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भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला, भारतीय वास्तुकला क्या है ? भारतीय वास्तुकला की विशेषताएं, सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख नगर - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, मौर्य काल में वास्तुकला और मूर्ति कला, बौद्ध धर्म में स्तूप, सांची का स्तूप, सारनाथ के स्तंभ, गुप्त काल भारतीय कला का स्वर्ण युग, देवगढ़ का दशावतार मंदिर, लोहे का लाट, अजंता एलोरा और बाघ की गुफाएं, कोणार्क का सूर्य मंदिर और खजुराहो का मंदिर, दक्षिण भारत के मंदिरों में वास्तुकला और मूर्ति कला, बृहदेश्वर मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, बुलंद दरवाजा, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर और आगरा का ताजमहल वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण।
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भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला का इतिहास बहुत पुराना है। भारतीय कला की कहानी की शुरुआत लगभग पांच हजार साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख नगर थे - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो। यहां वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने उपलब्ध हैं। अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि वास्तुकला कहते किसे हैं। वास्तु कला का मतलब है - भवन निर्माण कला। इसी के साथ मूर्ति निर्माण कला के नमूने यहां मिलते हैं। तो आइए, इस लेख में प्राचीन वास्तु कला, और मूर्ति कला के साथ-साथ मध्यकालीन और आधुनिक कला की भी चर्चा करते हैं।
मोहन जो दड़ो और हड़प्पा में पक्की ईंटों के दो मंजिला भवन मिले हैं। यह प्रमाणित करता है कि भारतीय पांच हजार साल पहले ही भवन निर्माण कला में निपुण थे। इसके साथ ही ये लोग मिट्टी, पत्थर और धातु की मूर्तियां बनाने में माहिर थे।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिली तीन मूर्तियां विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें से एक मूर्ति धातु की बनी हुई है जिसमें एक स्त्री को कमर पर हाथ रखे नृत्य की मुद्रा में दर्शाया गया है। इसका यह अर्थ कि उस काल में नृत्य-संगीत कला भी विकसित रही है। दूसरी मूर्ति में योगासन की स्थिति में तीन मुख वाले योगी को दर्शाया गया है जिसके पास हाथी, सिंह और हिरण तथा भैंसें हैं। तीसरी मूर्ति एक दाढ़ी वाले व्यक्ति की है जिसमें बारीक लकीरें द्वारा दाढ़ी के बालों को बड़ी कुशलता से उभारा गया है।
वास्तु कला और मूर्ति कला का अगला चरण मौर्य काल में देखने को मिलते हैं। यूनानी राजदूत मैगस्तनीज चंद्रगुप्त मौर्य के महल का विस्तृत वर्णन किया है। इस महल के खंभों पर सुनहरे बेलें बनी हुई हैं और तरह तरह के पक्षियों के चित्र अंकित है।
मौर्य काल में बौद्ध धर्म का बहुत प्रभाव रहा है। अतः इस काल खंड में स्तूपों का खूब निर्माण हुआ है। भोपाल से तीस किलोमीटर दूर ' सांची का स्तूप ' काभी चर्चित है। यह आधी कटी नारंगी की तरह गोल है।
सारनाथ का स्तंभ ( लाट ) मौर्य काल का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें ऊपर पीठ से पीठ सटाए चार सिंह बैठे हैं। परन्तु तीन ही दिखाई देते हैं। नीचे बीच में चक्र है और उसके इधर उधर हंस, दौड़ते घोड़े, हाथी और सांड हैं। यह चक्र हमारे राष्ट्रीय ध्वज में अंकित है। चारों सिंह की आकृति हमारे देश के राजकीय कागजों की मुहर है।
गुप्त काल को भारतीय कला का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग में
साहित्य, मूर्ति कला, वास्तुकला, चित्रकला आदि की अद्भुत उन्नति हुई। उस युग में शिव और विष्णु के अनुपम और कलात्मक मंदिर बने। गुप्त काल का सबसे सुन्दर मंदिर ललित पुर जिले में देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। इसमें बारह मीटर ऊंचा एक शिखर है, चार मंडप है, तथा खंभों पर बहुत सुंदर मूर्तियां बनीं हैं।
दिल्ली में कुतुबमीनार है।इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। यहां बनी ' लोहे की लाट' धातु विज्ञान का अद्भुत नमूना है।
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म चलाया। उनके शिष्यों ने पूजा अर्चना करने के लिए एकान्त स्थान खोजें। उन्होंने पहाड़ों और गुफाओं को कटवाकर मंदिर बनवाया। इन्हीं मंदिरों में 'अजंता ' और मध्य प्रदेश में 'बाघ 'के गुफा - मंदिर का नाम आता है।
महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास लगभग तीस गुफाओं में वास्तु कला, मूर्ति कला और चित्रकला के अनुपम उदाहरण मिलते हैं। इन गुफाओं की दीवारों पर चित्र बनाने का सिलसिला एक हजार वर्ष तक चलता रहा। अजंता एलोरा की कला भावों की अभिव्यक्ति के लिए बेजोड़ है।
मध्य काल के मंदिरों में कोनार्क का सूर्य मंदिर और खजुराहो का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। कोनार्क के सूर्य मंदिर में सूर्य के साथ घोड़े बने हुए हैं। सभी सजीव जैसे लगते हैं। खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर चंदेल राजाओं द्वारा लगभग एक हजार वर्ष पूर्व बनवाए गए थे। इन मंदिरों की संख्या 85 थी लेकिन वर्तमान में अब केवल 22 मंदिर बचे हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर कलात्मक प्रतिमाएं देखते ही बनती है। विश्व में कला की इतनी उत्कृष्ट और बेजोड़ नमूना शायद ही कहीं देखने को मिलते हों।
दक्षिण भारत के मंदिरों में भी उच्च कोटि की वास्तुकला और मूर्ति कला के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत में तंजावुर, चिदम्बरम, मदुरै, रामेश्वरम आदि स्थानों पर सुन्दर कलाकृतियों की मंदिरों की भरमार है।
तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसका शिखर दो सौ फुट ऊंचा है। जिस पत्थर पर स्वर्ण कलश है उसका वजन लगभग 900 क्विंटल है।
चिदंबरम में नटराज की मूर्ति देखते ही बनती है। तांडव नृत्य करते भगवान शिव की चतुर्भुज मूर्ति के एक हाथ में डमरू, दूसरे हाथ में अंधकार और बुराई का नाश करने वाली ज्वाला है। मदुरै का मीनाक्षी मंदिर की सुंदरता और कलाकारी अद्वितीय है।
भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के बाद वास्तुकला के विकास में मुग़ल बादशाह का भी महत्व नकारा नहीं जा सकता है। फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा संसार का सबसे ऊंचा दरवाजा माना जाता है। मुगल काल वास्तुकला का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में बना ताजमहल वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर भी वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है। इसके अलावा अनेक गिरजाघर और बौद्ध तथा जैन तीर्थ स्थल के मंदिर श्रेष्ठ वास्तुकला के नमूने हैं।
प्रश्न उत्तर
1. भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला की परंपरा अत्यंत प्राचीन है-- कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
भारतीय वास्तुकला और मूर्ति कला का इतिहास बहुत पुराना है। भारतीय कला की कहानी की शुरुआत लगभग पांच हजार साल पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख नगर थे - हड़प्पा और मोहनजोदड़ो। यहां वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूने उपलब्ध हैं।
2. पाठ के आरंभ में वर्णित तीनों मूर्तियों की विशेषताएं बतलाइए।
उत्तर -- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिली तीन मूर्तियां विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें से एक मूर्ति धातु की बनी हुई है जिसमें एक स्त्री को कमर पर हाथ रखे नृत्य की मुद्रा में दर्शाया गया है। इसका यह अर्थ कि उस काल में नृत्य-संगीत कला भी विकसित रही है। दूसरी मूर्ति में योगासन की स्थिति में तीन मुख वाले योगी को दर्शाया गया है जिसके पास हाथी, सिंह और हिरण तथा भैंसें हैं। तीसरी मूर्ति एक दाढ़ी वाले व्यक्ति की है जिसमें बारीक लकीरें द्वारा दाढ़ी के बालों को बड़ी कुशलता से उभारा गया है।
3. बौद्ध धर्म के प्रभाव स्वरूप वास्तुकला में किनका निर्माण हुआ ?
उत्तर - बौद्ध धर्म के लोग पूजा अर्चना के लिए एकान्त की खोज करते थे। उन्होंने पहाड़ों और गुफाओं को कटवाकर मंदिर बनवाया। अजंता और एलोरा गुफाएं तथा बाघ मंदिर जैसी वास्तुकला और मूर्ति कला इन्हीं की देन है।
4. सारनाथ के स्तंभ का वर्णन करें।
उत्तर --
सारनाथ का स्तंभ ( लाट ) मौर्य काल का उत्कृष्ट नमूना है। इसमें ऊपर पीठ से पीठ सटाए चार सिंह बैठे हैं। परन्तु तीन ही दिखाई देते हैं। नीचे बीच में चक्र है और उसके इधर उधर हंस, दौड़ते घोड़े, हाथी और सांड हैं। यह चक्र हमारे राष्ट्रीय ध्वज में अंकित है। चारों सिंह की आकृति हमारे देश के राजकीय कागजों की मुहर है।
5. गुप्त काल को भारतीय कला का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ?
उत्तर - गुप्त काल को भारतीय कला का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग में साहित्य, मूर्ति कला, वास्तुकला, चित्रकला आदि की अद्भुत उन्नति हुई। उस युग में शिव और विष्णु के अनुपम और कलात्मक मंदिर बने। गुप्त काल का सबसे सुन्दर मंदिर ललित पुर जिले में देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। इसमें बारह मीटर ऊंचा एक शिखर है, चार मंडप है, तथा खंभों पर बहुत सुंदर मूर्तियां बनीं हैं।
6. कोणार्क मंदिर क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर - कोणार्क उड़ीसा राज्य में स्थित है। यहां का सूर्य मंदिर पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 13 सदी में हुआ था। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यहां बने सात घोड़े संजीव लगते हैं। इसकी वास्तुकला और मूर्ति कला विश्व विख्यात है।
7. वृहदेश्वर मंदिर की विशेषताएं बतलाइए ।
उत्तर -- तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसका शिखर दो सौ फुट ऊंचा है। जिस पत्थर पर स्वर्ण कलश है उसका वजन लगभग 900 क्विंटल है।
8. मुगल बादशाहों ने भारत की वास्तुकला में क्या योगदान दिया ?
उत्तर - भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के बाद वास्तुकला के विकास में मुग़ल बादशाह का भी महत्व नकारा नहीं जा सकता है। फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा संसार का सबसे ऊंचा दरवाजा माना जाता है। मुगल काल वास्तुकला का स्वर्ण युग माना जाता है। इस काल में बना ताजमहल वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है।
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