महाभारत कथा में शाल्व के साथ श्रीकृष्ण का युद्ध, शाल्व की मृत्यु , Shalw ki kahani
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शाल्व कौन था ? रूक्मिणी कौन थी? शाल्व किनकी तपस्या करने लगा ? शाल्व क्या वरदान मांगा ? शाल्व को किसने मारा ?
शाल्व शिशुपाल का परम सखा और मित्र था। रूक्मिणी के विवाह के समय जरासंध आदि राजाओं के साथ वह भी बारात आया था और यदुवंशियों के हाथों पराजित हुआ था। तभी उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह यादवों का सर्वनाश कर देगा। इस तरह प्रतिज्ञा करके वह अपनी शक्ति वृद्धि के लिए भगवान आशुतोष शिव जी की तपस्या करने लगा।
भगवान आशुतोष शिव जी उसकी मंशा भली भांति जानते थे इसलिए उन्होंने एक वर्ष तक शाल्व की घोर तपस्या पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन अंततः उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वर मांगने को कहा। उस समय शाल्व ने वरदान में एक ऐसा विमान मांगा जो देवता, नर, असुर, गंधर्व,नाग, मनुष्य आदि किसी से तोड़ा न जा सके। जहां इच्छा हो जा सके तथा यदुवंशियों के लिए अत्यंत ही भयानक हो। भगवान ने उसे ऐसा ही वरदान दे दिया। तब मय दानव ने भगवान शिव की आज्ञा से लोहे का सौभ नामक विमान बनाकर शाल्व को दे दिया। वह विमान क्या , एक नगर ही था। उसे पकड़ना तो दूर , उसे देख पाना असंभव था। शाल्व उसे पाकर बहुत खुश हुआ। उसने द्वारका पर चढ़ाई कर दिया।
शाल्व द्वारका के महलों और उपवन को नष्ट करने लगा। उस समय श्रीकृष्ण अपने पूज्य भाई बलराम जी के साथ इंद्रप्रस्थ में थे। इस समय उनके पुत्र प्रद्युम्न जी द्वारका की सुरक्षा में तैनात थे। उन्होंने बड़ी वीरता से शाल्व का सामना किया। बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। मय दानव का बनाया रथ ऐसा मायावी था कि कहना ही क्या ? कभी अनेक रूप में दीखता तो कभी गायब हो जाता। यादवों की सेना त्राहि त्राहि कर रही थी। कभी प्रद्युम्न की बाणों से शाल्व मूर्छित हो जाता तो कभी शाल्व की बाणों से प्रद्युम्न।
युद्धिष्ठिर का राजसूय यज्ञ सम्पन्न हो चुका था और शिशुपाल भी मारा गया था। श्रीकृष्ण को लगा कि बड़े बड़े अपशकुन हो रहे हैं। उन्होंने द्वारका आने का निश्चय किया। द्वारका पहुंचकर उन्होंने देखा कि यहां भयंकर युद्ध छिड़ा हुआ है। उन्होंने महाबली बलराम जी को नगर की सुरक्षा का जिम्मा देकर अपने सारथी दारूक से कहा -- " दारूक ! शाल्व बड़ा मायावी है , फिर भी तुम घबराना नहीं। मेरा रथ उसके सामने ले चलो। "
श्रीकृष्ण को देखते ही यादव सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। यह देखकर शाल्व ने एक जबरदस्त शक्ति श्रीकृष्ण के सारथी पर छोड़ा। उसके प्रभाव से सारी दिशाएं चमक उठी। शक्ति को अपने सारथी की ओर बढ़ते देखकर श्री कृष्ण उसे अपने बाण से बीच में ही नष्ट कर दिया।
अब शाल्व श्री कृष्ण की ओर लपका। भगवान श्री कृष्ण के गदा के प्रहार से वह खून की उल्टियां करने लगा। लेकिन पलक झपकते ही वह अंतर्धान हो गया। उसने अपनी माया से मायापति श्री कृष्ण को दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया लेकिन उस मूढ़ को यह पता नहीं था कि मायापति श्री कृष्ण को कौन भ्रमित कर सकता है ? अंत में भगवान श्री कृष्ण ने अपने चक्र सुदर्शन से उसका गर्दन काट दिया। और उसे परमधाम भेज दिया।
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