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मेघ आए कविता

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 मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के , मेघ का अर्थ, मेघ का काम, मेघ कैसे आते हैं? मेघ कहां आते हैं ? मेघ कब आते हैं ? मेघ का रंग कैसा होता है ? मेघ आए कविता, मेघ आए कविता के कवि का नाम, कविता में मेघ का चित्रण किस रूप में किया गया है ? मेघ आए कविता में कौन-कौन अलंकार है ? मेघ कैसे आए हैं । मेघ आए कविता में किसका वर्णन किया गया है? मेघ कहां आए हुए हैं ? मेघ आए कविता में मेघ का किस रूप में वर्णन किया गया है ? मेघ आए कविता में पेड़ किसका प्रतीक है ? मेघ आए कविता  में पीपल की तुलना किससे की गई है ?  बरस बाद सुधि लीनि का अर्थ, मेघ किसका प्रतीक है ? नदी, धूल, पेड़, ताल किसका प्रतीक है? पेड़ किस प्रकार अपनी खुशी व्यक्त कर रहे हैं। सबसे बुजुर्ग व्यक्ति का प्रतीक कौन है ? पेड़ किस प्रकार अपनी खुशी प्रकट कर रहे हैं ? कवि बन ठन सवरकर आने की किसकी बात कर रहे हैं ?



मेघ आए कविता कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक उत्कृष्ट रचना है। इस कविता में मेघों की तुलना गांव में आए अतिथि ( दामाद ) से की गई है। इस तरह मेघों का मानवीकरण किया गया है। आकाश में बादल खूब बन - ठन कर आएं हैं, इसका प्रकृति पर क्या -क्या प्रभाव दीख रहा है , इसी बात का वर्णन यहां कवि बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है। यह कविता नौवीं कक्षा में पढ़ाई जाती है, इसलिए उन्हें ध्यान में रखकर कविता, कविता का मूल भाव, भावार्थ, शब्दार्थ और प्रश्न उत्तर दिए गए हैं जिससे छात्र छात्राएं लाभान्वित होंगे।


           मेघ आए कविता

       Megh aaye poem


मेघ आए बड़े बन - ठन के संवर के
आगे - आगे नाचती - गाती बयार चली,
दरवाजे - खिड़कियां खुलने लगी गली - गली,
पाहुन ज्यों आए हों गांव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन - ठन के संवर के।


शब्दार्थ

मेघ - बादल, बयार - हवा, पाहुन - मेहमान।

भावार्थ एवं व्याख्या


आकाश में बादल बड़े सज धजकर आए हैं। उनके आने की खुशी में आगे आगे ठंडी हवाएं चल रही हैं। बादल छाने से हवा तेज चलने लगी है। मौसम का आनंद लेने के लिए लोग दरवाजा खिड़कियां खोल कर झांकने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि गांव में दामाद जी को आता देख कर लोग धीरे धीरे दरवाजे खिड़कियां खोल कर झांकने लगते हैं। शहरी मेहमान का जैसे स्वागत गांव में होता है, वैसा ही स्वागत मेघों का प्रकृति में हो रहा है।

प्रश्न - कवि ने मेघों के आगमन का चित्रण किस रूप में किया है ?

उत्तर - कवि ने आकाश में आएं मेघों का चित्रण गांव में आए शहरी मेहमान के रूप में किया है। जिस प्रकार गांव में शहरी दामाद की प्रतीक्षा और स्वागत किया जाता है वैसे ही मेघों का स्वागत हो रहा है।

प्रश्न - गली गली में दरवाजे खिड़कियां क्यों खुलने लगी ?

उत्तर - गली गली में दरवाजे खिड़कियां मेरी रूपी मेहमान की एक झलक पाने के लिए खुलने लगी। एक बात और है कि मेघों के आने से हवा तेज और ठंडी चलने लगी जिसका आनंद लेने के लिए लोग दरवाजे खिड़कियां खोलने लगे।

 प्रश्न -- मेघ और पाहुन में क्या समानता बताई गई है ?

 उत्तर - मेघ आकाश में आते हैं और पाहुन गांव में आते हैं ? शहरी मेहमान खूब सज धजकर गांव आते हैं और काले , चितकबरे, सफेद बादल भी खूब सजे धजे लगते हैं। दोनों ग्रामीणों के आकर्षण के केन्द्र होते हैं। यहीं दोनों में समानता है।

प्रश्न - निम्नलिखित पंक्तियों का अलंकार बताइए -- " मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के "

उत्तर - मानवीकरण अलंकार, बड़े बन ठन के  में अनुप्रास अलंकार है।

Megh aaye



पेड़ झुक - झांकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली , धूल भागी घाघरा उठाए,
बांकी चितवन उठा , नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
मेघ आए बड़े बन - ठन के, संवर के।


भावार्थ एवं व्याख्या


बादलों के आने का समाचार सुनकर पेड़ कभी झुक कर तो कभी गर्दन उचकाकर झांक रहे हैं। हवा तेज चलकर आंधी का रूप ले लिया है।
जिस प्रकार कोई मेहमान आते देख कर ग्रामीण स्त्री घाघरा उठा कर, संभालकर घर की भागने लगती है, उसी प्रकार धूल उड़ती है। ग्राम बंधू की तरह नदी तिरछी नजर से देखने लगी है और ठिठक कर अपना घूंघट अपने मुंह पर खिसका ली है। गांव की स्त्रियों में मेहमान को देखने की ललक होती है, परन्तु परदे में।

प्रश्न - पेड़ झुक झुक लगे गरदन उचकाए में कवि ने क्या कल्पना की है ?

उत्तर - इसमें कवि ने कल्पना की है कि आंधी की तीव्र गति के कारण पेड़ झुक कर झांकते प्रतीत होते हैं। जैसे मेघ रूपी मेहमान का झुककर स्वागत कर रहे हैं।

प्रश्न - आंधी चली , धूल भागी घाघरा उठाए, से कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर - इससे कवि का अभिप्राय है कि आंधी चलने से धूल का फैलाव बढ़ गया है और तब लगता है कि जैसे कोई स्त्री घाघरा उठाए भागी जा रही है।

प्रश्न - आंधी का धूल और नदी पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर - आंधी आने से धूल उड़ कर चारों ओर जा जाती है और हवा के वेग के साथ इधर उधर भागती है। नदी की धारा तेज लहरों के कारण ठिठकी सी लगती है।


बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
' बरस बाद सुधि लीन्हीं' ---
बोली अकुलाइ लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।

शब्दार्थ
जुहार करना - आदर के साथ झुककर सलाम करना, सुधि - याद, अकुलाइ - बेचैन, ताल - तलैया, हरसाया - प्रसन्नता।

भावार्थ एवं व्याख्या

बूढ़े पीपल ने बादलों का स्वागत आदर के साथ झुककर उसी प्रकार किया जिस प्रकार मेहमान के आने पर गांव का बुजुर्ग व्यक्ति उसे झुक कर स्वागत करता है। किवार की ओट से लता बादलों को ऐसे देखती है जैसे कोई विरही नायिका अपने किवाड़ की ओट से प्रियतम को उलाहना देती है। इतने दिनों बाद हमारी याद आई है।एक वर्ष कहां रहे ?

प्रश्न --  ' बरस बाद सुधि लीन्हीं'' पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - बादलों को देखकर लता कहती है कि एक वर्ष बीत जाने पर तुम्हें हमारी याद आई है। इसी प्रकार वियोग में पीड़ित युवती अपने पति को उपालंभ देती है।

प्रश्न -लता ने क्या उपालंभ दिया ?

उत्तर - लता ने उपालंभ देते हुए कहा, इतने दिनों तक कहां रहे। अब हमारी याद आई ।

प्रश्न - तालाब ने अपनी प्रसन्नता किस प्रकार प्रकट की ?

उत्तर - तालाब परात में पानी भर कर लाया, मेहमान के पैर धोने के लिए।



क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,

' क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की,'
बांध टूटा झर - झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के।


शब्दार्थ 

दामिनी - बिजली, अश्रु - आंसू

भावार्थ एवं व्याख्या

कवि का कहना है कि क्षितिज रूपी भवन पर बादल गहरा गये हैं। बादलों के बीच में बिजली चमकने लगी है। इसकी आभा से तन मन भी चमकने लगा है। अब बादल नहीं बरसेगा, लोगों का यह भ्रम टूट गया है। इसी प्रकार प्रिया का भी भ्रम टूट गया है कि उसका प्रियतम उससे मिलने नहीं आएगा। बादलों के भ्रम टूट गया और झर झर कर बरसने लगा। जैसे मिलन की खुशी से झर झर आंसू बहने लगे।

प्रश्न - कौन सी गांठ खुल गई ?

उत्तर - अब तक लोगों को विश्वास था कि मेघ आएंगे या नहीं। या आएंगे तो बरसेंगे कि नहीं, यह भ्रम टूट गया। मेघ रूपी मेहमान के आने से यह भ्रम टूट गया।

प्रश्न -  प्रिय और प्रियतम किस प्रकार मिले ?

प्रिय और प्रियतम पूरे एक साल बाद मिले तो दोनों के सब्र का बांध टूट गया।

मेघ आए कविता का सारांश


आज आकाश में बादल उसी प्रकार सज धजकर कर आए हैं जिस प्रकार से  सज धज कर मेहमान अर्थात दामाद जी आते हैं। जिस प्रकार मेहमान के आने पर घरों के दरवाजे खिड़कियां खुलने लगती है, उसी प्रकार 
बादलों के आने पर ठंडी हवाओं का आनंद लेने के लिए लोग दरवाजा खिड़कियां खोल देते हैं। मेघ आने पर हवाएं तेज चलती है जिससे पेड़ झुक जाते हैं। आंधी रूपी स्त्री घाघरा उठाए भागी जा रही है। ग्राम - वधू के समान नदी बांकी चितवन से देखती है और फिर शरमा कर अपना घूंघट सरका लेती है। बूढ़ा पीपल आगे बढ़ कर मेघों का स्वागत करता हूं। वह कहता है कि पूरे वर्ष बाद हमारी सुधि ली है। लता भी अपने मेहमान का स्वागत करती है। तालाब खुश है। अटारी पर बिजली चमकने लगती है। मानो नायक - नायिका का मिलन हो रहा है। नायिका का भ्रम टूट जाता है और मिलन की घड़ी में आंखों से झर झर आंसू ढरकने लगते हैं।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जीवन परिचय

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि हैं। नयी कविता के क्षेत्र में इनका विशेष योगदान रहा है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 1927 ई में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की है। दिनमान पत्रिका के उपसंपादन और पराग पत्रिका के संपादन का काम इन्होंने बड़ी कुशलता से की है। 1983 में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का स्वर्गवास हो गया।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रमुख रचनाएं - काठ की   घंटियां, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएं, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूटियों पर टंगे लोग आदि।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा आम जनता की भाषा है।

प्रश्न उत्तर


1. बादलों के आने पर प्रकृति में जो प्रभाव आता है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - बादलों के आने पर प्रकृति में निम्नलिखित गतिशील क्रियाएं होती है -
नाचती गाती हवा का तेज चलना

दरवाजे खिड़कियां खुलना

वृक्षों का झुकना और सीधे होना।

आधी चलना और धूल उड़ना।

पीपल का डोलना, तालाब में लहरें उठना 



2. धूल, पेड़, नदी, लता, ताल किसके प्रतीक है ?

उत्तर - धूल-  गांव की किशोरी लड़की जो मेहमान के आने पर शर्माकर घाघरा उठाए भागी जा रही है।

पेड़ - गांव के पुरूष।

नदी -- गांव की विवाहित महिला।

लता - नवविवाहिता, जिसका पति शहर से गांव आया है।

ताल -- मेहमान का स्वागत करने वाले। नवविवाहिता का भाई।

3. लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?

उत्तर - लता वर्ष भर अपने पति से दूर रहने के कारण वियोग से व्याकुल थी। उसने किवाड़ की ओट से बादल रूपी मेहमान को देखा। लम्बे वियोग के बाद प्रिय को देखने की उत्सुकता स्वाभाविक है। स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वह सामने से न आकर, किवाड़ की ओट से प्रियतम को देखती है।

4. ' क्षमा करो अब गांठ खुल गई भरम की ' का भाव स्पष्ट करें।

उत्तर - विरहिनी प्रिया को भ्रम था कि कि उसके पति ने एक वर्ष से उसकी सुधी नहीं ली है। कहीं वह उसे भूल तो नहीं गया है। लेकिन साल भर बाद जब वह शहर से गांव पहुंच गया है तब उसका यह भ्रम टूट गया। 



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