स्वतंत्रता संग्राम की कहानी swatantrata sangram
स्वतंत्रता संग्राम की कहानी
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भारत लगभग 400 वर्षों तक विदेशियों का गुलाम रहा। यहां फ्रांसिसी भी आए, अपनी कालोनियां बसाए, पुर्तगाली आए। अंग्रेज भी व्यापार करने के बहाने आए। 1757 ई में प्लासी विजय के बाद अंग्रेजों का भारत पर पूरी तरह राजनीतिक अधिकार हो गया। उन्होंने हमारे देशवासियों पर बहुत अत्याचार किए। कठिन संघर्षों और बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता पाने के लिए हमारे पूर्वजों को अंग्रेजी शासन के कितने अत्याचार झेलना पड़ा है, आइए, उनके बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करें।
जालियांवाला बाग कांड
1914 ई में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारत के नेताओं को यह उम्मीद थी कि यदि इस युद्ध में वे इंग्लैंड का साथ देंगे तो उन्हें अंग्रेजी सरकार से कुछ सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी। लेकिन उम्मीद के विपरीत भारत को रौलट एक्ट का सामना करना पड़ा। इस काले कानून का सर्वत्र विरोध किया गया। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ऐसी ही एक सभा चल रही थी। इसमें लगभग बीस हजार स्त्री पुरुष और बच्चे सामिल थे। सभा चल रही थी कि अंग्रज अफसर जनरल डायर ने उन निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा दी। इसमें हजारों स्त्री-पुरुष मारे गए। इस निर्मम हत्या काण्ड से सारा देश लहर उठा। सरदार ऊधम सिंह ने जनरल डायर को इंग्लैंड जाकर गोलियों से भून डाला। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा दी गई नाईट हुड की उपाधि लौटा दी।
असहयोग आंदोलन ( 1920-22)
असहयोग आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजी सरकार का सहयोग न करके उनके कारवाही में बाधा उत्पन्न करना था। 1920 में कांग्रेस महासमिति अधिवेशन जो कलकत्ता में हुआ था, महात्मा गांधी ने कहा, "अंग्रेजी सरकार शैतान है, जिसके साथ सहयोग संभव नहीं है। अंग्रेजी सरकार को अपनी भूलों का कोई दुःख नहीं है। स्वराज्य प्राप्ति के लिए अब हमें अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनानी चाहिए।" कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई। असहयोग आंदोलन में मुख्य बातें थीं -- सरकारी उपाधि और अवैतनिक पदों को छोड़ दिया जाए। सरकार द्वारा आयोजित उत्सवों को बहिष्कार किया जाए। सरकारी स्कूलों, कालेजों का बहिष्कार एवं वकीलों द्वारा न्यायालय का बहिष्कार किया जाए। विदेशी सामान का बहिष्कार हो।
असहयोग आंदोलन की सफलता के लिए गांधी जी द्वारा अपनाए गए कार्यों में शराब का बहिष्कार, हिन्दू मुस्लिम एकता एवं अहिंसा पर बल, छुआछूत से परहेज़, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग, कड़े कानूनों का सविनय अवज्ञा करना,कर न देना आदि सामिल था। गांधी जी के साथ साथ कितने नेताओं ने अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियां लौटा दी। जमनालाल बजाज ने रायबहादुर की पदवी वापस कर दी। विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि की स्थापना की गई।
नमक कानून तोड़ना
अंग्रेजी सरकार ने नमक पर प्रतिबंध लगा रखा था। यह कानून भारतीयों के हित में नहीं था। गांधी जी ने इस कानून को तोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने 12 मार्च 1930 को " डांडी यात्रा " प्रारम्भ की। वे साथियों के साथ डांडी पहुंचे। वहां उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ दिया। इसी तरह देश के विभिन्न हिस्सों में नमक कानून तोड़ा गया। फलस्वरूप गांधी जी सहित अनेक नेताओं को गिरफतार कर लिया गया।
क्रांतिकारियों का योगदान
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी दल की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रही है। प्रारंभ में यह आंदोलन बंगाल तक सीमित था, परन्तु यह शीघ्र ही संपूर्ण भारत में फैल गया। उनका कहना था कि देश के लिए अपने प्राण दीजिए पर पहले अपने शत्रु के प्राण लीजिए। इन क्रांतिकारियों में भूपेन्द्र नाथ, श्याम जी कृष्ण वर्मा,वीर सावरकर, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,लाला हरदयाल आदि प्रमुख थे।
काकोरी काण्ड 1925
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में काकोरी काण्ड का बड़ा महत्व है। क्रांतिकारियों को हथियार गोला बारूद खरीदने के लिए पैसे की जरूरत थी। उन्होंने इस काम के लिए सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी नामक स्थान पर क्रांतिकारियों ने रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूट लिया। इस कांड ने तहलका मचा दिया। 40 लोगों को गिरफतार कर लिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह तथा असफाकउल्लाह खां को फांसी दी गई। चन्द्रशेखर आजाद भी इस कांड में थे, लेकिन पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई।
क्रांतिकारियों में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के नाम बड़े आदर से लिया जाता है। इन्होंने लाला लाजपत राय की हत्या के प्रमुख कारण सांडर्स को गोलियों से भून डाला। सरदार भगत सिंह ने बड़ी कुशलता से 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेंबली में बम फेंककर सनसनी फैला दी। गिरफ्तारी के बाद भगतसिंह ने कहा - " बहरों को सुनाने के लिए बमों की आवश्यकता है।" 23 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई।
आजाद हिंद फौज
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सशस्त्र क्रांति के समर्थक हो गये थे। 1941 में वे अफगानिस्तान, रूस होते हुए जर्मनी जा पहुंचे और वहां हिटलर से मिले। फिर वे सिंगापुर आए। वहीं उन्होंने रासबिहारी बोस के साथ मिलकर 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद फौज की स्थापना की। बही आजाद हिंद फौज का गठन किया गया। उन्होंने " तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। दिल्ली चलो। और, जय हिन्द। " का नारा दिया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने असम मोर्चा पर जमकर युद्ध किया। मणिपुर राज्य के दो तिहाई भाग और नागालैंड पर विजय प्राप्त कर ली। वहां तिरंगा झंडा भी फहराया गया।
भारत छोड़ो आंदोलन
जुलाई 1942 में कांग्रेस की वर्धा में एक बैठक हुई। इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर अंग्रेजों से भारत छोड़ने की मांग की गई। 8 अगस्त 1942 को मुम्बई में एक बैठक हुई जिसमें गांधी जी ने अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव " भारत छोड़ो " प्रस्तुत किया।महात्मा गांधी जी के ' भारत छोड़ो ' नारे के महत्व को सबने एक स्वर से स्वीकार कर लिया। 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में एक स्वर से सभी ने भारत छोड़ो का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया कहा गया कि भारत में ब्रिटिश शासन का अंत शीध्र होना चाहिए।
8 अगस्त 1942 को ' भारत छोड़ो ' का नारा बुलंद करने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति की एक बैठक मुंबई मैं बुलाई गई। गांधी जी ने अपने भाषण में यह घोषणा की, कि इस क्षण से आप में से हर एक अपने को आजाद आदमी या आजाद औरत समझे। हम भारत को आजाद कराएंगे या इस कोशिश में मर जाएंगे। उसी रात यह प्रस्ताव भारी बहुमत से पास हुआ कि यदि अंग्रेज भारत को शीघ्र स्वतंत्र नहीं कर देते तो हमें अपनी आजादी की लड़ाई अभी से प्रारंभ कर देनी चाहिए।
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इस प्रस्ताव से ब्रिटिश सत्ता का सिंहासन हिल गया। इस प्रस्ताव को ठुकरा कर 8 अगस्त 1942 को आधी रात के बाद और 9 अगस्त के सूर्योदय से पूर्व गांधीजी, कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा अन्य प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर नजरबंद कर लिया गया। 1 सप्ताह के भीतर कांग्रेस के सभी छोटे बड़े नेता कार्यकर्ता जेलों में बंद कर दिए गए। पूरे देश में गिरफ्तारीओं का दौर शुरू हो गया परिणाम था की सारे देश में जबरदस्त विद्रोह की लहर दौड़ गई। इस आंदोलन के साथ जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, श्रीमती अरुणा आसफ अली जैसे समाजवादी नेता भी शामिल हो गए। सबका मिला जुला प्रयास रंग लाया, और हमारा भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया।
Questions and answers, प्रश्न और उत्तर
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* प्रथम विश्व युद्ध कब प्रारम्भ हुआ ? भारत को इसमें सहयोग करने के बदले क्या मिला ?
उत्तर - प्रथम विश्व युद्ध 1914 में प्रारंभ हुआ। भारत को इसमें सहयोग के बदले रालेट एक्ट मिला। यह भारतीयों के लिए एक काला कानून था।
* जालियांवाला बाग कांड कब और कहां हुआ ? इसमें क्या दुर्घटना हुई ?
उत्तर - 13, अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जालियांवाला बाग कांड हुआ। अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने हजारों स्त्री-पुरुषों पर अकारण ही गोलियां बरसा दी। इस कांड में हजारों निहत्थे लोगों की जान चली गई।
* असहयोग आंदोलन कब हुआ ? इसके लिए लोगों ने क्या क्या त्याग किए ?
उत्तर - असहयोग आंदोलन 1920 को हुआ। गांधी जी के आह्वान पर हजारों लोगों ने सरकारी नौकरियों का त्याग कर दिया। बच्चों ने अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाई करना छोड़ दिया। सरकारी सम्मान और पुरस्कार त्याग दिए गए।
* डांडी यात्रा कब हुई ? यह क्यों की गई ?
उत्तर - 12 मार्च 1930 को डांडी यात्रा प्रारम्भ हुई। अंग्रेजों ने नमक बनाने पर प्रतिबंध लगा रखा था। गांधी जी ने इस कानून को भंग करने के लिए यह यात्रा की। उन्होंने अपने साथियों के साथ डांडी पहुंचकर नमक बनाकर कानून तोड़ा।
* क्रांतिकारियों के इतिहास में काकोरी काण्ड का क्या महत्व है ?
उत्तर - क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे की जरूरत थी। उन्होंने काकोरी नामक स्थान पर रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूट लिया। इस केस में 40 लोगों को पकडा गया। राम प्रसाद बिस्मिल, असफाकउल्लाह खां, रोशन सिंह तथा राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। इससे माहौल पूरी तरह गर्मा गया।
* भगतसिंह को कब और किन किन के साथ फांसी दी गई ?
उत्तर - भगतसिंह , राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई।
* सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान दिया ?
उत्तर - सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने विदेशों में जाकर भारत की स्थिति को रखा।वे जर्मनी में हिटलर से मिले। उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना कर अंग्रेजों से लोहा लिया। आसाम, मणिपुर और नागालैंड में विजय प्राप्त कर ली।
* भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर - जुलाई 1942 में बर्धा में एक बैठक हुई जिसमें एक प्रस्ताव पारित कर अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा गया। 8 अगस्त 1942 को मुम्बई में एक बैठक हुई जिसमें गांधी जी ने अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव भारत छोड़ो प्रस्तुत किया और देश की जनता को करो या मरो का नारा भी दिया। अंग्रेजी सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने का बहुत प्रयास किया लेकिन यह आंदोलन चलता रहा। और, अंततः सभी के प्रयास से हमारा देश स्वतंत्र हुआ।
* क्रांतिकारियों का क्या कहना था ?
उत्तर - क्रांतिकारियों का कहना था -- " देश के लिए अपने प्राण दीजिए पर पहले अपने शत्रुओं के प्राण लीजिए।""
* सुभाष चन्द्र बोस ने कौन कौन से तीन नारे दिए ?
1. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
2.दिल्ली चलो।
3. जय हिन्द।
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लेखक
डॉ उमेश कुमार सिंह, भूली धनबाद झारखंड।
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