Yamraj ki disha poem, Chandra Kant dewtaleयमराज की दिशा , कविता, चन्द्र कांत देवताले

 

यमराज की दिशा, कविता, कवि        चंद्रकांत देवताले, 

Yamraj ki disha, poem,  poet Chandra Kant         Dewtale


नौवीं कक्षा हिंदी, ninth class hindi, मां ने बचपन में क्या बतलाया, कवि को दक्षिण दिशा पहचान करने में भूल क्यों नहीं होती है, यमराज का घर कहां होता है, यमराज किसके देवता हैं, यमराज रूष्ट क्यों हो जाते हैं, आजकल यमराज सभी दिशाओं में रहते हैं का क्या अर्थ है ? यमराज की दिशा कविता का भावार्थ, यमराज की दिशा कविता के कवि कौन है ? कवि चन्द्र कांत देवताले का जीवन परिचय, यमराज की दिशा कविता का प्रश्न उत्तर, summary of poem Yamraj ki disha, biography of poet Chandra Kant dewtale, NCERT solutions, class ninth hindi.




 ' यमराज की दिशा ' कविता कवि चंद्रकांत देवताले की लिखी प्रसिद्ध कविता है जिसमें कवि ने यह बताया है कि जीवन विरोधी शक्तियां आज हरेक दिशाओं में बिराजमान है। उन नाकारात्मक शक्तियों का मुकाबला एक जूट होकर करने की आवश्यकता है। कक्षा नौवीं के कोर्स में यह कविता दी गई है जिसके भावार्थ और प्रश्न उत्तर प्रत्येक परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। कविता मुक्त छंद में लिखी गई है, परंतु कविता की पंक्तियां लय युक्त है।



कविता यमराज की दिशा का भावार्थ

             अथवा सार


कवि चंद्रकांत देवताले जी कहते हैं कि उसके लिए यह कहना मुश्किल है कि उसकी मां की भेंट ईश्वर से हुई थी कि नहीं, परन्तु उसकी मां हमेशा यह जताती थी कि ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है। उनकी सलाह के अनुरूप ही वह दुख - दर्द के बीच राह निकाल लेती है थी। कवि की मां एक बार उन्हें बताई थी कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। उस ओर पैर करके सोने से यमराज नाराज हो जाते हैं।कवि ने मां से जब यमराज के घर का पता पूछा तब भी मां ने यही बताया था कि दक्षिण दिशा में यमराज का घर है। उसके बाद कवि चंद्रकांत देवताले कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोए। 

इसके बाद कवि सुदूर दक्षिण दिशा की यात्रा की परंतु दक्षिण को लांघना संभव नहीं था, नहीं तो यमराज का घर देख आता। कवि का कहना है कि मां अपशकुन के रूप में जिस भय की बात कही वह अब केवल भय, हिंसा, विध्वंस के रूप में अब दक्षिण दिशा में ही नहीं, सब ओर फैला हुआ है। जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। कवि इन विरोधी शक्तियों का एक जूट होकर मुकाबला करने का मौन आह्वान करते हैं।

यमराज की दिशा कविता एवं भावार्थ


मां की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं 
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है

मां ने एक बार मुझसे कहा था -
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं

तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था-
तुम जहां भी हो वहां से हमेशा दक्षिण में

मां की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा

मैं दक्षिण में दूर - दूर तक गया
और मुझे हमेशा मां याद आई
दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुंच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आंखों सहित विराजते हैं

मां अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो मां जानती थी।

कवि चंद्रकांत देवताले का जीवन परिचय


चंद्र कांत देवताले का जन्म 1936 ई में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के जौलखेड़ा नामक गांव में हुआ था। साठोत्तरी कविता के रचयिता में देवताले जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्होंने सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया था।

चंद्र कांत देवताले की प्रमुख रचनाएं हैं - हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रौशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।

चंद्र कांत देवताले को इनकी साहित्यिक योगदान के लिए  अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान,  प्रमुख हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद विदेशी भाषाओं में भी हुआ है।

चंद्र कांत देवताले की कविताओं के मूल में गांव - कस्बे और मध्य वर्ग दिखाई देता है जिसमें उन्होंने उनकी विविधताओं और विडंबनाओं को सफलतापूर्वक चित्रित किया है। कवि अपनी बात सीधी और मारक क्षमता से प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है। उनके हृदय में व्यवस्था की कुरूपता के प्रति गुस्सा है तो वहीं मानवीयता के प्रति प्रेम भी है।


  Yamraj ki disha questions

 answers, यमराज की दिशा - प्रश्न- उत्तर


1. कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?

उत्तर - मां ने कवि को बचपन में समझा दिया था कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। इस दिशा में मृत्यु के देवता यमराज का घर है। इसलिए वह जहां भी जाता उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।

2. कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था ?

उत्तर - पृथ्वी का विस्तार गोलाकार और विस्तृत है । दक्षिण की दूर - दूर तक यात्रा करने पर भी कवि को दक्षिण का कोई छोर नहीं मिला। इसलिए कवि ने कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं है।

3 . कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गयी है ?

उत्तर - कवि के अनुसार आज जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। सभी तरफ़ विध्वंस, हिंसा और लूट पाट मचा हुआ है। इसलिए आज प्रत्येक दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है।

4. कवि की मां ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग निर्देश देती है । आपकी मां भी समय समय पर आपको सीख देती होगी -- 


1. वह आपको क्या सीख देती है ?

उत्तर - हमारी मां भी समय समय पर हमें कुछ सीख देती है, जैसे किसी को सताओ नहीं, हमेशा सत्य बोलो।

2. क्या उसकी हर सीख आपको उचित लगती है?

उत्तर - मां की हर सीख उचित ही होती है कि। क्योंकि उसकी हर सीख में हमारी भलाई छिपी होती है।


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