सच्ची मित्रता, श्रीराम सुग्रीव की मित्रताRamsugriv mitrta
सच्ची मित्रता
Sachchi mitrta poem 8 class
राम सुग्रीव मित्रता, Ramcharitmanas
Ram sugriv mitrta, Ramcharitmanas, kishkindha,mitrta ke gun, kise mitra manna chahiye, सच्ची मित्रता का महत्व, सच्ची मित्रता की विशेषता, सच्ची मित्रता क्या होती है ? सच्ची मित्रता के उदाहरण, था सुग्रीव की मित्रता सच्ची मित्रता के उदाहरण हैं।
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
जिन्ह के असि मति सहज न आई। ते सठ कति हठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रकटइ अवगुनन्हि दुरावा।।
देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित करई।।
बिपत्ति काल कर सत गुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुण ऐहा।।
आगे कह मृदु बचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई।।
जाकर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
सेवक सठ, नृप कृपण, कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।।
सच्ची मित्रता की पहचान
यह प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीराम चरित मानस के किष्किन्धाकाण्ड से अंकित है जिसमें श्रीराम ने सुग्रीव को सच्ची मित्रता के बारे में बताया हैं। श्रीराम कहते हैं --
जो अपने मित्र के दुख से दुखी नहीं होते उन्हें देखने में भी पाप लगता है। मतलब है कि मित्र के दुख से दुखी और मित्र के सुख से सुखी होना चाहिए।
अपने पहाड़ के समान दुख को धूल के समान और मित्र के धूल समान दुख को पहाड़ के समान समझना चाहिए। अर्थात मित्र के छोटे से छोटे दुःख को बड़े दुःख समझकर दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
जिनके मन में ऐसी बातें नहीं आती है, वैसे मूर्ख को कभी मित्रता नहीं करनी चाहिए।
सच्चा मित्र अपने मित्र को बुरे रास्ते से हटाकर अच्छे मार्ग पर लाता है। और उसके अवगुण को छिपाकर उसके गुणों का बखान करता है। उसकी प्रशंसा ही करता है।
सच्चा और अच्छा मित्र अपने मित्र को कुछ देने में संकोच नहीं करता है और अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद ही करता है।
आपत्ति विपत्ति में सहयोग करने वाले लोग ही सच्चा मित्र हैं, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
कुछ ऐसे भी कपटी मित्र होते हैं जो सामने में मीठी मीठी बातें करते हैं और पीठ पीछे बुराई करते हैं। ऐसे मित्रों से हमेशा दूर रहना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है, मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, दुषचरित्र नारी, और कपटी मित्र, ये चारों कांटे के समान दुखदाई होते हैं। इनसे हमेशा दूर रहें।
प्रश्न उत्तर सच्ची मित्रता कविता, रचयिता तुलसी दास
1.यह प्रसंग कहां से लिया गया है?
उत्तर - यह प्रसंग गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीराम चरित मानस के किष्किन्धाकाण्ड से लिया गया है।
2. इन काव्य पंक्तियों में किस बात का महत्व बताया गया है ?
उत्तर - यहां सच्ची मित्रता का महत्व बताया गया है। यह बताया गया है कि मित्र के सुख दुख को अपना सुख दुख समझना चाहिए। मित्र यदि सही रास्ते से भटके तो उसे सही मार्ग पर लाना चाहिए। कपटी और स्वार्थी मित्र का परित्याग कर देना चाहिए।
3.कैसे मित्र को देखने में भी पाप लगता है ?
उत्तर - जो मित्र के दुख को देखकर दुखी नहीं होते, ऐसे लोगों को देखकर पाप लगता है। ऐसे लोगों को मित्रता करने का कोई हक नही है।
4.सच्चा मित्र कैसा होता है ? विपत्ति काल में उसका व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर - सच्चा मित्र वह है जो मित्र के दुख से दुखी हो। यदि मित्र सही रास्ते से भटके तो उसे सही मार्ग पर लाए। अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद करे। अपने मित्र की हमेशा प्रशंसा करें।
आपत्ति विपत्ति में उसकी मदद करे।
5. जो व्यक्ति आगे मीठे वचन बोलता है और पीछे से मन में बुरे विचार लाता है, उसके साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए ?
उत्तर - जो व्यक्ति आगे मीठे वचन बोलता है और पीछे से मन में बुरे विचार लाता है , ऐसे व्यक्ति के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए।
6. किन चार को सूल के समान बताया गया है ?
उत्तर - मूर्ख सेवक, कृपण राजा, कुनारी, और कपटी मित्र को सूल के समान बताया गया है। ये हमेशा दुख देते हैं।
7. अनुमान लगा कर बताओ कि ये बातें किसने किसको समझाई होगी ।
उत्तर - में बातें श्री राम ने सुग्रीव को समझा था।
सप्रसंग व्याख्या करें
1. जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी।।
उत्तर --
प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक ' सुरभि भाषा संपदा भाग 8 ' के सच्ची मित्रता पाठ से उद्धृत की गई है। इसके रचयिता महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। यह प्रसंग श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड का है।
पवनपुत्र हनुमानजी अग्नि को साक्षी बनाकर श्रीराम और सुग्रीव जी मित्रता करवा देते हैं। दोनों मित्र एक दूसरे का हाल समाचार पूछते हैं। फिर दोनों एक दूसरे को सहयोग देने का वचन देते हैं।
इसी प्रसंग में श्री राम कहते हैं , जो व्यक्ति अपने मित्र के दुःख को देखकर दुखी नहीं होता, उसे देखने में भी पाप लगता है। अर्थात जो मित्र के दुःख में सामिल नहीं होता, वह यहां पापी होता है। उससे दूर ही रहना चाहिए।
यहां मित्रता का वास्तविक अर्थ बताया गया है। छंद चौपाई है। उपदेशात्मक कथन है, इसका पालन करना चाहिए।
2. कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रकटई अवगनन्हि दुरावा।।
उत्तर -
प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक सुरभि भाषा संपदा भाग 8 के सच्ची मित्रता कविता से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। ये पंक्तियां श्री राम चरित मानस के किष्किन्धाकाण्ड से उद्धृत है। यहां मित्रता के गुणों पर चर्चा हुई है।
श्रीराम सच्चे और अच्छे मित्र के बारे में बताते हुए कहते हैं, सच्चा मित्र अपने मित्र को गलत मार्ग पर चलने से रोकता है। और अच्छे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। एक सच्चा मित्र अपने मित्र के अच्छे गुणों का ही वर्णन दूसरे लोगों से करता है। उसके दोषों को छुपा लेता है। मित्र के गुणों का प्रचार और अवगुणों को छिपाना सच्चे मित्र का कर्तव्य है।
ये पंक्तियां चौपाई छंद में रचित है। यहां सच्चे मित्र के गुणों को बताया गया है।
विलोम शब्द लिखें
कुपथ - सुपथ, गुण - अवगुण, पाप - पुण्य, संत - असंत, मित्र - शत्रु।
इस कविता में आए चार विशेषण शब्दों को लिखे
उत्तर - सठ, मृृदुुुुुुुु , कपटी, कृृृपन
नीचे लिखें अवधी शब्दों के खड़ी बोली रूप लिखकर वाक्य में प्रयोग करें।
दुखाड़ी -- दुःखी -- अपने मित्र के दुःख को देखकर दुखी होना अच्छे मित्र का गुण है।
मिताई -- मित्रता -- जो मित्र के दुःख को देखकर दुखी नहीं होते, उन्हें मित्रता का कोई अधिकार नहीं है।
अवगुनन्हि - दोष -- मित्र के दोष को छुपाना चाहिए।
अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखो जिसमें सच्चे मित्र के लक्षण बताए गए हों।
उत्तर के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
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लेखक
डॉ उमेश कुमार सिंह, भूली धनबाद झारखंड।
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