कबीरदास का जीवन परिचय, साखियां एवं सबद तथा प्रश्न- उत्तर, Kabirdas ka Jiwan parichay, Sakhiya, Sabad, Questions Answer.


 कबीरदास का जीवन परिचय, साखियां एवं सबद का भावार्थ तथा प्रश्न- उत्तर, Kabirdas ka Jiwan parichay, Sakhiya, Sabad, Questions Answer.


कबीर कैसे संत थे
कबीर का जन्म कब हुआ
कबीर का जन्म कहां हुआ
कबीर का पालन किसने किया
कबीर के गुरु का नाम क्या था
कबीर दास किसके विरोधी थे
मानसरोवर कहां है?
Kabirdas kaise saint the
Birthday of kabirdas
Birthplace of kabirdas
Kabir ke Guru
Mansarovar khan hai

 कबीरदास निर्गुण काव्य धारा के महान संत कवि थे। इनका जन्म 1398 ई. को काशी में माना जाता है। उन्होंने कभी कागज कलम नहीं छुआ लेकिन अपनी साधना और गुरू रामानंद जी के श्रीमुख मुख से जो आशीर्वचन ग्रहण किया उसके अनुसार प्रेम का ढाई अक्षर ही सारी मानवता, विद्वता और पांडित्य का सार है। तभी तो उन्होंने कहा-- 


पोथी पढि पढि जग मुआ पंडित भया न कोय ‌।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।


प्रेम और भाईचारे का ऐसा अद्भुत संदेश अन्यत्र दुर्लभ है। वे निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक थे। उनके राम अयोध्या में बसने वाले राम नहीं बल्कि घट घट में बसने वाले निर्गुण निराकार ब्रह्म है। तभी तो उन्होंने कहा 

दसरथ सुत तिहु लोक बखाना ‌। राम नाम का मर्म है आना (अन्य)।

        कबीर दास जी किसी धर्म के वाह्याडमबर के प्रबल विरोधी थे। उनकी दृष्टि में मंदिर मस्जिद पाखंडियों के अड्डे हैं। वहां धर्म के नाम पर भेदभाव, लूट और पाखंड किया जाता है। उन्होंने व्रत, उपवास, रोजा, नमाज़, पूजा पाठ को व्यर्थ बताकर अपने हृदय में विराजमान परमात्मा को पाने का संदेश दिया।

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल।

लाली खोजन मैं गई मैं भी हो गई लाल।।

कबीर दास जी ने व्यवहारिक बातो पर भी बहुत ध्यान दिया है। उन्होंने देशवासियों को आत्म विश्वास और स्वावलंबन का भाव जगाने के लिए कहा,

करूं बहियां बल आपनीं, छाड़ पराई आस।
जाके आंगन ह्वै नदी, सो कत मरत पियास।।

जीवन के सभी पक्षों से कबीरदास जी का काव्य भरा पड़ा है। आत्मानुभूति और पथ प्रदर्शक उक्तियों से वे आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। सन् 1518 ई में कबीरदास जी का मगहर नामक स्थान में देहांत हो गया।

          साखियां

मानसरोवर सुभर जल हंसा केलि कराहिं।
मुक्ताफल मुकता चुगैं,अब उडि अनत न जाहिं।।

शब्दार्थ -- मानसरोवर - तिब्बत में एक झील , मन रूपी सरोवर। सुभर - अच्छी तरह भरा हुआ। हंस - हंस रूपी जीवात्मा। केलि - क्रीड़ा।कराहिं - करना। मुक्ताफल - मोती, मोती रूपी फल। मुक्ता - मुक्ति। चुगै - चुगना। अनत - दूसरे स्थान पर। न जाहिं - नहीं जाते।

भावार्थ

कबीर दास जी कहते हैं, मन रूपी सरोवर हरिभक्ति रूपी जल से अच्छी तरह भरा हुआ है। इसमें हंस रूपी आत्माएं स्वच्छंदता पूर्वक क्रीड़ा करते हुए मुक्ति रूपी मोती कोई चुगती है। जब वे आत्माएं एक बार मुक्ति रूपी मोती को चुग लेेेती  है तो फिर कहीं उड़कर दूसरे जगह नहीं जाती। जब आत्माएं ईश्वर को भक्ति के द्वारा प्राप्त कर लेती है तो जीवन मरण के बंधन से छूट जाती हैं। 

प्रेमी ढूढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब बिष अमृत होइ ।।

शब्दार्थ -
प्रेमी - प्रेम करने वाले। ढूढत - खोजना। फिरौं - घूमना । मिलै न कोई - कोई नहीं मिलता। विष - जहर।  होई - हो जाता है।

भावार्थ


कबीर दास जी कहते हैं, अहंकार बहुत बुरा है। अहंकारी को प्रेमी नहीं मिलता। ऐसे लोगों को इस दुनिया में बहुत ढूंढने पर भी प्रेमी नहीं मिलता है।जब एक प्रेमी को दूसरा प्रेमी मिल जाता है तो सारा विष अमृत बन जाता है। याने बुराइयां अच्छाई बन जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाता है कि मन का सारा विकार समाप्त हो जाता है। अहंकार हटे तभी प्रेम संभव है।


         हस्ति चढ़िए ज्ञान की, सहज दुलीचा डारि।
         स्वान रूप संसार है, भूंकन दे झक मारि।।

शब्दार्थ
हस्ती - हाथी। सहज - सहज प्राकृतिक समाधि। दुलीचा - आसन । स्वान - कुत्ता । झक मारना - बैठकर समय बर्बाद करना। भूंकन दे - भौंकने दें।

भावार्थ

 महाकवि कबीर दास जी कहते हैं, साधक को सहज समाधि का कालीन डालकर ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए। मतलब कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए बिल्कुल स्वाभाविक रूप से लगने वाली ध्यान लगाने चाहिए। साधक को लोगों की बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए। जैसे  हाथी जब चलता है तो कुत्ते की भौंकने की परवाह नहीं करता।

     पखा पखी के कारनै सब जग रहा भुलान।
     निरपख होइ के हरिभजै, सोई संत सुजान।।

शब्दार्थ
पखापखी - पक्ष विपक्ष। कारनै - कारण। जग - संसार। भुलान - खोया हुआ। निरपख - निरपेक्ष। संत - सज्जन। सुजान - चतुर, ज्ञानी।

भावार्थ

कबीर दास जी कहते हैं, यह संसार ईश्वर को प्राप्त करने के अपने मार्ग को सही और दूसरे के मार्ग को ग़लत बताने के चक्कर में खोया हुआ है। कोई कर्म, ज्ञान, पूजा को सही मानता है तो कोई  इसका विरोध करता है। ये अपने अपने तर्कों के लिए लड़ते हैं। इस तरह सारा संसार ईश्वर प्राप्ति के सही दिशा को भूल गया है। महात्मा कबीर दास कहते हैं कि जो साधक इस पक्ष विपक्ष के चक्कर में न पड़कर निष्पक्ष भाव से ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं वही चतुर ज्ञानी है। वहीं ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
         

हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहू के निकट न जाई।।

शब्दार्थ
मूआ - मर गया।कहि - कहकर। हो जीविता - वही जीवित है। दूहू - दोनों। न जाई - नहीं जाता है।

भावार्थ
कबीर दास जी एकेश्वर वाद में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर एक है। राम और ख़ुदा एक ही है। लेकिन हिंदू राम को श्रेष्ठ मानने के लिए तो मुस्लिम ख़ुदा को श्रेष्ठ मानने के लिए आपस में लड़ते मरते हैं। कबीर दास जी कहते हैं कि मेरी दृष्टि में वही जीवित है जो इन मतभेदों से अलग रहकर ईश्वर की उपासना करता है और सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है।

       काबा फिरि कासी भया, रामहि भया रहीम।
       मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।।

शब्दार्थ
काबा - मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थल। कासी - काशी, हिन्दू का पवित्र तीर्थ स्थल। मोट चून - मोटा आटा।  जीम - भोजन करना।

भावार्थ
यहां कबीर दास जी का समन्वय वादी रूप उभरकर सामने आया है। वे कहते हैं, हिन्दू और मुसलमान दोनों में जब विरोधी भावना समाप्त हो जाता है तब काबा हिन्दू का तीर्थ स्थल बन जाता है और काशी मुस्लिमो का। दोनों के तीर्थ और देवताओं में कोई भेद नहीं रह गया। जब धर्म का बाहरी हिस्सा जो मोटे आटे के समान दिखाई देता है, बाहरी आडंबर हटते ही बारीक मैदा के समान बन गया। कबीर कहते हैं कि मैं दोनों धर्मों का आनंद ले रहा हूं। इस तरह कवि ने दोनों समुदायों के एकता पर बल दिया है।


    ऊंचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊच न होइ।
    सुबरन कलस सुरा भरा , साधू निंदा सोई ।।

शब्दार्थ
ऊंचे कुल - अच्छा खानदान। जनमिया - जन्म हुआ। करनी - काम। सुवरन कलश - सोने का कलश।,मटका।  सुरा - शराब। साधू - सज्जन। निंदा - बदनामी। 

भावार्थ
यहां कबीर ने समाज में जाति पाति का विरोध किया है। जाति बड़ा नहीं है, कर्म बडा है। ऊंचे कुल में जन्म लेने पर भी यदि करनी ऊंची नहीं है तो भी निंदा के पात्र होंगे।  कोई अच्छी खानदान में जन्म लिया हो और चोरी, लूट,छल कपट जैसे अपराध करे तो उसे इज्जत नहीं मिलती है। जैसे सोने के कलश में यदि शराब भरा हो तो सभी सज्जन उसकी निंदा ही करते हैं।

   

              सबद (पद)


मोको कहां ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

ना मैं देवल ना मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में।ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में। खोजी होयतो तुरतैमिलिहौं,पलभरकीतालास में।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वासों की स्वांस में।।

शब्दार्थ
मोको - मुझे। देवल - देवालय, मंदिर। क्रिया कर्म - कर्म काण्ड, योग बैराग - योग साधना। तुरतै - तुरंत। मिलिहौ - मिलेंगे। स्वांस - सांस।


भावार्थ
मनुष्य ईश्वर को कांबे, कैलाश, मंदिर मस्जिद में ढूंढते फिरता है। भगवान कहते हैं कि यह मेरे निवास स्थान नहीं है। मैं किसी कर्म काण्ड योग बैराग में भी नहीं मिलता हूं। मैं तो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विराजमान हूं। प्रत्येक प्राणी के स्वासों में मैं रहता हूं। यदि कोई सच्चे मन से खोजें तो मैं पल भर में मिल सकता हूं। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है।

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        संतौं भाई आई ग्यान की आंधी रे।

भ्रम की टार्टी सबै उडानी,माया रहै न बांधी।।

 हिति चित्त कीद्वै थूंनी गिरानी मोह बलिंडा टूटा।

त्रिस्नां छांनि परि घर उपरि, कुबुधि का भांडा फूटा।। 

जोग जुगति करि संतौं बांधी, निरचू चुवै न पांणी।।

 कूड कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाणीं।

 आंधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनां।।

 कहै कबीर भान के प्रगटे उदित भया तय खीनां।।


शब्दार्थ
ग्यान - ज्ञान। भ्रम - संदेह।टाटी - पर्दे के लिए लगाएं जाने वाले बांस की पट्टियां। माया - धन सम्पत्ति, रिश्ते नाते।  हिति - भलाई। चित्त - मन। थूंनी - खम्भा। बलिंडा- छप्पर को सहारा देने वाली मजबूत लकड़ी। त्रिस्नां - लालच, तृष्णा। खाया - शरीर। भांन - सूरज। तुम - अंधकार।
खीनां - क्षीण हुआ।

भावार्थ
 यहां महाकवि कबीर दास जी ने ज्ञान के द्वारा ईश्वर प्राप्ति पर बल दिया है। वे कहते हैं कि जब ज्ञान की आंधी आती है तो मोह-माया के बंधन टूट जाते हैं। माया का बंधन नष्ट हो जाता है। तृष्णा और लालच का छप्पर उड़ जाता है।कुबुदधि समाप्त हो जाती है। ज्ञान की आंधी ने कुबुद्धि का छप्पर उड़ दिया। ज्ञान की आंधी के बाद जो जल बरसा उससे भक्त भींग गये। इस प्रकार ज्ञान रूपी सूर्य के उगने से अंधकार रूपी अज्ञान नष्ट हो गया।

        प्रश्न - उत्तर ( साखियां )

1.मानसरोवर से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर - मानसरोवर से कवि का आशय है- मन रूपी सरोवर।
 2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर - सच्चा प्रेमी वह है जिसके मिलने से बुराइयों का विष भी अच्छाइयों के अमृत में बदल जाता है। विष को अमृत में बदल देना ही  सच्चे मित्र की कसौटी है।
3. इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर - जो संसार में प्रचलित विभिन्न मत मतांतरों के चक्कर में न पड़कर, निष्पक्ष भाव से ईश्वर की साधना में लीन रहते हैं वही सच्चा संत हैं।
4. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से। 
उत्तर - व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि कुल से। ऊंचे कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति भी यदि निम्न कर्म करें तो वह निंदनीय है। इसके विपरीत यदि निम्न कुल का व्यक्ति भी अच्छा कर्म करें तो वह प्रशंसनीय है।
       

             प्रश्न- उत्तर (सबद)

1.मनुष्य ईश्वर को कहां कहां ढूंढता है ?
उत्तर मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबे, कैलाश आदि तीर्थों में ढूंढते हैं। कर्म काण्ड,बैरागय में ढूंढते हैं।

2. कबीर ने ईश्वर को सब स्वासों की स्वांस में क्यों कहा है ?
उत्तर - ईश्वर का निवास सब प्राणियों में है। वह कम कम में है। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है।
3. ज्ञान की आंधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर - ज्ञान की आंधी से भक्तों का अहंकार, मोह माया सब समाप्त हो जाता है। भक्त का तन मन पवित्र हो जाता है। इसलिए कबीर ने ज्ञान की तुलना आंधी से की है।

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लेखक परिचय=

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।



Posted by Dr. Umesh Kumar Singh, Bhuli Nagar, Dhanbad Jharkhand

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