आम के आम और गुठलियों के दाम मुहावरे का अर्थ , कहानी और वाक्य में प्रयोग, aam ke aam aur guthaliyo ke dam , muhaware ke arth, story , utility in sentence


 

आम के आम और गुठलियों के दाम मुहावरे का अर्थ , कहानी और वाक्य में प्रयोग, aam ke aam aur guthaliyo ke dam , muhaware ke arth, story , utility in sentence


प्यारे छात्रों, क्या आप सब जानते है कि मुहावरे किसे कहते हैं ? मुहावरे का शाब्दिक अर्थ नही होता, उन शब्दों का कोई अन्य अर्थ निकाला जाता है। अब देखिए न, 'आम के आम और गुठलियों के दाम ' मुहावरे का क्या अर्थ बनता है। मुहावरे के बनने में कोई न कोई कहानी भी जरूर रहती है। यहां मुहावरे के अर्थ, कहानी और इसका वाक्य में प्रयोग बताया गया है।


" आम के आम और गुठलियों के दाम " मुहावरे का अर्थ है - दोहरा लाभ। 


एक बार एक किसान अपने बंजर भूमि पर कुछ आम का पौधा लगाया। कुछ ही वर्षों में वह बंजर भूमि आम के भरे वृक्षों से सुशोभित हो गया। बसंत ऋतु आया और उसमें मंज़र आ गये। समय आने पर उसमें बड़े स्वादिष्ट और रसीले फल लगे। वह किसान बहुत खुश हुआ। उसने अपने परिवार , सगे संबंधियों को भी खूब आम खिलाए। वहां गुठलियों के ढेर लग गये। परन्तु वह कितना खाते। अंत में बचे आम बाजार में पैसों से बेच आए। गुठलियों सहित आम भी बिक गए और खूब पैसे भी मिले। वहीं यह मुहावरा बन गया , आम के आम और गुठलियों के दाम।


आम के आम और गुठलियों के दाम

आम के आम और गुठलियों के दाम मुहावरे का वाक्य में प्रयोग


1. मोहन ने गाय खरीद कर बहुत बुद्धिमानी का काम किया है। खूब दूध भी पिया और गोबर के उपले भी बेच दिए। इसे कहते हैं, आम के आम और गुठलियों के दाम।


2. रामू बड़ा चतुर गाड़ीवान है। इधर से अपने फसलों को गाड़ी में लादकर शहर बेच देता है, और उधर से भाड़े पर खाद की बोरियां   लाता है। यह हुई न आम के आम और गुठलियों के दाम वाली बात।


आग बबूला होना मुहावरे

आग बबूला होना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग


आग बबूला होना मुहावरे का अर्थ है बहुत गुस्से में होना।


वाक्य - पहलवान अपनी शिकायत सुनकर आग बबूला हो रहा था।

गुंडे को खाली हाथ आता देख सरदार आग बबूला हो गया।

मत करो ऐसा काम जिससे मालिक आग बबूला हो जाएं।


कमर कसना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग


कमर कसना मुहावरे का अर्थ है पूरी तरह  तैयार रहना


कमर कसना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग करें 

मार्च का महीना आ गया है, वार्षिक परीक्षा के लिए कमर कस लो।

जो भी हो , इस संकट से उबरने के लिए तो कमर कसना ही पड़ेगा।

जो स्थिति बन रही है उससे लगता है कि युद्ध अवश्य संभावी है, सैनिकों को कमर कसने की जरूरत है।

स्कूल खुल गये हैं, छात्रावास जाने के लिए कमर कस लो ,भाई !



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डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।




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