हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की कथा, Makardhwaj, son of Hanuman story


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मकरध्वज की कथा

हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज की कथा, 

 (story of Makardhwaj, son of Hanuman Ji ) रामायण की कथा

हनुमानजी श्रीराम के अनन्य सेवक और भक्त थे। उनका संपूर्ण जीवन अपने प्रभु श्रीराम को समर्पित था। वे बाल ब्रह्मचारी थे। फिर उनके पुत्र की कथा, यह हमारे लिए आश्चर्य की बात हो सकती है। परंतु बाल्मीकि रामायण में इस कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। आइए, इस लेख में हम हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज का जन्म और उनकी कथा विस्तार से पढ़ते हैं। साथ ही यह भी जानकारी प्राप्त करते हैं कि हनुमानजी की भेंट अपने पुत्र मकरध्वज से कब और कैसे हुई।




जैसा कि हम सब जानते हैं कि अयोध्या के राजकुमार श्रीराम अपनी पत्नी और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। वे चित्रकूट नामक स्थान में कुटिया बनाकर रहते थे। वहीं लंका का राजा रावण धोखे से उनकी पत्नी सीता जी का हरण कर लिया था। श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता जी की खोज में वन वन भटक रहे थे , तभी उनकी भेंट पवनपुत्र हनुमानजी से होती है। हनुमानजी श्रीराम की भेंट सुग्रीव से करवाते हैं। और फिर दोनों एक-दूसरे की सहायता करने का वचन देते हैं। 
 
हनुमानजी सीता माता का पता लगाने लंका गये। लंका समुद्र लांघ कर जाना था । यह काम सबके वश का नहीं था। यह काम महाबली हनुमान जी ही कर सकते थे। जामवंत ने उन्हें उनके बल और प्रताप की याद दिलाई। तब वे सभी का अभिवादन करते हुए लंका की ओर उड़ चले।

रावण माता सीता को अशोक वाटिका में रखा था। हनुमानजी वहां पहुंच कर माता सीता से भेंट की और अपना परिचय दिया कि मैं श्रीराम का दूत हनुमानजी हूं। फिर श्रीराम का संदेश भी उन्हें सुनाया। सारी बातें होने के बाद हनुमानजी लंका के पुष्प वाटिका में फले फलों को देखकर ललचा गये। भूख तो लगी ही थी, इसलिए उन्होंने सीता माता से फल खाने की आज्ञा मांगी। तब सीता जी ने कहा , ना बेटा ना, इन फलों की रखवाली बड़े बड़े बलवान दानव करते हैं। वे तुम्हें मार डालेंगे। तब हनुमानजी ने अपना विशाल आकृति दिखा कर सीता माता को आश्वस्त कर दिया कि ये तुच्छ दानव उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।

सीता माता की अनुमति लेकर हनुमान जी पुष्प वाटिका में लगे फल खाने। फल खाते और पेड़ भी उखाड़ते। रोकने वाले रखवालों को भी माड़ते। रावण का बेटा अक्षय कुमार आया। हनुमानजी ने उसे मार डाला। अब मेघनाद आया। वह बड़ा वीर और पराक्रमी था। उसने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र चलाया। हनुमानजी ने ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए बंध जाना स्वीकार कर लिया। इस तरह हनुमानजी लंका के राजदरबार में पहुंच गए। रावण ने अपने मंत्रिमंडल से सलाह लेकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने की घोषणा कर दिया। 

राक्षसों ने खूब जतन किया। हनुमानजी ने भी खूब कौतूहल दिखाया। अंत में हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी गई। हनुमानजी ने छोटा रूप बनाकर बंधन से मुक्त हो गये। और उड़ उड़ कर सारी लंका को जला दिया।   लंका धू धू कर जल गई। अब हनुमानजी का काम पूरा हुआ। अग्नि का ताप भी उन्हें लग रहा था। पूंछ में भी आग लगी हुई थी। इसलिए वे पूंछ की आग बुझाने समुद्र के गये। उसी समय पसीने की एक बूंद पानी में गिर गया जिसे एक मछली निगल गई। पसीने के महाप्रभाव से वह मछली गर्भवती हो गई।

समुद्र के उस क्षेत्र में रावण का भाई अहिरावण , पाताल लोक का राजा था।  पाताल का एक मछुआरा उस मछली को पकड़ कर पाताल ले गया। जब उसने मछली को काटा तो देखा कि उस मछली के पेट में हनुमानजी की आकृति का एक बालक है। उसने उस बालक को वहां का राजा अहिरावण को सौंप दिया। अहिरावण ने उस बालक हनुमानजी का नाम मकरध्वज रखा और पालण पोषण किया। वह बालक बड़ा बलवान था। अहिरावण ने बड़े होने पर उसे पाताल लोक का द्वार पाल नियुक्त कर दिया।

अब आप के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि हनुमानजी को अपने पुत्र मकरध्वज से भेंट हुई कि नहीं। हनुमानजी को अपने पुत्र मकरध्वज से भेंट हुई। पाताल लोक में।  रावण - राम युद्ध के दौरान अहिरावण राम-लक्ष्मण को लेकर पाताल लोक चला गया था। जब हनुमान जी राम - लक्ष्मण को ढूंढने पाताल लोक गये तो उन्हें पाताल के द्वार पाल मकरध्वज के साथ युद्ध करना पड़ा था। लंबे संघर्ष के बाद मकरध्वज को हनुमान जी ने पराजित किया और पाताल लोक में पहुंचे। उन्होंने मकरध्वज से उनके पिता का नाम पूछा। तो मकरध्वज ने हनुमानजी को ही अपना पिता बतलाया। वहीं उन्हें मकरध्वज की कथा ज्ञात हुई। 

लंका विजय के पश्चात् श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बना दिया।



डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।



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