आत्मपरिचय Aatam parichay कवि हरिवंश राय बच्चन, 12वीं हिंदी
आत्मपरिचय ( Aatam parichay) कविता , कवि हरिवंश राय बच्चन
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आत्मपरिचय कविता का सारांश
आत्मपरिचय कविता
आत्मपरिचय कविता का शब्दार्थ
आत्मपरिचय कविता की व्याख्या
आत्मपरिचय कविता के प्रश्नोतर
आत्मपरिचय कविता के कवि हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय
हालावाद के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन का जन्म इलाहाबाद में 1907 ई और मृत्यु मुम्बई में 2003 ई में हुई थी। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं - मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकान्त संगीत,मिलनयामिनी, सतरंगिनी, आरती और अंगारे आदि।
1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, आकाशवाणी के साहित्यिक कार्यक्रमों से संबंधित, विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहज अभिव्यक्ति ही हिन्दी साहित्य जगत में इनकी लोकप्रियता का आधार है।
आत्मपरिचय कविता का सारांश (summery of atamprichay poem)
आत्मपरिचय कविता में कविवर बच्चन जी ने अपने प्रेम मय व्यक्तित्व का स्वयं परिचय प्रस्तुत किया वे कहते हैं, मैं अपने जीवन और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हूं। जीवन में नाना प्रकार के कष्ट होते हुए भी प्रेम को अपने मन में जीवित रखे हुए हूं। उनका हृदय किसी के प्रेम में झंकृत है। उनका मन उसी प्रिय के स्नेह में डूबा रहता है। यूं तो लोग अपने अपने सामाजिक समस्याओं में उलझे रहते हैं, परन्तु उनका मन अपने हृदय की भावनाओं में मग्न रहता है। कवि बच्चन को प्रेम के बिना यह संसार अधूरा लगता है। इसलिए वह एक स्वप्निल संसार की खोज में मग्न रहता है।
कवि के हृदय में प्रेम की अग्नि प्रज्वलित रहती है।वह उसी अग्नि की आंच के सहारे जीवन के सुख-दुख को सहने की क्षमता रखता है। कवि के मन में यौवन का नशा है। नशे में कभी कभी वियोग और निराशा भी आता है जिसके कारण उसका मन कभी कभी रोता अवश्य है , परन्तु उसके होंठों पर हंसी खेलती है। वह प्रेम भरी यादों को अपने जीवन की पूंजी मानता है।
कहानी की परिभाषा, तत्व, भेद, उद्भव और विकास
कवि स्वार्थी और दुनियादारी लोगों को नादान समझता है। वह भावनाओं के संसार में जीना चाहता है। इसलिए वह भावनाओं और कल्पना का रोज नया नया संसार बनाता है। वह सांसारिक वैभवशाली दुनिया को ठोकर मारता है।
कवि को अपने रूदन में भी एक प्रकार का संगीत और लय सुनाई पड़ता है। उसका प्रेम चाहे टूटा फूटा खंडहर जैसा क्यों न हों , फिर भी वह राजा महाराजा के महलों से अच्छा है। कवि का रूदन ही इस कविता में छंद बनकर फूटा है। कवि प्रेम का दीवाना है और वह इसी दीवानगी के साथ संपूर्ण विश्व में प्रेम की मस्ती घोल देना चाहता है।
आत्मपरिचय कविता ( atamprichay poem )
मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूं
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं,
पांयनि नूपुर मंजु बजैं (कविता) (क्लिक करें और पढ़ें)
उषा (कविता) (क्लिक करें और पढ़ें)
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सांसों के दो तार लिए फिरता हूं।
मैं स्नेह सुरा का पानकिया करता हूं
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूं
जग पूछ रहा उनको जो जंग को गाते
मैं अपने मन का गान किया करता हूं।
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूं,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूं,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूं !
मैं जला हृदय में अग्नि , दहा करता हूं
सुख दुख दोनों में मग्न रहा करता हूं,
जग भवसागर तलने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हू।
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूं,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूं,
जो मुझको बाहर हंसा, रुलाती भीतर,
मैं हाय, किसी की याद लिए फिरता हूं।
कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना ?
नादान वही है, हाय, जहां पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग , जो इस पर भी सीखें?
मैं सीख रहा हूं, सीखा ज्ञान भुलाना!
मैं और, और जंग और, कहां का नाता,
मैं बना बना कितने जंग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग सेक्स पृथ्वी को ठुकराता।
मै निज रोदन में राग लिए फिरता हूं,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूं।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा , तुम कहते छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाएं,
मैं दुनिया का हूं एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूं,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूं
जिसको सुनकर जंग झूमे,झुके , लहराए
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूं।
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आत्मपरिचय कविता का शब्दार्थ ( atamprichay poem word meaning )
दो बैलों की कथा (क्लिक करें और पढ़ें)
जग जीवन – सांसारिक गतिविधियां। झंकृत – तारों को बजाकर स्वर निकालना । सुरा – मदिरा । पान करना – पीना । ध्यान करना – परवाह करना। निज – अपना ।उर – हृदय । उद्गार – भाव । उपहार – भेंट । अपूर्ण – अधूरा । भाता – अच्छा लगता । स्वप्नों का संसार – नयी कामनाओं वाला मौलिक संसार। अग्नि – आग । मौज – किनारे। यौवन – जवानी । उन्माद – पागलपन। अवसाद – निराशा ।
यत्न – कोशिश । नादान – भोला मूढ़ – मूर्ख ।रोदन – रोना । राख – प्रेम ।भूप – राजा ।प्रासाद – महल । खंडहर – टूटा हुआ भवन दीवाना – पागल । मादकता – मस्ती।
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आत्मपरिचय कविता की संप्रग व्याख्या
मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूं
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूं,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सांसों के दो तार लिए फिरता हूं।
व्यख्या
कवि कहते हैं, यद्यपि मेरे कंधे पर सामाजिक जिम्मेदारी और दायित्वों का भार बहुत है। मैं अपने सामाजिक दायित्व के प्रति जागरूक हूं, फिर भी मेरा हृदय प्रेम से लबालब भरा हुआ है। मुझसे किसी ने प्रेम किया है, मैं उसी के प्रेम में दीवाना हूं और उसी के प्रेम की झंकार में खोया रहता हूं।
यहां ' जग जीवन के भार ' से आशय सांसारिक रिश्ते नाते से है। कवि अपनी प्रिया को अपार प्रेम अर्पित करना चाहता है।
व्याख्या
कवि कहते हैं कि मैं प्रेम रूपी मदिरा का पान किया करता हूं। आशय है कि वे सदा प्रेम भाव में तल्लीन रहते हैं। संसार मुझे कुछ कहे, मुझे इसकी परवाह नहीं है। मैं इस बात पर ध्यान नहीं देता। यह संसार उन्हीं को पूजता है जो संसार को पूजता है। अर्थात लोग सामाजिक सरोकार वाले कवियों को ज्यादा पूछते हैं। मैं तो अपनी कविताओं में केवल अपने बारे में लिखता हूं। मैं अपने गीतों में अपने मन के भावों को ही व्यक्त करता हूं।
व्याख्या
कवि का कहना है कि मैं इस संसार के प्रति तरह तरह के मनोभाव रखता हूं। मैं उन्हीं मनोभावों को लिए फिरता हूं। मैं इस संसार को अपने मन का कोमल भाव प्रदान करना चाहता हूं। संसार में प्रेम का अभाव है, इसलिए यह अधूरा है। प्रेम विहीन संसार मुझे नहीं भाता। मैं अपने अनुरूप एक प्रेम मय संसार की रचना करना चाहता हूं।
व्याख्या
कवि कहते हैं मैं स्वयं अपने हृदय में प्रेम की अग्नि प्रज्वलित रखता हूं और मैं उसी में सुलगता भी रहता हूं। प्रेम की दीवानगी के कारण ही मैं सुख दुख के बीच तल्लीन रहता हूं। यह संसार विपदाओं का सागर है परन्तु मैं प्रेम रूपी नांव से उस सागर को पार कर लेता हूं। यही प्रेम मुझे किनारे पर ला देता है।
व्याख्या
कवि कहते हैं कि मेरे मन में जवानी का उन्माद सवार रहता है और मैं अपनी प्रेमिका से मिलने को बेचैन रहता हूं। मैं दीवानों की तरह जीता हूं। मेरी दीवानगी भी मुझे निराश कर देती है। मैं वियोग में कसमसाने लगता हूं। मैं अपनी प्रेमिका को याद कर मन ही मन रोता रहता हूं परंतु ऊपर से हंसता रहता हूं।
व्याख्या
इस संसार में सबने जीवन सत्य को जानने की बड़ी कोशिश की , लेकिन इस रहस्य को आज तक कोई भी नहीं जान सका। नादानी के कारण जिसे जहां भोग विलास की सामग्री मिल जाती है वह वहीं मग्न हो जाता है। वह भूल जाता है कि वह संसार के जाल में उलझे गया है। कवि कहते हैं कि इतना समझने के बाद भी मैं सांसारिक पाठ पढूं। मुझसे यह नहीं होगा।
व्याख्या
कवि कहते हैं, मैं अलग हूं। दुनिया की चार मुझसे अलग है। मैं दुनियादारी की जगह भावनाओं को महत्व देता हूं। इसलिए इस संसार से मेरा कोई मेल ही नहीं है। मैं रोज रोज कल्पनाओं का नया नया संसार बनाता हूं और संतुष्ट न हो ने पर उसे नष्ट कर देता हूं। मुझे सुख समृद्धि , धन वैभव की कोई चाह नहीं।
व्याख्या
कवि कहते हैं, मेरे रूदन में भी प्रेम छलकता है। मैं अपने गीतों में प्रेम के आंसू रोता हूं। मेरी वाणी कोमल और शीतल है, फिर भी उसमें प्रेम की तीव्र लालसा है। ऊर्जा है, ऊष्मा है। प्रेम में निराश होने पर मेरा जीवन खंडहर बन गया है, फिर भी यह राजाओं के महलों से मेरे लिए अच्छा है।
व्याख्या
कवि कहते हैं, जिसे तुम गाना समझते हो वह वास्तव में मेरे हृदय का रूदन है। जब मैं प्रेम के उन्माद में कुछ बोलने लगता हूं तब तुम इसे छंद बनाना कहते हो। वास्तव में मेरे छंद मेरे रूदन है। मैं कवि नहीं हूं, प्रेम दीवाना हूं। मेरा हृदय प्रेम से लबालब भरा है।
व्याख्या
कवि कहते हैं, मैं संसार में प्रेम दीवानों की तरह विचरण करता हूं। जहां भी जाता हूं अपनी दीवानगी बिखेर देता हूं। मेरे काव्य में मस्ती छाई रहती है। मैं प्रेम और यौवन का गीत गाता हूं। मेरे गीत सुनकर लोग मस्त हो जाते है। मैं इसी मस्ती का संदेश देता हूं।
आत्मपरिचय कविता का प्रश्नोतर questions and answers
1.प्रश्न कविता एक ओर जग जीवन का भार लिए फिरता हूं की बात करती है और दूसरी तरफ मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूं -- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है ?
उत्तर -- इस कविता में कविवर बच्चन जी जीवन का भार ढोने की बात करते हैं। इस कथन से उनका आशय है कि वे इस संसार से तटस्थ नहीं है। वे संसार की चिंताओं के प्रति सजग है। वह अपनी कविताओं के माध्यम से संसार को कष्टहीन और भारहीन करना चाहते हैं।
दूसरी बात यह है कि इस मार्ग पर चलते हुए कुछ बातें कवि को कचोटती है। संसार का कुछ व्यवहार उसे पीड़ित करता है । संसार की बहुत सी बातें उसका रास्ता रोक देती हैं। वह ऐसी कुप्रथाओं की परवाह नहीं करता।
2. प्रश्न - जहां पर दाना रहते हैं, वही नादान भी होते हैं - कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्तर - कवि का मत है कि संसार में लीन होकर रोटी , कपड़े और मकान के व्यूह में फंसे रहना नादानी है। कवि सांसारिक भोगों को व्यर्थ बताने के लिए ऐसा कहा है।
3.प्रश्न - मैं और, और जंग और कहां का नाता - पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर - यहां और शब्द का प्रयोग तीन अर्थ में हुआ है। इसलिए यहां यमक अलंकार है। पहले और तीसरे और का अर्थ है - अन्य अथवा भिन्न।
पहले और का अर्थ है - विशेष रूप से भावना प्रधान व्यक्ति। तीसरे और का अर्थ है - सांसारिकता में डूबा हुआ आदमी। दूसरे और का अर्थ है तथा। इस तरह यहां और शब्द अनेकार्थी शब्द है।
4 प्रश्न - शीतल वाणी में आग - के होने का क्या आशय है ?
कवि ऐसा क्यों कहता है कि शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं।
उत्तर - शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं का आशय है कि कवि का स्वर कोमल अवश्य है परन्तु उसके मन में विद्रोह की भावना प्रबल है। वह प्रेम विहीन संसार को ठुकराना चाहता है।
1. आत्मपरिचय कविता के आधार पर कवि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -- कवि का स्वभाव सबसे अलग है। वह प्रेम दीवाना है।
वह प्रेम, और कल्पना के संसार में जीना चाहता है। उसका हृदय भावुक हैं और प्रेम भाव से लबालब है। उसके मन में प्रेम की ज्वाला सदा प्रज्वलित रहती है। वह सांसारिकता से दूर कल्पना के आधार पर प्रेम भरी संसार की रचना करना चाहता है। वह अपने ही जैसे सारे संसार को प्रेम और मस्ती में डूबा हुआ देखना चाहता है।
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2. प्रश्न कवि को यह संसार अपूर्ण क्यों प्रतीत होता है ? वह क्या चाहता है ?
उत्तर - कवि भावुक हैं। वह भावनाओं ऊ अधिक महत्व देते हैं। वह सांसारिक जीवन में समय खपाना नहीं चाहते हैं। वह प्रेम की कोमल भावनाओं में जीना चाहते हैं। वह अपने लिए कल्पनाओं के आधार पर एक कोमल संसार रचना चाहता है।
3.प्रश्न। इस कविता में किसे नादान कहा गया है और क्यों ?
उत्तर - जो सांसारिक मोह में डूबा हुआ है , कवि उसे नादान कहते हैं, क्योंकि कवि प्रेम की कल्पना में सरा बोर दुनिया का पक्षधर हैं।
लेखक
डॉ उमेश कुमार सिंह
भूली, धनबाद, झारखण्ड
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