Suryakant Tripathi Nirala, famous Poem, Priyatam सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, प्रसिद्ध कविताएं, प्रियतम कविता, भावार्थ, प्रश्न उत्तर।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : जीवन परिचय


हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। इनका जन्म 1897 ई में बंगाल के महिषादल में हुआ था। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बंगला और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया था। वे बहुमुखी प्रतिभा के क्रांतिकारी साहित्यकार थे। उनका देहांत 1962 में हुआ।

निराला जी की प्रमुख रचनाएं हैं - अनामिका,(1923), परिमल ( 1930), गीतिका (1936), तुलसीदास ( 1938 ) , इनके अलावा भी इनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य में प्रसिद्ध है। कुछ समय तक इन्होंने मतवाला और समन्वय नामक पत्रिका का संपादन भी किया था।

निराला जी का जीवन अनेक अभावों और विपत्तियों से पीड़ित था। लेकिन इन्होंने किसी  के सामने झुकना नहीं सीखा था। वे अभावों की मर्मान्तक पीड़ा को सहते हुए अपनी साधना में लीन रहते थे। निराला जी 1916 से 1958 तक निरंतर काव्य साधना में लीन रहे।

निराला जी को अपने व्यक्तिगत जीवन और काव्यात्मक जीवन, दोनों में धोर विरोध का सामना करना पड़ा था। जब उनकी काव्य संग्रह " जूही की कली " प्रकाशित हुई तो तत्कालीन कवि समाज में एक अजीब सी खलबली मच गई। क्यों भाई ? क्योंकि उसके कथ्य और काव्य कौशल परंपरागत लेखन से बिल्कुल अलग था। इसमें वर्णित प्रणय केलि के चित्र और मुक्त छंद की शक्तिशाली शिल्प दोनों ही तत्कालीन मान्यताओं से मेल नहीं खाते थे। निराला जी अपने धुन के पक्के थे। उन्होंने किसी। की परवाह नहीं की।

निराला जी की दर्शन का प्रत्यक्ष और गंभीर असर देखा जा सकता है। उनकी भाषा संस्कृत निष्ट है जिसमें समास का बाहुल्य है। वे अपने युग की सच्चाई के प्रति जागरूक कवि थे।

     

प्रियतम कविता (Priyatam Poem)

एक दिन विष्णु जी के पास गए नारद जी, 

पूछा, " मृत्यु लोक में कौन है पुण्य श्लोकभक्त तुम्हारा प्रधान ? विष्णु ने कहा, " एक सज्जन किसान है 

प्राणों से प्रियतम।" 

"उसकी परीक्षा लूंगा, " हंसे विष्णु जी सुनकर यह,

 कहा कि, " ले सकते हो।" नारद जी चल दिए

 पहुंचे भक्त के यहां

 देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को, 

दरवाज़ें पहुंचकर राम जी का नाम लिया, स्नान भोजन करके फिर चला गया काम पर।


शाम को आया दरवाजे फिर नाम लिया, 

प्रातः काल चलते समय

 एक बार फिर उसने मधुर नाम स्मरण किया।


" बस केवल तीन बार"? नारद जी चकरा गए -- 

किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया ?

 गये विष्णु लोक बोले भगवान से " देखा किसान को

 दिन भर में तीन बार नाम उसने लिया है।"


बोले विष्णु, "नारद जी,

 आवश्यक दूसरा 

एक काम आया है तुम्हें छोड़कर कोई और नहीं कर सकता।

 साधारण विषय यह। 

बाद को विवाद होगा, तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए 

तैल पूर्ण पात्र यह लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की

 ध्यान रहे सविशेष

 एक बूंद भी इससे तेल न गिरने पाए ।"


लेकर नारद जी आज्ञा पर घृत लक्ष्य 

एक बूंद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।

 योगिराज जल्द ही विश्व - पर्यटन करके लौटे बैकुंठ को

 तेल एक बूंद भी उस पात्र से गिरा नहीं।

 उल्लास मन से भरा था

 यह सोच कर तेल का रहस्य एक 

अवगत होगा नया। 

नारद को देखकर विष्णु भगवान ने बैठाया स्नेह से 

कहा, " यह उत्तर तुम्हारा यहीं आ गया

 बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार

 नाम इष्ट का लिया ? "


" एक बार भी नहीं" 

शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से 

" काम तुम्हारा ही था

 ध्यान उसी से लगा रहा

 नाम फिर क्या लेता और?" 

विष्णु ने कहा, " नारद उस किसान का भी काम मेरा दिया हुआ है।

 उत्तरदायित्व कई लादे है एक साथ 

सबको निभाता और 

काम करता हुआ 

नाम भी वह लेता है 

इसी से है प्रियतम।"

 नारद लज्जित हुए।

कहा, "यह सत्य है ।"

भावार्थ


"कर्म ही पूजा है" इसी भाव को व्यक्त करने के लिए कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने इस कविता की रचना की है। निराला जी एक क्रांतिकारी कवि थे। वे कर्म को ही ईश्वर की पूजा मानते थे। वे कहते कर्मवीर ही इस संसार का सच्चा प्राणी है। 

इस कविता का भाव पौराणिक कथा पर आधारित है। नारद जी को मोह हो जाता है। होता है, मोह किसे छोड़ा है। उन्हें लगा कि वही  भगवान विष्णु के सबसे प्रिय भक्त हैं। बस यही बात श्री विष्णु जी के मुख से सुनने के लिए विष्णु लोक जा पहुंचे। लेकिन पूछने पर विष्णु जी ने अपना सबसे प्रिय भक्त किसान को बताया। नारद जी आश्चर्य में पड़ गये। कहां, अच्छा तो मैं उसे जाकर देखूंगा। विष्णु ने कहा, जाओ, देख लो।

नारद जी किसान की निगरानी में लग गए। उन्होंने देखा कि किसान तो दिनभर में मात्र तीन बार ही भगवान का नाम लिया। बस, उन्हें अवसर मिल गया अपनी श्रेष्ठता साबित करने का। दौड़े चले आए विष्णु लोक। भगवान तो अंतर्यामी है। वे सब कुछ समझ गये। नारद के आते ही एक काम और दे दिया। कहा कि यह घृत भरा पात्र पूरे ब्रह्मांड में घुमा दो , लेकिन ध्यान रहे, एक बूंद भी घी गिरने न पाए। नारद जी ने वैसा ही किया। बड़े ध्यान से घृत पात्र पूरे ब्रह्मांड में घूमा लाए। तब विष्णु जी ने पूछा अब बताओ कितने बार नाम लिया मेरा। नारद जी ने कहा, काम तो आप का ही कर रहा था। फिर नाम तो बिल्कुल नहीं लिया। विष्णु ने कहा, किसान को भी मैंने ही काम दिया है। फिर भी वह तीन बार नाम लिया।अब तुम ही बताओ, कौन श्रेष्ठ ? नारद जी लज्जित हो गये। यही है कर्म का महत्व।

प्रश्न उत्तर

1. एक दिन नारद जी ने विष्णु जी से क्या पूछा ?
उत्तर - एक दिन नारद जी ने विष्णु जी से पूछा, आपका सबसे प्रिय भक्त कौन है।

2. विष्णु जी ने किसे अपना प्रियतम बतलाया ?
उत्तर - विष्णु जी ने एक किसान को अपना प्रियतम बतलाया।

3. विष्णु जी के उत्तर सुनकर नारदजी ने क्या निर्णय लिया ?
उत्तर - विष्णु जी का उत्तर सुनकर नारदजी ने धरती पर जाकर उस किसान को देखने का निर्णय लिया जिसे विष्णु जी अपना प्रियतम कहते हैं।

4. नारद जी क्या देखकर चकरा गये ?
उत्तर - नारद जी ने देखा कि किसान केवल तीन बार ही भगवान का नाम लिया और भगवान उसे प्रियतम कहते हैं। यह देखकर वे चकरा गए।

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Posted by Dr.Umesh Kumar Singh, Bhuli Nagar, Dhanbad Jharkhand,
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