Nawdha bhakti by Shree Ram शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा

शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा

 

श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा दी। नवधा भक्ति क्या है। भक्ति के नौ सोपान। भक्ति कैसे करें।

ईश्वर प्राप्ति के कई माध्यम है, उनमें ज्ञान और भक्ति प्रमुख हैं। ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग में भक्ति मार्ग सरल है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने स्वयं अपने श्रीमुख से भीलनी शबरी को भक्ति मार्ग की शिक्षा दी है। यह नवधा भक्ति है।


शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा , 

Shabri ko Nawdha bhakti ki shiksha

Nawdha bhakti ki shiksha by Shree Ram

( Shree Ram charit Manas)


अपने आश्रम में श्री राम और लक्ष्मण को आए देखकर शबरी खुशी से पागल हो गई। उसे मतंग ऋषि की बातें याद आ गई। उन्होंने शबरी से कहा था कि एक दिन श्री राम यहां आकर तुम्हें दर्शन देंगे। तब से शबरी यहीं रहकर श्रीराम की राह देख रही थी। आज वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हुई और श्री राम उसके सामने खड़े हैं।

सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।।

स्याम गौर सुन्दर दोऊ भाई। सबरी परी चरण लपटाई।।

शबरी के सामने कमल जैसे नेत्रों और विशाल भुजा वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और हृदय पर वनमाला धारण किए  श्री राम खड़े थे।  सुन्दर सांवले और गोरे दोनों भाइयों के चरणों में शबरी लिपट पड़ी। वह प्रेम से अभिभूत हो गई। उसके मुख से बोली नहीं निकल रही थी। उसने जल से दोनों भाइयों के चरणों को धोया और उन्हें सुन्दर आसन पर बैठाया। उन्हें रसीले, स्वादिष्ट कंद मूल फल खाने को दिए।


 कहते हैं कि प्रेम के अतिरेक में शबरी बैरों को पहले खुद चख लेती थी , फिर उन्हें खाने को देती। वह दोनों हाथों को जोड़कर श्री राम के सामने खड़ी हो गई और बोली, " से नाथ ! मैं नीचे जाति की अत्यंत मंदबुद्धि स्त्री हूं। मैं कुछ नहीं जानती। किस प्रकार आपकी स्तुति करूं।

अधम ते अधम अधम अति नारी। तिंह महं मैं मति मंद अघारी।।

कह रघुपति सुनु भामिनी बाता। मानऊ एक भगति कर नाता।।

श्री राम कहते हैं कि मैं तो केवल एक भक्ति का ही संबंध मानता हूं। सब कुछ रहते हुए भी भक्ति से हीन मनुष्य जल विहीन बादल जैसा लगता है। और फिर उन्होंने शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा दी।

नवधा भगति कहंऊं तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरू मन माहीं।।

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।

श्रीराम नवधा भक्ति के बारे में कहते हैं - पहली भक्ति है संतों का सत्संग करना। दूसरी भक्ति है भगवान की कथा में प्रेम रखना। तीसरी भक्ति अभिमान रहित हो कर गुरु के चरणों की सेवा और चौथी भक्ति है कपट छोड़कर मेरे गुण समूह का गान करें।


मेरे ( राम ) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास - यह पांचवीं भक्ति है। छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह,  कार्यों में वैराग्य, संत पुरुष के धर्म में लगे रहना।  सातवीं भक्ति है जगतभर को समभाव से मुझमें ( राममय ) देखना। संतों को मुझसे भी अधिक मानना। 


आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए उसी में संतोष करना , स्वप्न में भी पराए दोष को नहीं देखना। नौवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित बर्ताव। हृदय में मेरा भरोसा रखना। किसी भी स्थिति में हर्ष या विषाद का न होना। श्रीराम कहते हैं, इन नवों में से एक भी , वह जड़ हो या चेतन। स्त्री हो या पुरुष। मुझे अत्यन्त प्रिय है।

इस प्रकार श्री राम ने शबरी को अनुगृहित किया और फिर सीता माता की खोज में आगे पंपापुर की ओर चल दिए।

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