Chandra gahna se lauti ber, poem, चन्द्र गहना से लौटती बेर, केदारनाथ अग्रवाल
चन्द्र गहना से लौटती बेर, कविता , कवि केदारनाथ अग्रवाल Chandra gahna se lauti ber poem, poet kedar nath Agarwal
"चंद्र गहना से लौटती बेर " सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल की छायावादी कविता है। यहां कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है। कवि चन्द्र गहना नामक स्थान से लौटती बेर एक खेत के मेड़ पर बैठ कर प्राकृतिक दृश्य देखते हुए कविता लिख रहा है। यहां मैंने कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, कविता और चन्द्र गहना से लौटती बेर की व्याख्या , भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर प्रस्तुत किया हूं जिससे पाठकों को लाभ मिलेगा ।
Table of contents
1. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता, Chandra gahna se lauti ber poem
2. चन्द्र गहना से लौटती बेर के कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, काव्य गत विशेषता एवं भाषा शैली biography of poet Kedarnath Agarwal
3. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का भाव एवं काव्य सौंदर्य शिल्प सौंदर्य, अलंकार, भाषा शैली
4. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का प्रश्न उत्तर, questions answers NCERT solutions
देखआया चन्द्र गहना।
देखता हूं दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बांधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली
नील फूले फूल को सिर पर चढ़कर
कह रही है , जो छुए यह
दूं हृदय का दान उसको।
और सरसों की न पूछो --
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंड़प में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूं मैं, स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग - अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रही इसमें लहरियां,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियां।
एक चांदी का बड़ा सा गोल खम्भा
आंख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी !
चुप खड़ा बगुला डुबाए टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान - निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है !
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीले में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में !
औ, यहीं से--
भूमि ऊंची है जहां से --
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहां स्वच्छंद हूं,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची-ऊंची पहाड़ियां
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बांझ भूमि पर
इधर उधर रींवा के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं
सुन पड़ता है
मीठा मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें,
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता गिरता ,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों।
मन होता है --
उड़ जाऊं मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहां जुगल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूं
चुप्पे - चुप्पे ।
पास ही मिल कर उगी है
केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय
सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1911 ई में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कमासिन नामक गांव में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी ए और आगरा विश्वविद्यालय से एल एल बी करने के बाद वकालत करने लगे। उन्हें अपने अध्यापक रामकृष्ण शिलीमुख से कविता लिखने की प्रेरणा मिली। केदारनाथ अग्रवाल प्रगति वादी कवि थे। सन् 2000 में इनकी मृत्यु हो गई।
केदारनाथ अग्रवाल की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं --
नींद के बादल, युग की गंगा, लोक तथा आलोक, आग का आईना, फूल नहीं रंग बोलते हैं, देश - देश की कविताएं, पंख और पतवार आदि। उन्होंने निबंध और यात्रा के रोचक संस्मरण भी लिखे हैं।
साहित्यिक विशेषताएं
केदारनाथ अग्रवाल का प्रगति वादी कवियों में प्रमुख स्थान है। उनकी कविताओं में जीवन के यथार्थ के दर्शन होते हैं। उन्होंने शोषकों के प्रति आक्रोश और शोषितों के प्रति सहानुभूति प्रकट किया है। उन्होंने प्रकृति और प्रेम के सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है।
भाषा शैली
केदारनाथ अग्रवाल की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है। उनका भाव और कला पक्ष दोनों सशक्त और परिमार्जित है। उनके मुक्त छंद और शब्द चयन पाठकों का ध्यान आकर्षित कर लेता है।
चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का सारांश, summary of poem Chandra gahna se lauti ber
कवि केदारनाथ अग्रवाल चन्द्र गहना नामक स्थान से लौटते समय खेत खलिहान की ओर आकर्षित हो जाते हैं। उनका किसान मन जागृत हो जाता है। वह एक खेत के मेंड़ पर बैठा हुआ खेतों के प्राकृतिक दृश्य को देख रहा है। एक चने का ठिगना पौधा गुलाबी फूलों से लदा हुआ है। कम ऊंचाई का पौधा ऐसा लगता है जैसे उसने अपने सिर पर गुलाबी पगड़ी बांध रखी है।
उसके पास ही अलसी के पौधे हैं।वह दुबली पतली है और उसपर नीले रंग के फूल खिले हैं। फागुन मास में खुशी से गीत गाए जा रहे हैं। सरसों के पौधे पर पीले पीले फूल आ गये हैं।
इस सुनसान जगह व्यापारिक नगर से दूर प्रकृति का आंचल हिल रहा है। सर्वत्र प्रेम का वातावरण है। पैरों के पास ही एक पोखर है जिसमें हवा के झोंको से लहरें उठ रही हैं। पोखर के नीले जल में उगी घास भी लहरियां ले रही हैं। वहीं किनारे पर कुछ पत्थर पड़े हैं जैसे पानी पी रहे हैं और उनकी प्यास नहीं बुझती है। जल में एक बगुला खड़ा मछलियों को पाने के लिए ध्यान लगाये खड़ा है। मछली को देखते ही उसका ध्यान भंग हो जाता है और चट से मछ्ली पकड़ कर निगल जाता है।
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया भी मछली पकड़कर उड़ जाती है। पास ही रेल की पटरी है लेकिन अभी गाड़ी आने का समय नहीं है। चित्रकूट की पहाड़ियां दूर दूर तक फैलीं है। बंजर भूमि पर रीवा के पेड़ हैं। कहीं तोते के स्वर सुनाई देती हैं तो कहीं सारस के। कवि का मन करता है कि हरे भरे खेत में सारस के जुगल जोड़ी के साथ बैठकर प्रेम-कहानी सुनूं।
चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का काव्य सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य
कवि केदारनाथ अग्रवाल चन्द्र गहना नामक स्थान से लौटते समय खेत खलिहान के सुन्दर वातावरण को देखकर आकषिर्त हो जाते हैं। यहां कवि ने खेत में उगे पौधे और आसपास के वातावरण का मनोहारी दृश्य उपस्थित किया है। फसलों पर फूल आ गये हैं। संपूर्ण वातावरण प्रेम और सौंदर्य से परिपूर्ण है। कविता में मानवीकरण अलंकार के साथ-साथ अन्य काव्य और शिल्प सौंदर्य निम्नलिखित हैं।
संपूर्ण कविता में मानवीकरण अलंकार है। वहीं अनुप्रास और रूपक अलंकार की छटा देखते बनती है। कविता की भाषा खड़ी बोली हिन्दी है। कविता मुक्त छंद में है, लेकिन लय और प्रवाह देखते बनती है।
एक चांदी का बड़ा - गोल खम्भा ' में उपमा अलंकार है। सरसों सयानी, जहां जुगल जोड़ी में अनुप्रास अलंकार का सुन्दर वर्णन है।
चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता का प्रश्न उत्तर , questions answers Chandra gahna se lauti ber
1. इस विजन में ------ अधिक है ' ---- पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों ?
उत्तर -- नगरीय संस्कृति में लोगों के बीच प्यार केवल दिखावा मात्र है। नगरीय संस्कृति का प्यार स्वार्थ पर आधारित होता है। वहां परस्पर सच्चा प्यार देखने को नहीं मिलता। जबकि ग्रामीण अंचल में फूल पौधे भी सच्चे प्रेम करते हैं। वहां के वातावरण में सच्चा प्यार रचा बसा होता है। इसलिए नगरीय संस्कृति के प्रति कवि के मन में आक्रोश है।
2. सरसों को सयानी कहकर कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर -- कवि ने सरसों को एक नव युवती के रूप में चित्रित किया है। सरसों रूपी नवयुवती अब विवाह के योग्य हो गई है। अपने हाथ पीले करके स्वयंवर मंडप में आ बैठी है। इसके द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि सरसों के पौधे पर पीले फूल आ गए हैं और उनका प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत मनोहारी है। अब जल्दी ही उनमें फल लग जाएंगे।
3. अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -- अलसी स्वभाव से बड़ी जिद्दी है। वह शरीर से बड़ी सुंदर है और यह ज़िद कर ली है कि जो उसके सिर पर रखे फूल को छू लेगा उसे ही अपने हृदय का दान देंगी।
4. अलसी के लिए हठीली विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर -- हठीली का अर्थ है जिद्दी। वह चने के पौधे के पास ही खड़ी है। ऐसा लगता है जैसे वह जिद करके वहां खड़ी है और जह हठ कर दिया है कि जो उसके सिर पर रखे फूल को छू लेगा उसे ही अपने हृदय का दान देंगी।
5. चांदी का बड़ा सा गोल खम्भा' में कवि को किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर -- चांदी का बड़ा सा गोल खम्भा' के वर्णन में कवि के द्वारा साधारण चीजों के वर्णन में भी असाधारण सौंदर्य खोज लेने की क्षमता का पता चलता है। पोखर के जल में सूर्य का प्रकाश पड़ना साधारण बात है लेकिन कवि अपनी कल्पना से इसे चांदी का गोल खम्भा बना दिया है।
6. चन्द्र गहना से लौटती बेर कविता में कवि केदारनाथ अग्रवाल ने प्रकृति का मानवीकरण कहां - कहां किया है ?
उत्तर -- कवि ने संपूर्ण कविता में निम्नलिखित स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है --
1. यह हरा चना , बांधे मुरैठा ------ सज खड़ा है।
2. अलसी हठीली, देह की पतली ----- हृदय का दान उसको।
3. फाग गाता मास फागुन।
4. पत्थर किनारे पी रहे चुपचाप पानी।
5. वनस्थली का हृदय चीरता।
6. सरसों की न बात पूछो, हों गई सबसे स्यानी।
दो बैलों की कथा (क्लिक करें और पढ़ें)
ग्राम - श्री कविता
कवि - सुमित्रानंदन पंत
Gram - Shree Poem
ग्राम श्री कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य एवं समृद्धि का मनमोहक वर्णन किया है। यहां खेतों में दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली है। कवि पंत प्रकृति के प्रेमी हैं। उनकी रचना कौशल की विशेषताएं यहां स्पष्ट देखी जा सकती है। पाठकों के हितों का ध्यान रखते हुए यहां ग्राम श्री कविता , कविता का भावार्थ , कठिन शब्दों के अर्थ तथा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए जा रहे हैं।
यमराज की दिशा, कविता, कवि चंद्रकांत देवताले,
Yamraj ki disha, poem, poet Chandra Kant Dewtale
नौवीं कक्षा हिंदी, ninth class hindi, मां ने बचपन में क्या बतलाया, कवि को दक्षिण दिशा पहचान करने में भूल क्यों नहीं होती है, यमराज का घर कहां होता है, यमराज किसके देवता हैं, यमराज रूष्ट क्यों हो जाते हैं, आजकल यमराज सभी दिशाओं में रहते हैं का क्या अर्थ है ? यमराज की दिशा कविता का भावार्थ, यमराज की दिशा कविता के कवि कौन है ? कवि चन्द्र कांत देवताले का जीवन परिचय, यमराज की दिशा कविता का प्रश्न उत्तर, summary of poem Yamraj ki disha, biography of poet Chandra Kant dewtale, NCERT solutions, class ninth hindi.
' यमराज की दिशा ' कविता कवि चंद्रकांत देवताले की लिखी प्रसिद्ध कविता है जिसमें कवि ने यह बताया है कि जीवन विरोधी शक्तियां आज हरेक दिशाओं में बिराजमान है। उन नाकारात्मक शक्तियों का मुकाबला एक जूट होकर करने की आवश्यकता है। कक्षा नौवीं के कोर्स में यह कविता दी गई है जिसके भावार्थ और प्रश्न उत्तर प्रत्येक परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। कविता मुक्त छंद में लिखी गई है, परंतु कविता की पंक्तियां लय युक्त है।
कविता यमराज की दिशा का भावार्थ
अथवा सार
कवि चंद्रकांत देवताले जी कहते हैं कि उसके लिए यह कहना मुश्किल है कि उसकी मां की भेंट ईश्वर से हुई थी कि नहीं, परन्तु उसकी मां हमेशा यह जताती थी कि ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है। उनकी सलाह के अनुरूप ही वह दुख - दर्द के बीच राह निकाल लेती है थी। कवि की मां एक बार उन्हें बताई थी कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। उस ओर पैर करके सोने से यमराज नाराज हो जाते हैं।कवि ने मां से जब यमराज के घर का पता पूछा तब भी मां ने यही बताया था कि दक्षिण दिशा में यमराज का घर है। उसके बाद कवि चंद्रकांत देवताले कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोए।
इसके बाद कवि सुदूर दक्षिण दिशा की यात्रा की परंतु दक्षिण को लांघना संभव नहीं था, नहीं तो यमराज का घर देख आता। कवि का कहना है कि मां अपशकुन के रूप में जिस भय की बात कही वह अब केवल भय, हिंसा, विध्वंस के रूप में अब दक्षिण दिशा में ही नहीं, सब ओर फैला हुआ है। जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। कवि इन विरोधी शक्तियों का एक जूट होकर मुकाबला करने का मौन आह्वान करते हैं।
यमराज की दिशा कविता एवं भावार्थ
मां की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है
मां ने एक बार मुझसे कहा था -
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था-
तुम जहां भी हो वहां से हमेशा दक्षिण में
मां की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर - दूर तक गया
और मुझे हमेशा मां याद आई
दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुंच पाना
तो यमराज का घर देख लेता
पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आंखों सहित विराजते हैं
मां अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो मां जानती थी।
कवि चंद्रकांत देवताले का जीवन परिचय
चंद्र कांत देवताले का जन्म 1936 ई में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के जौलखेड़ा नामक गांव में हुआ था। साठोत्तरी कविता के रचयिता में देवताले जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्होंने सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया था।
चंद्र कांत देवताले की प्रमुख रचनाएं हैं - हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रौशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।
चंद्र कांत देवताले को इनकी साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान, प्रमुख हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद विदेशी भाषाओं में भी हुआ है।
चंद्र कांत देवताले की कविताओं के मूल में गांव - कस्बे और मध्य वर्ग दिखाई देता है जिसमें उन्होंने उनकी विविधताओं और विडंबनाओं को सफलतापूर्वक चित्रित किया है। कवि अपनी बात सीधी और मारक क्षमता से प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है। उनके हृदय में व्यवस्था की कुरूपता के प्रति गुस्सा है तो वहीं मानवीयता के प्रति प्रेम भी है।
Yamraj ki disha questions
answers, यमराज की दिशा - प्रश्न- उत्तर
1. कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर - मां ने कवि को बचपन में समझा दिया था कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। इस दिशा में मृत्यु के देवता यमराज का घर है। इसलिए वह जहां भी जाता उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।
2. कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर - पृथ्वी का विस्तार गोलाकार और विस्तृत है । दक्षिण की दूर - दूर तक यात्रा करने पर भी कवि को दक्षिण का कोई छोर नहीं मिला। इसलिए कवि ने कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं है।
3 . कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गयी है ?
उत्तर - कवि के अनुसार आज जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। सभी तरफ़ विध्वंस, हिंसा और लूट पाट मचा हुआ है। इसलिए आज प्रत्येक दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है।
4. कवि की मां ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग निर्देश देती है । आपकी मां भी समय समय पर आपको सीख देती होगी --
1. वह आपको क्या सीख देती है ?
उत्तर - हमारी मां भी समय समय पर हमें कुछ सीख देती है, जैसे किसी को सताओ नहीं, हमेशा सत्य बोलो।
2. क्या उसकी हर सीख आपको उचित लगती है?
उत्तर - मां की हर सीख उचित ही होती है कि। क्योंकि उसकी हर सीख में हमारी भलाई छिपी होती है।
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