अमरकंटक की यात्रा Amarkantak Yatra
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अमरकंटक की यात्रा Amarkantak Yatra
अमरकंटक, अमरकंटक किस राज्य में है। अमरकंटक का रहस्य, अमरकंटक से निकलने वाली नदियां,
अमरकंटक भारत देश के मध्य प्रदेश राज्य में एक ऐसा पर्वतीय और वन्य प्रदेश है जहां से दो पवित्र नदियां निकलती हैं। एक सोन और दूसरी नर्मदा। नर्मदा के उद्गम स्थल होने के कारण इस स्थान का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। अनेक पर्यटक यहां सालो भर घूमने आते हैं। आइए हम अमरकंटक की सुन्दरता और इसके धार्मिक महत्व को विस्तार से जानें।
कटनी से बिलासपुर जाने वाली रेललाइन पर पेंडरा रोड स्टेशन है। घने जंगल और पहाड़ों के कारण रास्ता कठिन और दुर्गम है। पेंडरा रोड स्टेशन से बस द्वारा जाने से अमरकंटक चालीस किलोमीटर पड़ता है। रास्ते के दोनों ओर ताड़ के पेड़ की तरह लम्बे लम्बे सराई नामक वृक्षों के वन हैं। टेढ़े-मेढ़े रास्तों के किनारे कल कल , छल छल करतीं नदी नाले मन को मोह लेते हैं।
महाकवि कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में आम्रकूट नामक पर्वत का उल्लेख है। यहां का अनुपम सौन्दर्य देखकर तो यक्ष भी मोहित हो गया था। आम्रकूट विंध्य पर्वत माला का पूर्वी कोना है ।इसी पूर्वी क्षेत्र में अमरकंटक स्थित है। आम के पेड़ और कांटे दार झारियो से यह वन प्रदेश भरा पड़ा है। इन्हीं वनों के मध्य भाग में एक कुंड है , जहां से नर्मदा निकालती है। यहां दसवीं ग्यारहवीं सदी के बने मंदिर हैं जिनका निर्माण कलचुरि राजाओं ने करवाया था। कलाकृति की दृष्टि से ये मंदिर अनुपम हैं।
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प्रकृति अपनी संपूर्ण छटा बिखेरती हुई विश्व सुन्दरी सी प्रतीत होती है। रंग बिरंगी पेड़ों पर तरह तरह के फूल फल। जल प्रपात और वनस्पतियों ने वातावरण को आद्र बना दिया है। कुछ दूर तक तो नर्मदा अदृश्य हो जाती है। आगे लगभग छः किलोमीटर चलने पर कपिल धारा नामक स्थान है। यहां नर्मदा नदी की धारा दूध जैसी सफेद हो जाती हैं। यह दुग्ध धारा के नाम से भी प्रचलित है। यह स्थान इतना रमणीय है कि बस पूछो मत।एक बार आने से मन नहीं भरता। बार बार आने को जी चाहता है। दूध की तरह स्वच्छ जल धारा के पास जाकर सारी थकान मिट जाती है।
नर्मदा और सोन की प्रेम कहानी
नर्मदा और सोन दोनों विपरीत दिशा में बहते हैं। इसकी भी अनूठी कथा प्रचलित है। शोणभद्र ( सोन ) पुरुष और नर्मदा स्त्री। दोनों का जन्म अमरकंटक में हुआ। दोनों साथ साथ पले बढ़े। दोनों ने अगाध प्रेम था। दोनों की विवाह की तैयारियां भी हो गई थी। लेकिन तभी नर्मदा किसी बात पर रूठ गयी। कहते हैं कि नर्मदा को पता चल गया था कि सोन जुहिला नामक दासी से प्रेम करते हैं। इस बात पर नर्मदा एक दम रूठकर आजीवन कुंवारी रहने की कसम लेकर विपरीत दिशा में चल दी। शोणभद्र जब अपनी गलती का अहसास हुआ तो वे कुछ दूर तक नर्मदा को मनाने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़े, लेकिन नर्मदा नहीं मानी।
अमरकंटक से दस किलोमीटर दूर कबीर चौड़ा है जहां कबीरदास के पद चिन्ह है। कहते हैं कि महात्मा कबीर अपने शिष्यों के साथ यहां आए थे। कबीर के अनुयायियों के लिए यह पवित्र स्थान है।
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अमरकंटक के निवासियों का मुख्य धंधा दूध का व्यापार करना है। वे गाय और भेड़ पालन करते हैं। यहां पहाड़ों के ढलान पर छोटे छोटे खेत हैं जिनमें मक्का, कोदों, कुटकी,राई आदि की खेती होती है। यहां के वनों में जड़ी बूटियां भी खूब मिलती हैं। गुलबकावली और चमेली के फूल भी यहां काफी होते हैं।
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अमरकंटक के आसपास के गांवों में गोंड और बैगा आदिवासियों का बसेरा है। किसी समय मध्य प्रदेश में गोंड राजाओं का शासन था। रानी दुर्गावती ने नर्मदा के किनारे जबलपुर के निकट गढामंडला में शासन किया था। यहां रानी दुर्गावती का बनाया क़िला आज भी सुरक्षित है। गोंड किसी समय में बड़े सुसंस्कृत थे।
आजकल गोडों का मुख्य धंधा खेती करना और तेंदू पत्ते से बीड़ी बनाने का है। इनमें राजगोंड अधिक प्रगति कर गये हैं। बैगा आदिवासी शेर को अपना भाई मानते हैं और रात में घर के बाहर उनके लिए पानी रख देते हैं। बैंगा झारभूक में बड़ी तेज़ होते हैं। शिकार करना इनका मुख्य धंधा है। संध्या होते होते दोनों जनजातियों के लोग गीत नृत्य में खो जाते हैं। करमा,शैलजा और रीना इनके प्रमुख नृत्य हैं। करमा में स्त्री पुरुष साथ साथ नाचते हैं। शैला सिर्फ पुरुषों का और रीना सिर्फ स्त्रियों का नृत्य है।
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