रहीम कवि के दस दोहे, रहीम की जीवनी, Rahim ke 10 dohe, Rahim ki jiwani





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  रहीम कवि की जीवनी, biography of Rahim


रहीम कवि कि पूरा नाम अब्दुल रहीम खाने खाना था ‌ । वे मुगल सम्राट अकबर के दरबारी नवरत्नों में एक थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से भारत वासियों को नीति और ज्ञान का सबक सिखाया है। रहीम एक अच्छे कलाप्रेमी और साहित्यकार थे। उनके दोहे में नीति, भक्ति, रीति, प्रेम, श्रृंगार की गंगा बहती है ‌उन्होने रामायण, महाभारत, गीता, पुराण की कथाओं से दृष्टांत लिए हैं। 

पूरा नाम - अब्दुल रहीम खाने खाना
पिता जी - मरहूम बैरम खाने खाना
जन्म तिथि - 1556 लाहौर
मृत्यु - 1627
प्रमुख रचनाएं - रहीम दोहावली, रहीम सतसई, मदनाश्टक, रहीम रत्नावली।


जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।।

Rahim ke dohe


अर्थ -- रहीम कवि कहते हैं - यदि आपका चरित्र उत्तम और निश्चय दृढ़ हो तो कुसंति भी आपका कुछ नही बिगाड़ सकता। अर्थात बुरी संगति  का प्रभाव भी उस पर नहीं पड़ता। जैसे चन्दन के पेड़ पर तरह तरह के विषधर कालसर्प लिपटे रहते हैं, फिर भी चन्दन की शीतलता समाप्त नहीं होती। इसलिए चरित्र की दृढ़ता और मजबूती आवश्यक है।


रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।

जहां काम आवै सुई, कहा करै तलवारि ।।


अर्थ -- रहीम कवि कहते हैं- बड़े के मिल जाने से छोटे का परित्याग नहीं करना चाहिए। क्योंकि सूईं का काम तलवार नहीं कर सकता। सूई का काम सूई ही कर सकता है, तलवार नहीं। अर्थात सभी का अपना अपना विशिष्ट महत्व है।



कहिए रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपप्ति कसौटी जे कसे, ते ही सांचे मीत।।


अर्थ--

रहीम कवि कहते हैं- जब धन संपत्ति रहती है तब बहुत से मित्र मिल जाते हैं। लेकिन वही सम्पत्ति जब नहीं रहती, तो मित्र भी बेगाने बन जाते हैं। लेकिन आपत्ति - विपत्ति में जो साथ दे वही सच्चा मित्र है।


जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।

बारै उजियारे लगै , बढै अंधेरो होय।।


अर्थ - 

रहीम कवि कहते हैं, दीपक और कपूत की गति एक जैसी होती है। प्रारंभ में तो दोनों अच्छे लगते हैं लेकिन जैसे जैसे बड़े होते हैं, वैसे वैसे कष्ट ही देते हैं।


दोनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।

जानिए परत हैं काक - पिंक, ऋतु बसंत के मांहि।।


अर्थ --


रहीम कवि कहते हैं, - जब तक बोलते नहीं तब तक अच्छे - बुरे की पहचान नहीं हो सकती। अब देखिए न , कौआ और कोयल का रंग तो एक समान ही होता है, लेकिन बसंत ऋतु में उनकी बोली से ही दोनों की पहचान होती है।


बड़े बड़ाई नहिं करैं, बड़े न बोले बोल।

रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल।।


अर्थ --

रहीम कवि कहते हैं- जो बड़े होते हैं , वे अपनी बड़ाई अपने मुख से नहीं करते। जैसे हीरा कभी यह नहीं कहता कि मेरी कीमत लाख रुपए है। उसकी कीमत लोग लगाते है।


रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।

काटे चाटे स्वान के, दोऊ भांति विपरीत।।


अर्थ --

रहीम कवि कहते हैं, छोटे विचार के लोगों से न दोस्ती भली होती है न दुश्मनी। उनसे दूर रहना ही अच्छा है। जैसे कुत्ते का काटना और चाटना दोनों ही नुकसानदेह होता है।


बिगडी बात बने नहीं लाख करो किन कोय।

रहीमन फाटे दूध को , मथे न माखन होय।।


अर्थ -


रहीम कवि कहते हैं, जब बात बिगड़ जाती है तो लाख प्रयास करने के बाद भी नहीं बनती। जैसे फटे दूध को कितना भी मथे, उससे मक्खन नहीं निकलता है। इसलिए बात नहीं बिगड़े, इसका ख्याल करना चाहिए।




रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।

रहिमन फिर - फिर पोइए , टूटे मुक्ताहार।।


अर्थ --

अच्छे लोग रूठे तो उन्हें किसी भी तरह मना लेना चाहिए। क्योंकि अच्छे लोग इस ज़माने में बार बार नहीं मिलते। जैसे मुक्ताहार टूटने पर उसे जोड़ लिया जाता है। मोतियों को चुनकर उसे फिर से पिरो लेते हैं।


जो बड़ेन को लघु कहे, नहीं रहीम घटी जाहिं।

गिरधर मुरलीधर कहै, कछु दुख मानत नाहिं।।


अर्थ --

यदि बड़े को छोटा भी कहा जाता है तो वे बुरा नहीं मानते। जैसे गिरि को धारण करने वाले श्रीकृष्ण को मुरली धर भी कहा जाता है, लेकिन वे बुरा नहीं मानते। गिरि कितना बड़ा है, लेकिन मुरली तो छोटी होती है।


डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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