हिन्दी कहानी, परिभाषा, तत्व, उद्भव और विकास, Hindi story, definition,
हिन्दी कहानी : परिभाषा, तत्व, उद्भव और विकास, कहानी के भेद, कहानी और उपन्यास में अंतर।
विषय सूची
कहानी की परिभाषा एवं लक्षण
कहानी के तत्व,
कहानी और उपन्यास में अंतर
कहानी के भेद
कहानी का उद्भव और विकास
हिन्दी कहानी की परिभाषा एवं लक्षण
वैसे तो कहानी का सामान्य अर्थ ' कहना ' होता है, लेकिन आज हिन्दी साहित्य में कहानी शब्द एक साहित्य के विधा के लिए प्रयोग किया जाता है। कहानी की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार दी है --
पाश्चात्य साहित्यिक विद्वान एडगर एलन ने कहानी को रसोद्रेक करने वाला एक ऐसा आख्यान माना है जो एक ही बैठक में पढा जा सके। एच. जी. वेल्स ने कहानी के संबंध में कहा है कि - कहानी तो बस वही है जिसे लगभग बीस मिनट में साहस और कल्पना के साथ पढ़ी जाय। कहानी के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए हिन्दी साहित्य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद लिखते हैं -- " कहानी एक रचना है, जिसमें जीवन के लिए एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। --- उपन्यास की भांति उसमें मानव जीवन का संपूर्ण तथा वृहद रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। न उसमें उपन्यास की भांति सभी रसों का सम्मिश्रण ही होता है। वह एक रमणीय उद्यान नहीं, जिसमें भांति - भांति के फूल - बेल - बूटे सजे हैं, बल्कि एक ऐसा गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है। "
इन सभी परिभाषाओं को मिलाकर कहा जा सकता है कि कहानी जीवन के किसी एक अंग अथवा मनोभावों को प्रदर्शित करने वाली वह गद्य बद्ध रचना है जो मनोरंजक तथा कौतूहल वर्द्धक हो तथा जिसके अंत में किसी चमत्कारपूर्ण घटना की योजना की जाए।
कहानी के तत्व
कहानी के छः तत्व है - 1. कथानक अथवा कथावस्तु 2. पात्र अथवा चरित्र चित्रण 3. देशकाल अथवा वातावरण 4. संवाद अथवा कथोपकथन 5. भाषा - शैली 6 . उद्देश्य।
कहानी और उपन्यास में अंतर
यह ठीक है कि कहानी और उपन्यास के तत्व एक ही होते हैं फिर भी इन दोनों में प्रयाप्त अंतर है। पहली बात तो यह है कि उपन्यास विस्तृत और कहानी लघु रचना होती है। इसके अलावा उपन्यास में जीवन के विस्तृत क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जाता है परंतु कहानी में जीवन के किसी एक अंग की झांकी रहती है। उपन्यास में पात्रों की संख्या अधिक और संवाद लंबे होते हैं परन्तु कहानी में पात्रों की संख्या कम और संवाद छोटे होते हैं। उपन्यासकार की तरह कहानी कार अपनी रचना में अनेक समस्याओं या सिद्धांत का चित्रण नहीं करता बल्कि अपना सारा ध्यान किसी एक विचार अथवा सिद्धांत पर ही केंद्रित रखता है।
कहानी के भेद
विषय वस्तु के आधार पर कहानी के आठ भेद किए गए हैं
1. घटना प्रधान, 2. पात्र प्रधान, 3. विचार प्रधान , 4. भाव प्रधान 5 . कल्पना प्रधान , 6. हास्य प्रधान 7. काव्यात्मक, 8. प्रतीकात्मक
रचना लक्ष्य के आधार पर कहानी के तीन भेद हैं -
1. आदर्शवादी, 2. यथार्थवादी, 3. आदर्शोमुख यथार्थवादी
कहानी का उद्भव और विकास
यू तो संस्कृत साहित्य, पंचतंत्र, हितोपदेश , जातक कथाओं में भी कथा कहानी मिलते हैं परन्तु इन्हें आधुनिक हिन्दी कहानी का मूलाधार नहीं मान जा सकता है। हिन्दी में कहानियों का आरंभ प्रायः गोकुलनाथजी द्वारा रचित चौरासी वैष्णवों की वार्ता तथा दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता से माना जाता है। लेकिन आधुनिक मानदंडों के आधार पर ये कहानियां खड़ी नहीं उतरतीं।
अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में मुंशी सदासुखलाल सुखसागर, लल्लू लाल ने प्रेम सागर की रचना की परंतु इनमें मौलिकता नहीं है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने " एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न " नामक कहानी की रचना की। लेकिन इसे भी हिन्दी की प्रथम कहानी नहीं कहा जा सकता है।
सरस्वती पत्रिका के संपादन से आधुनिक कहानियों का जन्म हुआ। इसमें किशोरी लाल गोस्वामी की इन्दुमति कहानी प्रकाशित हुई। इस कहानी पर शेक्सपियर के नाटक टेमपेस्ट का स्पष्ट प्रभाव है।
हिन्दी कहानी के विकास के इतिहास में प्रेमचंद का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है । जयशंकर प्रसाद भी इसी युग में। आते हैं। हिन्दी कहानी के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद प्रेमचंद से चार वर्ष पूर्व आए थे। प्रसाद जी की प्रसिद्ध कहानी ग्राम ' इन्दु' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई ।
प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर सन् 1914 ई में प्रकाशित हुई। इसी कहानी से वे हिंदी कथा साहित्य में प्रवेश करते हैं। कुछ विद्वान इसे ही हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं। भाव और शिल्प दोनों क्षेत्रों में इन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। उनकी अन्य कहानियों में दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी, कफन, ईदगाह, पूस की रात आदि प्रमुख हैं।
प्रेमचंद युग के अन्य सफल कहानी कारों में पं चंद्रधर शर्मा गुलेरी, सुदर्शन, विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक, उपेन्द्र नाथ अश्क आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इस युग की कहानियों में उसने कहा था, हार की जीत आदि उल्लेखनीय हैं।
इसे भी पढ़ें
प्रेमचंद जी के बाद जैनेन्द्र कुमार, शिव प्रसाद सिंह, सियाराम शरण गुप्त, इलाचंद जोशी, अज्ञेय आदि प्रमुख हैं जिन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध किया है। स्वतंत्रता के पश्चात फणीश्वरनाथ रेणु, विष्णु प्रभाकर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव, शैलेश भटियानी, नरेश मेहता ने अपनी कहानियों से हिन्दी कथा को सम्पन्न किया है।
*************************************************
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें