Apathit Bodh, अपठित बोध, अपठित गद्यांश और पद्यांश पर आधारित प्रश्न कैसे हल करें

Apathit Bodh


 अपठित बोध का तात्पर्य ऐसे गद्यांश अथवा पद्यांश से है जिसे विद्यार्थियों ने पाठ्यक्रम में शामिल किसी पाठ्य-पुस्तकों में नहीं पढ़ा हो। ऐसे गद्यांश अथवा पद्यांश किसी भी पुस्तक या पत्र - पत्रिकाओं से लिया जा सकता है। विद्यार्थियों को अपनी सूझबूझ से उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देना होता है। 

अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए जानने योग्य बातें


1. एकाग्र होकर पढ़ना - 

प्रश्न - पत्र के अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश को दो - तीन बार ध्यान से पढ़ें और इसके भाव को समझने का प्रयास करें। यदि निहित भाव समझ में नहीं आए तो पुनः पढ़ कर समझने का प्रयास करें।

रेखांकित शब्दों का अर्थ -

कभी कभी अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश में कुछ शब्द रेखांकित किया रहता है। इनके अर्थ अथवा भाव लिखना होता है। कभी कभी इन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रसंग के अनुसार अर्थ लिखें।

प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें -

पूछे गए प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें। प्रश्नों द्वारा क्या पूछा जा रहा है। प्रश्नों के क्या अर्थ है , इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश पर आधारित प्रश्न के उत्तर कैसे लिखें


अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश पर आधारित पूछे गए बोध प्रश्नों के उत्तर अवतरण में दी गई सामग्री पर आधारित हों परन्तु उत्तर की भाषा , शैली एवं प्रस्तुति अपने शब्दों में होने चाहिए। उत्तर अत्यंत सरल भाषा में लिखी गई हो।

सटिक उत्तर हों


प्रश्नों के उत्तर सीधे, संक्षिप्त और सटिक होने चाहिए। उनमें अनावश्यक विस्तार, अलंकार, सूक्तियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उचित स्थान पर विराम चिह्न लगाना चाहिए।

शीर्षक लेखन 

अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश का शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक और सटिक होना चाहिए। शीर्षक मूल भाव को व्यक्त करने वाले हों। कभी कभी अवतरण के अंदर ही शीर्षक मिल जाता है।

भाषा संरचना के प्रश्न


अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश पर आधारित भाषा - संरचना संबंधित प्रश्नों के उत्तर देते समय विलोम, पर्यायवाची शब्दों के उत्तर ध्यान से देना चाहिए।


अपठित गद्यांश और पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखने के उदाहरण और नमूना


निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें

देश प्रेम क्या है ? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है ? सारा देश अर्थात मनुष्य, पशु, पक्षी , नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है ? यह साहचर्य गत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आंखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा साथ हर घड़ी का रहता है। सारांश है कि जिनके सानिध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवास या किसी और भाव के संकेत के लिए गढा हुआ शब्द है।

यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तू उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता , गुल्म, पेड़ ,पत्ते ,वन, पर्वत, नदी ,निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा वह सबको चाह भरी दृष्टि से देखेगा । वह सब की सुध लेगा और विदेश में भी आंसू बहाए गा। जो यह नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते की चातक  कहां चिल्लाता है,जो यह भी आंख भर कर नहीं देखते कि आम प्रणय सौरभ पूर्ण  मंजरियों से लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झांकते कि किसानों के झोंपड़े के भीतर क्या है, वे यदि दस बने ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देशप्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाईयों ! बिना रूप परिचय का यह प्रेम कैसा ? जिनके दुख - सुख का तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो। यह कैसे समझें! उनसे कोसों दूर बैठे - बैठे , पड़े- पड़े या खड़े - खड़े तुम बिलायती बोली में अर्थशास्त्र की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो।। प्रेम हिसाब - किताब नहीं है। हिसाब - किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं , पर प्रेम करने वाले नहीं।

हिसाब - किताब से देश की दशा का ज्ञान हो सकता है। हित चिंतन और हित साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या भाव पर अवलंबित है । उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह नहीं हो सकता।

प्रश्न - उत्तर


1. देशप्रेम का आलंबन किसे बताया गया है ?
उत्तर -- देश प्रेम का आलंबन ( आधार ) देश के मनुष्य, पशु पक्षी, नदी नाले, वन - पर्वत के साथ सारी भूमि है। अर्थात संपूर्ण देश ही देश प्रेम का आलंबन है।

2. साहचर्य गत प्रेम क्या है ?
उत्तर - साहचर्य गत प्रेम का अर्थ है साथ साथ रहने से उत्पन्न प्रेम। मनुष्य जिनके साथ रहता है , जिन्हें निरंतर देखता है , जिनकी बातें सुनता है , उनके प्रति उनके हृदय में आकर्षण अथवा अनुराग उत्पन्न हो जाता है। यही साहचर्य गत प्रेम है।

3. अपने देश के प्रति प्रेम की पहचान क्या है ?
उत्तर - यदि किसी व्यक्ति को अपने देश से सच्चा प्रेम है तो उसे अपने देश के समस्त प्राणियों, पेड़ पौधों, आदि से प्रेम होगा। वह उन्हें चाह भरी दृष्टि से देखेगा। यदि वह विदेश में है तो उन्हें याद करेगा । यदि वह ऐसा नहीं करता है तो देशप्रेम दिखावा मात्र है।


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़ कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

जिसके चरणों पर धरती
और बाहों में गंगा - यमुना का जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़ कर बनता बादल दल है,
पर्वत कैसे कह दूं इसको
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।

इस तीर्थ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सब की उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है
सबके संग सच्चाई और
सुंदरता की नीति निबाही है,
पर कभी किसी से झुका
नहीं इसका इतिहास गवाह है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन - मन - धन।

1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि किसकी चर्चा कर रहा है ?

क. अपनी जन्म भूमि की
ख. हिमालय पर्वत की
ग. प्रकृति चित्रण की
घ. काव्य रचना की
उत्तर - ख. हिमालय पर्वत की

2. कवि ने अपना तीर्थ स्थल किसे माना है?
क. मंदिर को
ख. मस्जिद को
ग. हिमालय पर्वत को
घ. मातृभूमि को

उत्तर - ग . हिमालय पर्वत को

3. तीर्थ स्थल के दर्शन करने का क्या परिणाम होता है ?
क . मन दर्पण के समान स्वच्छ बन जाता है।
ख. मन में संन्यास लेने की प्रवृत्ति जाग उठती है।
ग . मन शंकाओं से घिर जाता है।
घ. मन में अधूरा पन भर जाता है।

उत्तर - क. मन दर्पण के समान स्वच्छ बन जाता है।

4. पद्यांश के अनुसार इतिहास किस बात का गवाह है ?
क. कभी इसका सिर कहीं झुका नहीं है।
ख. बादल धरती पर बरसे हैं।
ग . हिमालय का सिर किसी से नहीं झुका है।
घ. सुंदरता किसी के आगे नहीं झुकती है।

उत्तर - ग. हिमालय का सिर किसी से नहीं झुका है।

5. किसने सबकी उन्नति अपने जैसी चाही है ?
क. गंगा
ख. हिमालय
ग. मातृभूमि
घ . बादल
उत्तर - ख. हिमालय




लेखक

डॉ उमेश कुमार सिंह, भूली धनबाद झारखंड।

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