प्रायश्चित कहानी , लेखक भगवती चरण वर्मा, Prayshchit story, Bhagwati charan verma
प्रायश्चित कहानी, लेखक भगवती चरण वर्मा, Prayshchit story by Bhagwati charan verma
' प्रायश्चित' कहानी भगवती चरण वर्मा द्वारा लिखित एक ऐसी कहानी है जिसमें मध्यकालीन समाज में व्याप्त ढोंग और अंधविश्वास का बखूबी बखिया उधेड़ने का प्रयास किया गया है। यह तो अच्छा हुआ कि कबरी बिल्ली मरी नहीं थी , बर्ना रामू की बहू की खैर न होती और पंडित परमसुख के तो पौ बारह ही थे। तो आइए , प्रायश्चित कहानी का अध्ययन कर उसके प्रश्न उत्तर पर भी गंभीरता से विचार किया जाए।
रामू की शादी हुए बहुत दिन नहीं बीते थे। चौदह वर्ष की बालिका जब पहली बार बहू बनकर ससुराल आई तो उसकी सास ने पूरे घर की मालकिन उसे ही बना दिया। किसी को कुछ देना - लेना हो या बाजार से कुछ मंगाना हो, सबकी चिंता वही करती। लेकिन दुर्भाग्यवश एक कबरी नाम की बिल्ली उस घर में ऐसी परीक गई थी कि नाम मत पूछो। बहू उससे बहुत परेशान रहती।
बहू कमसिन थी, उसमें अनुभव का अभाव था। कभी भंडार घर खुला रह जाता तो कभी भंडार घर में बैठे बैठे ही सो जाती। ऐसे में कबरी बिल्ली को मौका मिल जाता, दूध, घी सब चट कर जाती। बाजार से मलाई आया , बहू जब तक पान लगाती, तब तक मलाई कबरी के पेट में। कबरी ऐसे परख गई कि बहू के लिए खाना पीना , सब दुश्वार। रामू की बहू ने तय कर लिया , या तो इस घर में कबरी रहेगी या हम।
मोर्चा बंदी हो गई, और दोनों सतर्क। पहले बिल्ली को फंसाने के उपाय किये गये, परन्तु सब व्यर्थ। वह अब और ढीठ हो गई । कबरी बिल्ली के हौसले बढ़ जाने से बहू की मुश्किलें और बढ़ गई। कुछ भी अच्छी चीजें सलामत नहीं बचती।
एक दिन रामू की बहू ने रामू के लिए खीर बनाई। खूब पिस्ता, बादाम , मेवे डालकर। सोने का वर्क चिपकाए और खीर भरा कटोरा कमरे में ऊंचे ताक पर रखकर रामू की बहू पान लगाने लगी। उधर कमरे में बिल्ली पहुंची और ताक पर रखे कटोरे की ओर देखा, सूंघा। माल अच्छा लगा, रामू की बहू सास को पान देने गई थी, रास्ता साफ था। कबरी ने ऊंचाई का अनुमान लगाया और छलांग लगा दी। फिर क्या, पंजा कटोरे से लगा और कटोरा झन की आवाज के साथ फर्श पर गिर पड़ा। फिर क्या फूल का कटोरा टूट गया और कबरी फर्श पर गिरी खीर का मजा लेने लगी। रामू की बहू को देखते ही कबरी चंपत।
रामू की बहू ने मन बना लिया कि अब कबरी को नहीं छोड़ेंगी। उसने मन ही मन प्लान बना लिया। सुबह मौका भी मिल गया। दरवाजे की देहरी पर दूध रखी थी। कबरी दूध पीने में लगी थी , रामू की बहू ने एक पाटा उस पर पटक दिया और कबरी चित।
आवाज सुनकर घर के सारे लोग एकत्रित हो गए। महरी, मिसराइन, सास सब घटना स्थल पर पहुंच गए और बहू अपराधिन की तरह खड़ी सबकी बातें सुन रही थी।
महरी बोली - बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है। सास बोली - ठीक कहती हो, जब तक बहू के सिर से हत्या न उतर जाए तब तक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है। बहू तूने यह क्या कर डाला ?
बिल्ली की हत्या की खबर बिजली की तरह पास - पड़ोस में फैल गई। पड़स की औरतें रामू के घर आ गई। सास के कहने पर महरी पंडित जी को बुलाने गई। चारो ओर से प्रश्नों की बौछार और और रामू की बहू चुपचाप सिर झुकाए खड़ी थी।
दिल को कैसे बचाएं
पंडित परमसुख चौबे को जब यह खबर मिली , उस समय वह पूजा कर रहे थे। खबर मिलते ही उठ खड़े हुए और पंडिताइन से मुस्कुराते हुए कहा - लाला घासीराम की पतोहु ने बिल्ली मार डाली। प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।
पंडित परमसुख चौबे नाटे कद काठी के गोल मटोल आदमी थे। पंसेरी खुराक में इनका नाम सबसे ऊपर रहता था। पंडित जी पहुंचे, कोरम पूरा हुआ। पंचायत बैठी, पंडित परमसुख चौबे ने पूछा, बिल्ली की हत्या कब हुई ? समय का पता चलता तो नरक का पता चलता। मिसराईन ने कहा - यही कोई सात बजे। पंडित जी पतरा उल्टे, उंगलियों को आपस में घुमाया, फिर माथे पर बल देते हुए कहा - घोर अनर्थ, ब्रह्म मुहूर्त में बिल्ली की हत्या। महा पाप।
रामू की मां की आंखों में आंसू आ गए। वह बोली - पंडित जी अब आप ही कोई रास्ता बताइए। पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा - आखिर यह पुरोहित किस दिन काम आएगा। शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है।सब ठीक हो जाएगा। एक सोने की बिल्ली बनवाकर बहू के हाथों दान करवा दी जाए। फिर उसके बाद इक्कीस दिन पाठ होगा।
छुन्नू की दादी बोली - हां और क्या ! पंडित जी ठीक ही कहते हैं। बिल्ली अभी दान दें दी जाए और पाठ फिर हो जाएगा। रामू की मां ने कहा , तो कितने तोले की बिल्ली बनवाई जाए?
कितने तोले की बिल्ली बनवाई जाए ? अरे रामू की मां , शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के बराबर वजन की सोने की बिल्ली बनवाई जाए। लेकिन घोर कलयुग है, धर्म - कर्म का नाश हो गया। हां कम से कम इक्कीस तोले की बिल्ली बनवाकर दान कर दो, और आगे आपकी श्रद्धा।
मोल - तोल शुरू हो गया। मामला ग्यारह तोले की बिल्ली पर ठीक हो गया। अब पूजा - पाठ की बात होने लगी। पंडित जी ने कहा कम से कम समान में काम कर दूंगा। दान के लिए दस मन गेहूं, एक मन दाल, मन भर तिल, पांच मन जौ, पांच मन चना, चार पंसेरी घी और मन भर नमक भी लगेगा।
इक्कीस दिन के पाठ के इक्कीस रूपए और इक्कीस दिन तक दोनों वक्त पांच- पांच ब्राह्मण को भोजन भी करवाना पड़ेगा। लेकिन चिंता मत करो, मेरे अकेले के भोजन कर लेने से पांच ब्राह्मण के भोजन का फल मिलेगा।
अच्छा तो अब प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ। ग्यारह तोले सोने निकलवाओ। पूजा का प्रबंध करवाओ तब तक मैं बिल्ली बनवाकर आता हूं। तभी महरी हांफती हुई आई और बोली, मां जी , बिल्ली तो भाग गई।
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