A biography of Ani Besent , एनी बेसेंट का जीवन परिचय


 A biography of Ani Besent , एनी बेसेंट का जीवन परिचय

एनी बेसेंट एक महान महिला थी। उनकी महानता का पता कैसे चलता है और भारत के लिए उन्होंने क्या क्या कार्य किए है, जिसके लिए हम इंग्लैंड में जन्मे इस  महिला को महान नारी की संज्ञा देकर सम्मानित करते हैं। इतना ही नहीं , उन्होंने भारत की अशिक्षा, गरीबी और गुलामी को दूर करने के लिए क्या सब किया है, यहां विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे‌।

एनी बेसेंट का जन्म, शिक्षा और विवाह

एनी बेसेंट का जन्म अक्टूबर 1847 को लंदन में हुआ था। उनके बचपन का नाम एनी वुड था। एनी की मां आयरिश महिला थी इसलिए एनी अपने आप को आयरिश कहलाना अधिक पसंद करती थी। एनी के पिता बड़े विद्वान थे, उन्हें कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। लेकिन जब एनी पांच वर्ष की थी तभी उनकी मृत्यु हो गई थी।

एनी का विवाह दिसंबर 1867 में एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो पादरी था लेकिन एनी की उससे हमेशा वैचारिक मतभेद रही।  जीवन जैसे तैसे चलता रहा। 1873 में केवल 26 वर्ष की आयु में वह घर से निकाल दीं गई।

1874 में एनी बेसेंट एक संस्था ' नेशनल सेकुलर सोसायटी ' में सामिल हो गई। वह पूरे देश में घूम घूमकर धर्म और राजनीति का प्रचार प्रसार करने लगीं। 1887 में उन्होंने मजदूरों के लिए आठ घंटे काम के लिए संघर्ष किया और सफल भी हुईं। 1889 का वर्ष उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना। उन्होंने इसी वर्ष थियोसोफिकल सोसायटी ज्वाइन की। भारत में इसकी स्थापना 1879 में मैडम व्लैवस्की और आलकोट ने मिलकर की थी। इस संस्था के उद्देश्य थे -- विश्व बंधुत्व की स्थापना और आर्य और पूर्वी धर्म, भाषा और विज्ञान के अध्ययन को बढ़ावा देना।

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एनी बेसेंट ने एक पुस्तक लिखी थी, नाम था ' इंग्लैंड, इंडिया एंड अफगानिस्तान' ।  यह पुस्तक 1879 में पहली बार लंदन में प्रकाशित हुई थी। इसमें बताया गया था कि किस तरह एक व्यापारी कंपनी भारत की स्वामिनी बन बैठी। एनी बेसेंट ने बताया कि जब भारत की निर्धनता की बात सोचते हैं तो आंखों के सामने जोंकों का दृश्य आ जाता है जिसने भारत का धन चूसा है। यह पहला अवसर था जब इंग्लैंड का एक नागरिक इतने तीखे और स्पष्ट शब्दों में इंग्लैंड के साम्राज्य वादी नीतियों का भंडाफोड़ किया था।

एनी बेसेंट का भारत आगमन

एनी बेसेंट 16 नवंबर 1893 को भारत आ गई। भारत को वह पवित्र स्थान मानती थी। वह मानती थी कि यहां का पवित्र धर्म सभी धर्मों की जननी है। उनकी दृष्टि में भारत की संस्कृति विश्व के सभी संस्कृतियों का केन्द्र है। उन्होंने डॉ भगवान दास के साथ मिलकर वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों का अध्ययन किया। वह जहां भी जाती , लोग उनका बहुत आदर करते। लेकिन वह भारत की दुर्दशा देखकर हैरान थीं।

शिक्षा के क्षेत्र में एनी बेसेंट का योगदान

एनी बेसेंट ने इंग्लैंड में शिक्षा के उत्थान के लिए तो काम किया ही, भारत में भी उनका शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय योगदान रहा है।वह मानती थी कि जब तक भारत के लोग पूरी तरह शिक्षित नहीं हो जाएंगे तब तक वे परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ने में कामयाब नही होंगे। उन्होंने भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति का अध्ययन किया।वह अपनी नई शिक्षा नीति में पूर्व और पश्चिम के आदर्शों को मिलाना चाहती थीं। उन्होंने 7 जुलाई 1908 को  बनारस के एक छोटे से घर में अपने सपनों का शिक्षा केन्द्र स्थापित की। एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गयीं।

एनी बेसेंट और कांग्रेस

1917 ई में कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन में एनी बेसेंट को अध्यक्ष चुना गया। किसी भी स्वतंत्रता सेनानी के लिए यह बड़ी बात थी। इस सम्मेलन में 4000 सदस्य उपस्थित थे। एनी बेसेंट एक जानी-मानी वक्ता थीं।

स्वतंत्रता आंदोलन में एनी बेसेंट का योगदान

एनी बेसेंट भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के पक्ष में थीं। 1895 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा होम रूल प्रस्ताव का समर्थन जुटाने के लिए एनी बेसेंट ने कामनवेल्थ नामक साप्ताहिक पत्रिका निकलना शुरू कर दी। इसके पक्ष में उन्होंने जगह जगह भाषण भी दिया। इससे अंग्रेजी सरकार विचलित हो गई। एनी बेसेंट का जगह जगह सम्मान होने लगा। जिस घोड़ा गाड़ी पर एनी बेसेंट बैठकर भाषण देने जाती, उस गाड़ी से घोड़े को अलग कर नौजवान स्वयं अपने कंधे पर गाड़ी खींचकर ले जाते। चारों ओर एनी बेसेंट की जय-जयकार होती।

1929 ई में एनी बेसेंट बुडापेस्ट यूरोपियन कांग्रेस तथा शिकांगो वल्ड कांग्रेस में अध्यक्षता करने गई । आगे चलकर उनका स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा। 20 सितंबर 1933 को वह सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो गई परन्तु उनका नाम भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेगा।

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Posted by Dr. Umesh Kumar Singh, Bhuli Nagar, Dhanbad, Jharkhand.  विशेष जानकारी के लिए About us देखें।

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