Hindi diwas 2021, हिन्दी दिवस , निबंध, भाषण
हिन्दी दिवस , निबंध, भाषण, Hindi diwas 2021
14 सितंबर 1949 ई का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जानेवाला दिन है, क्योंकि इसी दिन जन - जन की भाषा भारत की बिंदी हिन्दी को भारतीय गणराज्य की राजभाषा घोषित की गई थी। ' इसलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस दिन सरकारी , अर्ध सरकारी, प्राइवेट कार्यालयों, स्कूलों- कालेजों आदि में हिंदी दिवस मनाकर हिन्दी में काम करने का संकल्प लिया जाता है। इस वर्ष 14 सितंबर 2021 दिन मंगलवार है।
राजभाषा किसे कहते हैं ?
राजभाषा' का तात्पर्य उस भाषा से है जिस भाषा का प्रयोग राजा ( शासक ) अथवा राज्य ( सरकार ) के द्वारा हो तथा संविधान द्वारा सरकारी काम-काज , प्रशासन, संसद और विधानमंडलो तथा न्यायिक कार्यकलापों के लिए स्वीकृत भाषा हो। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजकीय कामकाज के लिए जिस भाषा का प्रयोग हो वह उस देश की राजभाषा कहीं जाती है।
राजभाषा हिंदी पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार
1937 ई में भारत में जब पहली बार आम चुनावों के आधार पर सरकारें बनीं तब एक अखिल भारतीय स्तर की आवश्यकता महसूस की गई थी। तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट कहा था --- " हर प्रांत की सरकारी भाषा राज्य में कामकाज के लिए उस प्रांत की भाषा होनी चाहिए। परन्तु हर जगह , अखिल भारतीय भाषा होने के नाते ' हिन्दुस्तानी ' को सरकारी तौर पर माना जाना चाहिए। अखिल भारतीय भाषा कोई हो सकती है तो वह सिर्फ हिंदी या हिन्दुस्तानी कुछ भी कह लीजिए, यही हो सकती है।"
राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर
राष्ट्र भाषा और राजभाषा दोनों के स्वरूप और भेदों को समझना आवश्यक है। राष्ट्रभाषा समूचे राष्ट्र में प्रयुक्त होने वाली भाषा है। इसके द्वारा संपूर्ण राष्ट्र में निवास करने वाले लोग विचार- विमर्श , संचार, संवाद, पत्राचार आदि करते हैं। यह संपर्क भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है। वहीं राजभाषा सरकारी कामकाज के लिए माध्यम बनती है। राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं के अंतर्गत और अस्पष्टता से देखा जा सकता है----
1. राष्ट्रभाषा संपूर्ण देश में प्रयुक्त होने वाली भाषा है। संपूर्ण देश के निवासी जिस भाषा में आपसी विचार विमर्श , व्यवसाय और लोक व्यवहार करते हैं, वह भाषा वहां की राष्ट्रभाषा है।
दूसरी ओर राजकीय, प्रशासनिक तथा अर्ध सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों द्वारा प्रयुक्त भाषा राजभाषा है।
2. राष्ट्रभाषा जनता की परंतु राजभाषा प्रशासनिक वर्ग की भाषा है।
3. राष्ट्रभाषा का शब्द भंडार लोक भाषाओं, विभिन्न बोलियों आदि से समृद्ध होती चलती है परंतु राजभषा के शब्द सीमित और सुनिश्चित सांचे में ढले होते हैं।
4. राष्ट्रभाषा का प्रयोग समस्त सार्वजनिक स्थलों , गांव , घर , बाजार मंदिरों , मस्जिदों आदि में देखने को आसानी से मिल जाता है परंतु राज भाषा का प्रयोग समानतया कार्यालयी चाहर दीवारी तक सीमित रहता है।
5. राष्ट्रभाषा का प्रयोग अनौपचारिक रूप से सहज स्वच्छंद और उन्मुक्त रूप से किया जाता है परंतु राजभाषा औपचारिकताओं की सीमा में बधी होती है। इसमें उन्मुक्तता या स्वच्छंद कल्पना का स्थान नहीं होता।
भारतीय संविधान में राजभाषा का उल्लेख
भारतीय संविधान के भाग 5,6 और 17 में राजभाषा संबंधी उपबंध है। ये चारों अध्याय अनुच्छेद 343 ( १) में यह बात अंकित है कि " संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी ।"
संविधान सभा में , भारतीय संविधान के अंतर्गत हिन्दी को राजभाषा घोषित करने वाला प्रस्ताव लाने वाले दक्षिण भारतीय नेता और विद्वान गोपाल स्वामी आयंगर थे। श्री गोपाल स्वामी आयंगर और गुजरात के श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी द्वारा प्रस्तुत मसौदे में जो तर्क दिया गया उससे बहुत बातें स्पष्ट हो जाती हैं। ' मुंशी - आयंगर ' फार्मूला के नाम से प्रसिद्ध प्रस्ताव में कहा गया ----
" हमारी मूल नीति यह होनी चाहिए कि संघ के काम काज के लिए हिन्दी देश की सामान्य भाषा हो और देवनागरी सामान्य लिपि हो। मूल नीति यह भी एक मुद्दा है कि सभी संघीय प्रयोजनों के लिए वह अंक काम में लाए जाएं जिन्हें भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप कहा गया है।" ( भारतीय अंक -- १,२,३,४,५,६,७,८,९,१० और इनका अंतरराष्ट्रीय रूप है -- 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10 )
राजभाषा हिंदी पर डा राजेंद्र प्रसाद के विचार
संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था - आज पहली बार हम अपने संविधान में एक भाषा स्वीकार कर रहे हैं जो भारत संघ के प्रशासन की भाषा होगी। और जिसे समय के अनुसार अपने आप को ढालना और विकसित करना होगा। हमने अपने देश का राजनीतिक एकीकरण सम्पन्न किया है। राजभाषा हिंदी देश की एकता को कश्मीर से कन्याकुमारी तक अधिक सुदृढ़ बना सकेगी।
राजभाषा हिंदी की वास्तविक स्थिति
अंग्रेजी की जगह भारतीय भाषा को स्थापित करने से हम निश्चय ही एक - दूसरे के निकट आएंगे। " किंतु सर्वत्र 'अंगरेजी की जगह हिन्दी ' के प्रयोग के लिए ' पंद्रह वर्ष बाद ' अर्थात 1965 ई का समय निर्धारित किया गया । अनुच्छेद 344 (4,5) के अनुसार गठित संसदीय समिति के सिफारिशों के आधार पर 1963 ई में ही राजभाषा अधिनियम पारित कर ( संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि पार हो जाने पर भी ) अंग्रेजी भाषा राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाए जाते रहने का प्रावधान कर दिया गया। हिन्दी की समस्याएं यही से बढ़ गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व जिन राजनेताओं को हिंदी राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में सहायक भाषा लगती थी , स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी साम्राज्यवाद और हिंदी थोपने जैसी बातें लगने लगी। उनका तर्क आता है --
राजभाषा हिंदी के विरोध में तर्क
हिन्दी बड़ी कठिन भाषा है, इसे पढ़ लिख पाना सबके वश की बात नहीं है। हिंदी में ज्ञान विज्ञान और तकनीकी पुस्तकों का अभाव है, आदि। फलत: , अंग्रेजी का वर्चस्व आज तक बना हुआ है। इस तरह हिन्दी को सरकारी कामकाज में अधिकाधिक स्थान देने का संकल्प ज्यों का त्यों धरा रह गया। हां , प्रति वर्ष 14 सितंबर को ' हिन्दी दिवस ' का आयोजन कर हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग का संकल्प दुहरा लेने की औपचारिकताएं ज़रूर की जाती है।
महाकवि अज्ञेय ने ठीक ही कहा है -- ' जब हम राजनीतिक दृष्टि से पराधीन थे तब तो हमारी भाषा स्वाधीन थी । अब हम जब स्वाधीन हो गये , हमारी भाषाएं पराधीन हो गई।
तथापि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छः विश्व हिन्दी सम्मेलन हो चुके हैं , संयुक्त राष्ट्र संघ और विदेशों में भारतीय प्रधानमंत्री हिन्दी में अपनी आवाजें बुलंद कर चुके हैं। मारिशस, चीन, नेपाल, रूस, इंडोनेशिया, अमेरिका, जापान, जर्मन, वर्मा, मलेशिया आदि देशों में उच्च स्तरीय शिक्षण - शोध हिन्दी में हो रहे हैं।अंग्रेजी के अखबार हिंदी में अपने संस्करण निकाल रहे हैं।
हिन्दी को देश के प्रशासकीय तंत्र और राजभाषा के वास्तविक आसान पर प्रतिष्ठित करने के लिए निम्नलिखित प्रयास करने की आवश्यकता है --
1. हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के प्रयोग की छूट समाप्त हो, क्योंकि इस छूट की आड़ में अधिकारी एवं कर्मचारी गण अंग्रेजी प्रयोग को वरीयता देते हैं।
2. हिन्दी की शुद्धता की जगह सहजता को प्राथमिकता देने की जरूरत है। इससे हिन्दी के प्रयोग को अधिक बल मिलेगा।
3. हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़ा, हिन्दी समिति आदि की रश्म अदायगी की औपचारिकताएं पूरी करने के बजाय हमें हिन्दी के प्रति समर्पण का भाव अपनाना चाहिए । हमें हस्ताक्षर सदैव हिंदी में ही करना चाहिए। कम से कम एक हिन्दी पत्रिका और समाचार पत्र हिन्दी संस्करण का ज़रूर घर में लाना चाहिए।
4. हमें चेक, ड्राफ्ट आदि हिन्दी में ही लिखना चाहिए । पत्रों, लिफाफे पर पते हिन्दी में ही लिखना चाहिए।
5. हिन्दी में काम करने वाले अधिकारी, कर्मचारी आदि का अभिनंदन करना चाहिए। हर भारतीय जीवन के हर क्षेत्र में हिंदी और देवनागरी लिपि में काम करने का संकल्प लें।
लेखक
डॉ उमेश कुमार सिंह, भूली नगर, धनबाद झारखंड, भारत।
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