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ग्राम - श्री कविता
कवि - सुमित्रानंदन पंत
Gram - Shree Poem
गांव की शोभा
ग्राम श्री कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य एवं समृद्धि का मनमोहक वर्णन किया है। यहां खेतों में दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली है। कवि पंत प्रकृति के प्रेमी हैं। उनकी रचना कौशल की विशेषताएं यहां स्पष्ट देखी जा सकती है। पाठकों के हितों का ध्यान रखते हुए यहां ग्राम श्री कविता , कविता का भावार्थ , कठिन शब्दों के अर्थ तथा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए जा रहे हैं।
गांव की सुन्दरता कैसी होती है ? सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब और कहां हुआ था ? खेतों में कैसी हरियाली फैली है ?वसुधा कब रोमांचित लगती है ? तीसी की कली का रंग कैसा होता है ? अलसी क्या है ? ग्राम श्री कविता में किस ऋतु का वर्णन किया गया है ? कवि ने गांव को भरता जन मन क्यों कहा है ? मरकत के डिब्बे से क्या समझते हैं ? NCERT solutions, Gram Shree poem summary, poet sumitranandan pant biography, beauty of village, beauty of field, MCQ poem Gram Shree poem, gram Shobha kavita, gram sabha poem summary, questions answers, phaili keto me door talak
ग्राम श्री कविता
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिसमें रवि की किरणें
चांदी की - सी उजली जाली।
तिनकों के हरे - हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू- तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
रोमांचित - सी लगती वसुधा
आई जौ - गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियां हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली - पीली,
लो, हरित धरा से झांक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
रंग - रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियां मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियां, छिपाए बीज लड़ी !
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हो फूल स्वयं
उड़ उड़ वृतों से वृतों पर !
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरू की डाली,
झर रहे ढाक , पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली !
महके कटहल , मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल - लाल चित्तियां पड़ी,
पक गए सुनहरे मधुर बेर,
अंवली के तरू की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
बालू के सांपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती,
अंगुली की कंघी से बगुले
कलंगी संवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई !
हंसमुख हरियाली हिम - आतप
सुख से अलसाए - से सोए ,
भींगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में - से खोए -
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम -
जिस पर नीलम नभ आच्छादन,
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
ग्राम - श्री ( कविता ) का भावार्थ
'ग्राम श्री ' कविता सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित एक छायावादी कविता है। इस कविता में गांव की सुन्दरता और समृद्धि का मनमोहक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। खेतों में दूर दूर तक हरियाली फैली हुई है। हरियाली पर जब सूर्य की रोशनी पड़ती है तो वह चांदी की सफेद जाली जैसी लगती है। हरे हरे घास फूस हवा के झोंको से हिल डुल रहे हैं जिससे हरे रूधिर का बोध होता है। और शस्य श्यामला धरा पर स्वच्छ , निर्मल आकाश छाया हुआ है।
कवि कहते हैं, खेतों में अरहर और सनई के खेत बहुत सुंदर दीख रहे हैं। पीले पीले सरसों के फूल चारों दिशाओं में तेल युक्त गंध की खुशबू फैला रहे हैं।
रंग बिरंगी फूलों और फलियों से लदी मटर गर्व से हंस रही है। मटर की छीमियां अपने बीजों की लड़ियां छिपाए मखमल की पेटी की तरह लगती है। रंग - बिरंगे फूलों पर रंग रंग की तितलियां मंडरा रही है।
आम के पेड़ों पर बौर आ गया है। ढाक और पीपल के पत्ते पीले पड़ रहे हैं। कोयल मतवाली है। बसंत का प्रभाव दूर दूर तक फैला हुआ है। पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर, मिर्चे सबकी सुन्दरता देखते बनती है।
बालू पर तरबूजों की खेती, सरोवर के किनारे बगुले, सरोवर में सुरखाब तैरते और किनारे पर मगरौठी बैठी बहुत सुंदर लगती है। बसंत ऋतु में खूब हरियाली फैली हुई है, मंद मंद धूप आलस्य पैदा करती है। रात के अंधेरे में तारे ऐसे टिमटिमाते है जैसे वे सपने में खोए हों। गांव की हरियाली देखकर लगता है जैसे पन्ने का डब्बा खुल गया हो। यह सौंदर्य सबको अपनी ओर आकर्षित करता है।
सुमित्रानंदन पंत जी का जीवन परिचय
सुमित्रा नंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा (उत्तरांचल) जिले के कौसानी नामक स्थान में हुआ था। इनका मूल नाम गोसाईं दत्त था। पंत जी हिंदी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्ति छायावाद के महत्त्वपूर्ण स्तम्भ माने जाते हैं। पंत जी का जन्म स्थान प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण है, इसलिए उनकी कविताओं पर प्रकृति के अनुराग का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। पंत जी में वास्तविकता के प्रतिकूल और दारुण रूप के अभाव का कारण भी कुछ सीमा तक प्रकृति के प्रभाव को माना जाता है। उनके मन में प्रकृति के प्रति इतना मोह पैदा हो गया था कि ये जीवन की नैसर्गिक व्यापकता और अनेकरूपता में पूर्ण रूप से आसक्त न हो सके ---
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले ते बाल जाल में कैसे उलझा दूं लोचन?
छोड़ अभी से इस जग को।
सुमित्रा नंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। हिंदी कविता में प्रकृति को पहली बार प्रमुख विषय बनाने का काम पंत जी ने ही किया है।
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिसमें रवि की किरणें
चांदी की - सी उजली जाली।
तिनकों के हरे - हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू- तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
अर्थ ग्रहण संबंधित प्रश्न
1. गांव के खेतों में कैसी हरियाली फैली हुई है ?
उत्तर - गांव के खेतों में मखमल जैसी कोमल हरियाली फैली हुई है। अर्थात गांव में दूर दूर तक हरी भरी फसलें लहलहा रही हैं।
2. सूर्य की किरणें कैसी प्रतीत होती है ?
उत्तर - हरे भरे फसलों पर फैली हरियाली और उस पर पड़ती सूर्य की किरणें चांदी की सफेद जाली जैसी लगती हैं।
3. हरी भरी धरती पर कौन झुका हुआ है ?
उत्तर - भरी धरती पर नीला आसमान झुका हुआ है।
4. ' तिनकों के हरे हरे तन पर , हिल हरित रूधिर है रहा झलक ' का काव्य सौंदर्य लिखें।
उत्तर - खेतों में हवा के वेग से हिलते हरे - हरे पत्तों में हरे रंग से मिश्रित लालिमा सुन्दर लग रही है। यहां कवि के सूक्ष्म प्रकृति के निरीक्षण का पता चलता है। हरे - हरे में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है। हरित रूधिर में विरोधाभास अलंकार है। क्योंकि रूधिर का रंग हरा नहीं, लाल होता है। मानवीकरण अलंकार भी है।
रोमांचित - सी लगती वसुधा
आई जौ - गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियां हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली - पीली,
लो, हरित धरा से झांक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
1. वसुधा रोमांचित कब लग रही है ?
उत्तर - वसुधा ( धरती ) लहलहाती फसलों से भरे - भरे खेतों को देखकर अत्यंत पुलकित लग रही है। पृथ्वी अपने सौंदर्य को देखकर रोमांचित हो रही है।
2. अरहर और सनई की फलियों को सोने की किकिंणियां क्यों कहा गया है ?
उत्तर - किंकिण का अर्थ है - करधनी। इसे स्त्रियां कमर में पहनती हैं । यह एक आभूषण है जिसमें छोटी-छोटी घंटियां रहतीं हैं। वह बजती है। अरहर और सनई की फलियां पक जाने के बाद पीले और सुनहरे रंग के हो जाते हैं और बजने भी लगते हैं। इसलिए कवि इन्हें सोने की किकिणियां कहा है।
3. वातावरण में तेलयुक्त गंध फैलने का क्या कारण है ?
उत्तर - सरसों के पौधे पर पीले - पीले फूल आ गये हैं। सरसों फल भी रही है। उसी सरसों की तेलयुक्त गंध सारे वातावरण में फैल गई है।
4. रंग - रंग की तितलियां फूलों पर उड़ती हुई कवि को कैसी लग रही है ?
उत्तर - रंग बिरंगी तितलियां तरह - तरह के रंगों वाली फूलों पर उड़ रही है। यह दृश्य देखकर कवि को लगता है कि फ़ूल स्वयं स्वयं ही उड़ उड़ कर इस डाली से उस डाली पर जा रहे हैं।
5. तितलियां कहां - कहां फिर रहीं हैं ?
उत्तर - तितलियां रंग बिरंगी फूलों पर फिर रही हैं।
6. क्या क्या महक उठे ?
उत्तर - कटहल महक उठे।
7. लाल - लाल चित्तियां किसमें पड़ गई ?
उत्तर - मीठे-मीठे अमरूदों में लाल - लाल चित्तियां पड गई।
8. बेरों को कैसा बताया गया है ?
उत्तर - जंगल में झरबेरी झूली है।
MCQ
1. लाल चित्तियां किस पर पड़ गयी हैं ?
क. मटर ख. अमरूद ग. बैंगन , घ. आम
उत्तर - अमरूद
2. किंकिणी का अर्थ है ?
क. घर ख.नाक ग.करघनी घ. ऐनक
उत्तर - ग. करघनी
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' यमराज की दिशा ' कविता कवि चंद्रकांत देवताले की लिखी प्रसिद्ध कविता है जिसमें कवि ने यह बताया है कि जीवन विरोधी शक्तियां आज हरेक दिशाओं में बिराजमान है। उन नाकारात्मक शक्तियों का मुकाबला एक जूट होकर करने की आवश्यकता है। कक्षा नौवीं के कोर्स में यह कविता दी गई है जिसके भावार्थ और प्रश्न उत्तर प्रत्येक परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। कविता मुक्त छंद में लिखी गई है, परंतु कविता की पंक्तियां लय युक्त है।
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अथवा सार
कवि चंद्रकांत देवताले जी कहते हैं कि उसके लिए यह कहना मुश्किल है कि उसकी मां की भेंट ईश्वर से हुई थी कि नहीं, परन्तु उसकी मां हमेशा यह जताती थी कि ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है। उनकी सलाह के अनुरूप ही वह दुख - दर्द के बीच राह निकाल लेती है थी। कवि की मां एक बार उन्हें बताई थी कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। उस ओर पैर करके सोने से यमराज नाराज हो जाते हैं।कवि ने मां से जब यमराज के घर का पता पूछा तब भी मां ने यही बताया था कि दक्षिण दिशा में यमराज का घर है। उसके बाद कवि चंद्रकांत देवताले कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोए।
इसके बाद कवि सुदूर दक्षिण दिशा की यात्रा की परंतु दक्षिण को लांघना संभव नहीं था, नहीं तो यमराज का घर देख आता। कवि का कहना है कि मां अपशकुन के रूप में जिस भय की बात कही वह अब केवल भय, हिंसा, विध्वंस के रूप में अब दक्षिण दिशा में ही नहीं, सब ओर फैला हुआ है। जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। कवि इन विरोधी शक्तियों का एक जूट होकर मुकाबला करने का मौन आह्वान करते हैं।
यमराज की दिशा कविता एवं भावार्थ
मां की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है
मां ने एक बार मुझसे कहा था -
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था-
तुम जहां भी हो वहां से हमेशा दक्षिण में
मां की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर - दूर तक गया
और मुझे हमेशा मां याद आई
दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुंच पाना
तो यमराज का घर देख लेता
पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आंखों सहित विराजते हैं
मां अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो मां जानती थी।
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कवि चंद्रकांत देवताले का जीवन परिचय
चंद्र कांत देवताले का जन्म 1936 ई में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के जौलखेड़ा नामक गांव में हुआ था। साठोत्तरी कविता के रचयिता में देवताले जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्होंने सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया था।
चंद्र कांत देवताले की प्रमुख रचनाएं हैं - हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बेंच, इतनी पत्थर रौशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।
चंद्र कांत देवताले को इनकी साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शासन का शिखर सम्मान, प्रमुख हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद विदेशी भाषाओं में भी हुआ है।
चंद्र कांत देवताले की कविताओं के मूल में गांव - कस्बे और मध्य वर्ग दिखाई देता है जिसमें उन्होंने उनकी विविधताओं और विडंबनाओं को सफलतापूर्वक चित्रित किया है। कवि अपनी बात सीधी और मारक क्षमता से प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है। उनके हृदय में व्यवस्था की कुरूपता के प्रति गुस्सा है तो वहीं मानवीयता के प्रति प्रेम भी है।
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1. कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर - मां ने कवि को बचपन में समझा दिया था कि दक्षिण दिशा में पैर करके सोना अपसकुन होता है। इस दिशा में मृत्यु के देवता यमराज का घर है। इसलिए वह जहां भी जाता उसे दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।
2. कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर - पृथ्वी का विस्तार गोलाकार और विस्तृत है । दक्षिण की दूर - दूर तक यात्रा करने पर भी कवि को दक्षिण का कोई छोर नहीं मिला। इसलिए कवि ने कहा कि दक्षिण को लांघ लेना संभव नहीं है।
3 . कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गयी है ?
उत्तर - कवि के अनुसार आज जीवन विरोधी शक्तियां चारों ओर फैली हुई है। सभी तरफ़ विध्वंस, हिंसा और लूट पाट मचा हुआ है। इसलिए आज प्रत्येक दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है।
4. कवि की मां ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग निर्देश देती है । आपकी मां भी समय समय पर आपको सीख देती होगी --
1. वह आपको क्या सीख देती है ?
उत्तर - हमारी मां भी समय समय पर हमें कुछ सीख देती है, जैसे किसी को सताओ नहीं, हमेशा सत्य बोलो।
2. क्या उसकी हर सीख आपको उचित लगती है?
उत्तर - मां की हर सीख उचित ही होती है कि। क्योंकि उसकी हर सीख में हमारी भलाई छिपी होती है।
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