Sachchi virta, सच्ची वीरता, सरदार पूर्ण सिंह

सच्ची वीरता

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सच्ची वीरता निबंध का सारांश, summary of sachchi virta nibandh


सच्ची वीरता निबंध के लेखक सरदार पूर्ण सिंह है। इन्होंने इस प्रेरणा दायक निबंध में सच्चे वीर और सच्ची वीरता का बहुत सुंदर वर्णन किया है। वे लिखते हैं -
सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और आजाद होते हैं। उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी तथा आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। लेकिन जब यह शेर गरजते हैं तब सदियों तक उनकी दहाड़ सुनाई देती है और दूसरे सभी की आवाजें बंद हो जाती है।
   यहां लेखक सच्चे वीर पुरुष की विशेषताएं बताते हुए हमें वीरता के साथ अपने कर्तव्य पालन की प्रेरणा दी है। सच्चे वीर पुरुष कठिनाइयों और संकटों से तनिक भी विचलित नहीं होते। वे शांत और दृढ़ संकल्प लेकर अपने काम में तल्लीन रहते हैं। फिर क्या है ? वे आकाश में सूर्य की तरह तेज चमकते हैं।

सत्वगुण के समुद्र में जिनका अंतःकरण निमग्न हो गया, वे महात्मा हो गये। वहीं वीर और साधू कहे जाते हैं। उनके लिए कुछ भी अगम्य नहीं है। वे जहां चाहे, जा सकतें हैं। वहीं सबके मन पर राज करते हैं। वहीं सबके मन मीत भी बनते हैं।

लेखक ने एक कहानी द्वारा अपनी बात और स्पष्ट की है। एक बार एक बागी गुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई। वह गुलाम कैदी दिल से आजाद था। वह गुलाम कैदी से बाद शाह ने कहा , "मैं तुमको अभी जान से मार डालूंगा। तुम क्या कर सकते हो "। गुलाम बोला, हां , मैं फांसी पर चढ जाऊंगा पर तुम्हारा तिरस्कार तब भी कर सकता हूं। इस गुलाम ने बादशाहो की हद दिखला दी। बस इतने ही जोर और इतनी ही तल्खी पर यह झूठे राजा मारपीट कर कायर लोगों को डराते हैं। लोग शरीर को अपने जीवन का केंद्र समझते हैं। इसलिए जहां किसी ने उनके शरीर पर जरा जोर से हाथ लगाया वहीं वे डर के मारे अधमरे हो जाते हैं। केवल शरीर रक्षा के निमित्त यह लोग इन राजाओं की ऊपरी मन से पूजा करते हैं। सच्चे वीर अपने प्रेम के जोर से लोगों के दिलों को सदा के लिए बांध देते हैं।

मंसूर ने अपनी मौज में कहा, मैं खुदा हूं। दुनियावी बादशाह ने कहा , यह काफीर है। मगर मंसूर ने अपनी कलाम बंद नहीं किया। पत्थर मार-मार कर दुनिया ने उसके शरीर की बुरी दशा कर दी। परन्तु, उस मर्द के मुंह से हर बार यही शब्द निकला अनहलक अर्थात  मैं ही ब्रह्म हूं। मंसूर का सूली पर चढ़ना  उसके लिए  सिर्फ एक खेल था।

महाराजा रणजीत सिंह ने फ़ौज से कहा , अटक के पार जाओ। अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठ रही थी। फौज ने कुछ उत्साह प्रकट नहीं किया तो उस वीर को जोश आ गया। महाराजा ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए।
देखिए उत्साह और जोश का कमाल। सच्ची वीरता के सामने उफनती दरिया कैसे मार्ग बदल देती है। इसी तरह जब श्रीराम ने समुद्र के ऊपर अपना बाण तान दिया तो समुद्र भी त्राहि-त्राहि करते हुए हाथ जोड़कर मार्ग दे दिया था।

एक बार की बात है। लाखो आदमी मरने मरने को तैयार थे। धुआंधार गोलियां बरस रही थी। आल्प्स पर्वत के पहाड़ों पर फौज ने ज्योंहि चढ़ना आरंभ किया, उनकी हिम्मत टूट गई।  वीर नेपोलियन को जोश आ गया। उसने कहा, आल्प्स है ही नहीं। फौज को निश्चय हो गया कि आल्प्स है ही नहीं। और सभी पहाड़ के पार हो गये।

एक भेड़ चराने वाली और सत्वगुण में डूबी युवती कन्या के दिल में जोश आते ही फ्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया। यह बात जग प्रसिद्ध है।

सच्ची वीरता की अभिव्यक्ति


वीरता की अभिव्यक्ति कई प्रकार से होती है। कभी वीरता की अभिव्यक्ति लड़ने मरने में, खून बहाने में , तलवार  के सामने जान गवाने में होती है तो कभी जीवन के मूल तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध की तरह। जैसे बुद्ध जैसे राजा ने राजपाट से विरक्त होकर तपस्या के लिए निकल जाने का हिम्मत दिखाया। वीरता एक प्रकार की अंतः प्रेरणा है। जब कभी इसका विकास हुआ एक नया कमाल नजर आया। वीरता हमेशा निराली और नई होती है। नयापन भी वीरता का एक खास रंग है जिसे देखकर लोग चकित हो जाते हैं। फिर उस वीर पुरुष के लाखों अनुयाई हो जाते हैं। उसका मन और विचार सबके मन और विचार बन जाते हैं।

लेखक सरदार पूर्ण सिंह कहते हैं, वीरों के बनाने का कोई कारखाना नहीं होता। वे तो देवदार वृक्ष की तरह जीवन के जंगल में खुद ब खुद जन्मे और विकसित होते हैं। उन्हें कोई देखभाल नहीं करता, कोई पानी नहीं पिलाता। वे एक दिन तैयार होकर दुनिया के सामने खड़े हो जाते हैं।

वीर पुरुष का निश्चय अटल होता है। उनका शरीर साधन मात्र होता है। और यह साधन समस्त शक्तियों का भंडार होता है। कुदरत का यह अनमोल उपहार हिल नहीं सकता। सूर्य और चंद्रमा हिल जाय परन्तु उनका अटल निश्चय न हिलता  है।


वह वीर ही क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट से गर्म हो गया हो और झट से ठंडा हो जाए। अर्थात् परिस्थितियों से विचलित हो जाय, वह सच्चा वीर पुरुष नहीं होता। वीर हर परिस्थिति में अचल और अडिग रहते हैं। वीरों की विशेषताएं सुनकर हम सब के अन्दर भी वीरता का जोश आता है परन्तु वह स्थायी नहीं होता, आता है और कुछ ही दिनों में चला भी जाता है। हमें टीन की तरह नहीं बल्कि मजबूत और मोटे चट्टान की तरह अटल और अडिग बनकर रहना चाहिए। तभी हम  वीरता के साथ जीवन का सच्चा आनंद ले सकते हैं।

शब्द भंडार


धीर - धैर्यवान, आजाद - स्वतंत्र, अंतः करण -- हृदय, क्षुद्र -- छोटा, परित्याग - छोड़कर, तिरस्कार -- अपमान, अनहलक -- मैं ही ब्रह्म हूं। कलाम -- वचन, दरिया -- नदी, संकल्प -- निश्चय, अरण्य - जंगल, अगम्य -- जहां जाना असंभव है।


सच्ची वीरता निबंध का प्रश्न उत्तर


1. सच्चे वीर पुरुष में क्या क्या विशेषताएं होती है ?

उत्तर - सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और आजाद विचार के होते हैं । उनका मन समुद्र की तरह विशाल और आकाश की तरह स्थिर और अचल होता है।

2. " हां मैं फांसी पर तो चढ़ जाऊंगा , पर तुम्हारा तिरस्कार तब भी कर सकता हूं" -- इस कथन से गुलाम ने कायर बादशाहों के बल की सीमा कैसे दिखला दी ?

उत्तर --  गुलाम ज़रा सा भी नहीं डरा। उसके शरीर को चोट पहुंचाने का बहुत प्रयत्न किया गया, परन्तु उसके मन पर कोई जोर नहीं चला। वह अंत तक बादशाह को कोशता रहा। उसने बादशाह की एक बात भी नहीं मानी।

3. मंसूर ने अपनी वीरता किस प्रकार प्रदर्शित की?

उत्तर -- मंसूर ने कहा मैं ही खुदा हूं। बादशाह ने कहा यह काफीर है। लोगों ने पत्थर मार-मार कर उसके शरीर को घायल कर दिया। लेकिन उसका मन अचल रहा। सूली पर चढ़ना उसके लिए एक खेल भर था। वह मन से वीर पुरुष था।

4. सच्चे वीर शहंशाहे - जमाना किस प्रकार होते हैं ?

उत्तर -- सच्चे वीर अपने प्रेम के जोर से लोगों के दिलों को सदा के लिए बांध देते हैं । फौज ,तोप , बंदूक आदि के बिना ही वह शहंशाहे  जमाना होते हैं।

5. महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी फौज को कैसे उत्साहित किया ?

उत्तर -- महाराजा रणजीत सिंह ने फ़ौज से कहा , अटक के पार जाओ। अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठ रही थी। फौज ने कुछ उत्साह प्रकट नहीं किया तो उस वीर को जोश आ गया। महाराजा ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए। इस तरह उन्होंने हिम्मत और जोश से अपने फौज को उत्साहित किया।

6. लेखक ने कायरों की उपमा टीन के बर्तन से क्यों दी है ?

उत्तर -- जिस प्रकार टीन का बर्तन जल्दी गर्म हो जाता है और जल्दी ही ठंडा भी हो जाता है उसी प्रकार कायर लोगों का मन भी तुरंत बदल जाता है। इसलिए लेखक ने कायरों की उपमा टीन के बर्तन से दी है।

7. वीरता किस किस रूप में प्रकट होती है ? उदाहरण देकर बताओं।

उत्तर -- वीरता की अभिव्यक्ति कई प्रकार से होती है। कभी वीरता की अभिव्यक्ति लड़ने मरने में, खून बहाने में , तलवार  के सामने जान गवाने में होती है तो कभी जीवन के मूल तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध की तरह। जैसे बुद्ध जैसे राजा ने राजपाट से विरक्त होकर तपस्या के लिए निकल जाने का हिम्मत दिखाया। वीरता एक प्रकार की अंतः प्रेरणा है। जब कभी इसका विकास हुआ एक नया कमाल नजर आया। वीरता हमेशा निराली और नई होती है। नयापन भी वीरता का एक खास रंग है जिसे देखकर लोग चकित हो जाते हैं। फिर उस वीर पुरुष के लाखों अनुयाई हो जाते हैं। उसका मन और विचार सबके मन और विचार बन जाते हैं।

8. वीरता का हाल सुनकर हम पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर -- वीरता का हाल सुनकर हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठने लगती हैं और वीरता का रंग चढ़ जाता है। परंतु वह चिरस्थाई नहीं होता। हम सब केवल दिखाने के लिए वीर बनना चाहते हैं।

9. इस पाठ से आप को क्या प्रेरणा मिलती है ? आप किस प्रकार के वीर बनना चाहते हैं ?

उत्तर --  इस पाठ से हमें प्रेरणा मिलती है कि हमें आकाश की तरह स्थिर और अचल तथा समुद्र की तरह विशाल बनना चाहिए। हमारा मन चट्टान की तरह स्थिर हो। छोटी-छोटी बातों से घबराकर अपना लक्ष्य न भूलें। सदा आगे बढ़ते रहे।

सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय


सरदार पूर्ण सिंह का जन्म 1881 ई में एबटाबाद ( अब पाकिस्तान में ) हुआ था।  इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई थी। फिर उच्च शिक्षा के लिए वे जापान चले गए। वहीं उनकी भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। स्वामी रामतीर्थ से प्रभावित होकर उन्होंने संन्यास ले लिया।  स्वामी जी की मृत्यु के बाद स्वदेश लौट कर इन्होंने विवाह कर घर बसा लिया।  1931 ई में इनका निधन हो गया।

मजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, कन्यादान, पवित्रता आदि इनके प्रसिद्ध निबंध है । इन निबंधों ने इन्हें हिंदी साहित्य में प्रसिद्धि दिला दी। इनके निबंधों ने हिंदी निबंध साहित्य को नयी दिशा प्रदान की है।

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