्चों को मानसिक पीड़ा पहुंचाते हैं। कुछ लोग तो होली की आड़ में अपनी पुरानी दुश्मनी भी निकालने से बाज नहीं आते। होली – फाग के बहाने सार्वजनिक स्थलों पर अश्लील गीतों का लाउडस्पीकर से प्रसारण करते हैं। यदि इन सब बुराइयों को छोड़ दिया जाय तो होली प्रेम , भाईचारा, खुशी एवं मस्ती का त्योहार है।
होली के पकवान
पुआ, कटहल की सब्जी, दही बाड़ा, भूजिया, रसमलाई, पूरी, अन्य मिष्ठान।
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