Namak story, नमक कहानी

 नमक कहानी, Namak story

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नमक कहानी


नमक कहानी भारत - पाकिस्तान विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित और पुनर्वासित लोगों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। विस्थापित होकर आई सिख बीबी आज भी लाहौर की यादों को भुला नहीं सकी और लाहौर को ही अपना वतन मानती है। लाहौर से वह नमक लाने की फरमाइश कर देती है। इसी तरह एक कस्टम अधिकारी भी देहली  को अपना वतन बताते हुए गैरकानूनी होते हुए भी नमक ले जाने की इजाजत दे देता है।

सिख बीबी की मुलाकात साफिया से एक कीर्तन में होता है। बातचीत के दौरान दोनों में परिचय बढ़ जाता है। साफिया कहती है कि वह अपने भाईयों से मिलने कल ही लाहौर जाने वाली है। अगर आपको वहां से कुछ सौगात मंगाना है तो हमें बताइए। सिख बीबी पुरानी यादों में खो गई । उसने कहा , यदि ला सके तो लाहौर से थोड़ा नमक मेरे लिए ला देना।

साफिया लाहौर अपने भाईयों से मिलने चली गई। पंद्रह दिन वहां रहते बीत गए। अब वापस भारत आने की बारी आ गई। तैयारियां होने लगीं।  भाइयों द्वारा दिए उपहार और सामान पैक होने लगे। सबसे बड़ी समस्या थी कि नमक का पैकेट कैसे ले जाने की। उसका भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अधिकारी था , सोचा वही कोई अच्छा सलाह दे सकता है। चुपके से पूछने लगी, भैया, यहां से थोड़ा नमक ले जा सकते हैं ? 
भाई यह सुनकर हैरान रह गया। वह बोला, नमक क्यों ले जाओगी ? आप लोगों के हिस्से में भी तो बहुत नमक आया है। 

साफिया बोली मुझे लाहौर का ही नमक ले जाना है। मां ने लाने को कहा है। भाई की समझ में कुछ नहीं आया, क्योंकि उनकी मां को मरे तो वर्षों बीत गए थे। खैर , थोड़ी नरमी से पेश आते हुए कहा, देखो बाजी ! आपको कस्टम विभाग से गुजरना होगा और उन्हें जरा भी शक हुआ तो परेशानी बढ़ जाएगी। भाई ने बहुत समझाया पर साफिया नमक ले जाने पर अड़ी रही। अंत में भाई अदब करते हुए चुप हो गया।

अगले दिन दो बजे साफिया को रवाना होना था। उसने रात में ही सब सामान पैक कर लिया। उसने सोचा फलों की टोकरी में नमक नीचे रख लेना ठीक रहेगा। उसने ऐसा ही किया। वह आस्वस्त होकर लेट गई। रात के करीब डेढ़ बज रहे थे। वह अपने बीते दिनों की याद में खो गई। उसकी यादों में इकबाल का मकबरा, लाहौर का किला, आदि दृश्य उभरने लगे। उसके बहुत सारे अपने तो यही रहते हैं। फिर वह एक साल बाद यहां आएगी या फिर कौन जाने आए या न आए।

अगले दिन साफिया फस्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी थी। टिकट उसके भाई ने खरीद दिए थे। वह सोचने लगी चोरी - चुपके नमक ले जाना अच्छी बात नहीं है। उसने नमक का पैकेट टोकरी से निकालकर अपने पर्स में रख लिया। उसने सोचा कस्टम अधिकारी को सब कुछ साफ़ साफ़ बता देगी। सामने एक कस्टम अधिकारी था। साफिया ने उन्हें सब कुछ बता दिया। वह भी विभाजन से पहले देहली में रहता था। वह साफिया को नमक ले जाने की इजाजत दे दिया और बोला कि मुहब्बत के सामने कस्टम कुछ भी नहीं है। जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून से कहिएगा कि लाहौर अब भी उनका वतन है और देहली मेरा। बाकी सब धीरे धीरे ठीक हो जाएगा।

ट्रेन चल पड़ी। देखते - देखते अटारी बार्डर आ गया। अधिकारी बदल गये। अमृतसर आ गया। अब भारतीय अधिकारियों की बारी आई। सामने एक बंगाली कस्टम अधिकारी थे। साफिया ने उनसे अपनी बात साफ - साफ बता दिया। उन्होंने साफिया को बताया कि वह ढाका के रहने वाले थे। विभाजन में भारत आ गये, परन्तु ढाका के डाभ का पानी अब भी उनकी यादों में बसा था। साफिया को उन्होंने चाय पिलाई और खुद नमक के पैकेट को बाहर ले जाने में मदद किया। साफिया बाहर निकल आई और सोचने लगी कि उसका वतन किधर है, कस्टम के इस तरफ़ या फिर उस तरफ।

नमक कहानी का प्रश्न उत्तर, questions answers Namak story


1. साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया ?


उत्तर -साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से रोक दिया , इसके तीन कारण हैं - 
1. भारत में नमक की कोई कमी नहीं है इसलिए उन्हें पाकिस्तानी नमक ले जाने की कोई जरूरत नहीं है।
2. पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना गैरकानूनी है।
3. कस्टम अधिकारी नमक पाए जाने पर उनके सामान की चिंदी चिंदी चिंदी उड़ा देंगे और अपमान अलग से सहना होगा।

2. नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?

उत्तर - नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में द्वंद्व था कि वह नमक चोरी छुपे ले जाए कि कस्टम अधिकारी को बताकर ले जाए।

3.जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम आफिसर नीली सीढ़ियों के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे ?

उत्तर - जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम आफिसर नीली सीढ़ी के पास सिर झुकाए खडे़ थे। उन्हें सिख बीबी का प्रसंग छिड़ने पर अपने वतन ढाका की याद आ गई थी। वे साफिया और सिख बीबी की भावनाओं से भी अभीभूत थे। उन्हें लगा कि देश की बनावटी सीमाओं के पार लोग के दिल आपस में कितने मिलते हैं। और अपनी जन्म भूमि के लिए कितने तरसते हैं। इन्हें क्यों अपने वतन से अलग कर दिया गया है।

4. लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं ?

उत्तर - पाकिस्तानी कस्टम आफिसर कहता है -- " लाहौर अभी तक उनका ( सिख बीबी ) वतन है और दिल्ली मेरा। " सुनील दास गुप्ता कहते हैं - मेरा वतन ढाका है। ये कथन इस सामाजिक यथार्थ को स्पष्ट करते हैं कि देश की सीमाएं मनुष्य के मन को विभाजित नहीं कर सकतीं। मनुष्य का लगाव अपनी जन्म भूमि से नहीं टूट सकता। स्वदेश प्रेम कोई गमले में उगाया जाने वाला पौधा नहीं है जिसे मन मर्जी से कहीं भी उगाया जा सके। हर मनुष्य को स्वाभाविक रूप से अपनी जन्म भूमि से प्रेम होता है, जो कि अंतिम समय तक रहता है। अतः भारत - पाकिस्तान आदि देशों के विभाजन अस्वभाविक और कृत्रिम हैं।

5. नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करें।

उत्तर - साफिया को एक सिख बीबी ने कहा कि वह उसके लिए लाहौरी नमक लेती आए। यह बात सुनकर साबिया ने निश्चित कर लिया कि वह अपनी मुंहबोली मां के लिए नमक जरूर लाएगी। उसने नमक लाने से बचने के लिए जरा भी दिमाग नहीं लगाया। उसने यह भी निश्चित किया कि प्रेम के इस भेंट को चोरी से नहीं ले जाएगी। वह कस्टम आफिसर को अपनी भावनाओं से अवगत कराएगी। इस बात से पता चलता है कि वह प्रेम की भावना पर पूरा विश्वास करती है। जब उसका भाई कहते हैं कि कस्टम आफिसर नमक नहीं ले जाने देंगे तो वह पूरी विश्वास से कहती है - कुछ मुहब्बत मुरौवत, आदमीयत, इंसानियत के ( कानून ) नहीं होते ? आखिर कस्टम वाले लोग भी इंसान होते हैं। कोई मशीन थोड़े होते हैं ?

साबिया के मन में द्वंद चलता है कि यदि कस्टम आफिसर नमक न ले जाने की आज्ञा देंगे तो क्या होगा ? वह खाली हाथ जाएगी ? तब उसे अपने सैयद होने की याद आ जाती है । वह सोचती है , वह अपना वायदा जरूर पूरा करेगी। इसके लिए उसे चोरी भी करनी पड़े , तो करेंगी। वह चोरी छिपे नमक ले जाने की युक्ति अपनाती है परन्तु कस्टम की जांच का समय आते ही उसके सारे द्वंद समाप्त हो जाते हैं। वह नमक की पुड़िया कस्टम आफिसर के सामने रख देती है। इस तरह उसकी पवित्र भावनाओं की जीत होती है। वह खुशी खुशी नमक की पुड़िया लाने में कामयाब हो जाती है।

 रज़िया सज्जाद ज़हीर का जीवन परिचय,A biography of Rajiya Sajjad jahir


रज़िया सज्जाद ज़हीर मूलतः ऊर्दू कहानी लेखिका हैं। उनका जन्म  15 फरवरी, 1917 को अजमेर, राजस्थान में हुआ था। और उनका निधन 18 दिसम्बर , 1979 को हुआ।

रज़िया सज्जाद ज़हीर की प्रमुख रचनाएं हैं - जर्द़ गुलाब।( ऊर्दू कहानी संग्रह )

सम्मान -- सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, ऊर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड।

रज़िया सज्जाद ज़हीर लिखती हैं - हमारे दृढ़ संकल्प ही हमारी ताकत है, हमारा लिखना ही हमें जिन्दा रखता है।

रज़िया सज्जाद ज़हीर घर पर ही रहकर बी. ए. तक की शिक्षा प्राप्त की थी। विवाह के बाद उन्होंने इलाहाबाद से ऊर्दू में एम. ए. किया। 1947 में वह अजमेर से लखनऊ आ गई। उन्होंने करामात हुसैन गर्लस कालेज में अध्यापन करने लगीं। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई।

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आधुनिक ऊर्दू कथा साहित्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहानी और उपन्यास दोनों लिखे हैं। ऊर्दू में बाल साहित्य पर भी उन्होंने लेखनी चलाई है। मौलिक लेखन के साथ-साथ उन्होंने अन्य भाषाओं से ऊर्दू में कुछ पुस्तकों का अनुवाद भी किया है।

रज़िया सज्जाद ज़हीर की रचनाओं में सामाजिक सद्भाव , धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भों में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास मिलता है। सामाजिक यथार्थ और मानवीय मूल्यों का सहज सामंजस्य उनकी कहानियों के प्राण हैं। रज़िया सज्जाद ज़हीर की भाषा सहज,सरल और मुहावरेदार है।


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