पुनर्मुषिकोभव कहानी, पंचतंत्र की कथा, फिर चुहिया की चुहिया, punarmushiko bhaw, phir chuhiya ki chuhiya, panchtantra story
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प्राचीन कथा साहित्य में पंचतंत्र की कहानियों का विशेष महत्व है। पुनर्मुषिकोभव पंचतंत्र की प्रमुख कहानी है जो विभिन्न कक्षाओं में पढ़ाई जाती है। इस कहानी में एक सिद्ध योगी साधू और चुहिया से लड़की बनी युवती की कहानी है जिसमें फिर से लड़की को चुहिया बनना पड़ता है। इस तरह इस कहानी का शीर्षक पुनर्मुषको भव अथवा फिर चुहिया की चुहिया दिया गया है।
बहुत पहले समय की बात है गंगा नदी के तट पर कई साधु आश्रम में रहते थे। उनके गुरु बहुत विद्वान और सिद्ध पुरुष थे । एक दिन की बात है। गुरुजी गंगा में स्नान कर नदी तट पर प्रार्थना कर रहे थे । तभी आकाश में उड़ते हुए बाज के पंजों से छूटकर एक छोटी सी चुहिया उनके हाथों में आ गिरी । वह चुहिया भूरे रंग की लंबी मूछों वाली और चमकीली आंखों वाली थी जो देखने में बहुत सुंदर लग रही थी। तपस्वी को चुहिया बहुत अच्छी लगी उन्होंने अपने मंत्र बल से चुहिया को एक सुंदर बालिका बना दिया ।
उस कन्या को वह अपने घर ले आए और पत्नी से बोले, लो यह हमारी बेटी है। प्यार से इसका पालन - पोषण करो। छोटी बच्ची को पाकर तपस्वी की पत्नी बहुत प्रसन्न हुई। उसने कहा , मैं इस कन्या को राजकुमारी की तरह पालूंगी । धीरे धीरे समय बीतता गया । कई वर्षों के बाद वह बच्ची बड़ी हो गई। वह देखने में बहुत सुंदर थी। तपस्वी और उनकी पत्नी ने सोचा अब बेटी का ब्याह कर देना चाहिए ।
तपस्वी ने कहा , हमारी बेटी का वर संसार का सबसे बड़ा आदमी होना चाहिए। उन्होंने आकाश में देखा कि सूर्य अपने प्रकाश से संपूर्ण जगत को प्रकाशित कर रहा है। उन्हें लगा की इस संसार में सूर्य सबसे बलवान है और यही हमारी लड़की के लिए सबसे अच्छा वर रहेगा। उनकी पत्नी को भी यह बात अच्छी लगी।
तपस्वी ने अपनी सिद्ध शक्तियों से सूरज को बुलाया सूरज पृथ्वी पर उतर आए और उन्होंने पूछा , हे तपस्वी ! आपने मुझे यहां क्यों बुलाया ? तपस्वी ने कहा, मैं तुमसे अपनी बेटी का विवाह करना चाहता हूं । मेरी बेटी सुंदर और गुणवान है और तुम्हारी वधू बनने की योग्य है। उस समय तपस्वी की बेटी पिता के पास ही खड़ी थी। वह सूरज के उत्तर देने से पहले ही नाक भौवें सिकोर कर बोली, मैं इन से विवाह नहीं करूंगी। इनके शरीर में तो इतनी गर्मी है कि मैं जलकर भस्म हो जाऊंगी। मुझे इनसे भी अच्छा वर चाहिए।
यह सुनकर तपस्वी मन ही मन बहुत दुखी हुए । फिर उन्होंने सूर्य से पूछा, क्या इस संसार में आप से भी बढ़कर कोई बलवान है? सूर्य ने कहा, हां है। मुझसे बलवान बादल है । जब वह मेरे सामने आ जाता है तो मेरा चमकना बंद हो जाता है। इसके बाद तपस्वी ने बादल को बुलाया और कुछ कहते कि उनके कहने से पहले ही लड़की बोल पड़ी, नहीं - नहीं , मैं इस काले डरावने बादल से विवाह नहीं करूंगी। मुझे इनसे भी अच्छा वर चाहिए।
तपस्वी ने बादल से कहा , क्या इस संसार में आप से भी बढ़कर कोई है? बादल ने कहा, हां है । पवन मुझसे बड़ा और ताकतवर है। वह जब चाहे जहां चाहे मुझे उड़ा कर ले जाता है। मैं उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता । इस तरह तपस्वी ने पवन को बुलाया। बुलाते ही पवन नीचे उतर गए और तपस्वी के पास आ गए। पवन ने पूछा, हे तपस्वी आपने मुझे क्यों बुलाया ?
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तपस्वी ने कहा मैं अपनी बेटी का विवाह तुमसे करना चाहता हूं। यह सुनते ही लड़की जोर-जोर से चिल्ला कर बोली, नहीं - नहीं मैं इस चंचल पवन से शादी नहीं करूंगी। यह तो पल भर भी शांत नहीं बैठता । यह सुनकर तपस्वी बहुत उदास हुए और पवन से पूछा, क्या इस संसार में आप से भी बढ़कर कोई है ््? पवन ने कहा, हां है। पर्वत मुझसे बड़ा है और बहुत बलवान है । वह इतना ऊंचा और ताकतवर है कि मैं ना तो उसे हिला सकता हूं और ना उसके पास जा सकता हूं ।
यह सुनकर तपस्वी ने पर्वत को बुलाया पर्वत भी उसी समय वहां आ गए। उसे तपस्वी ने पूछा , क्या आप मेरी लड़की से विवाह करेंगे? जब तक पर्वत कुछ कहते लड़की ने पैर पटक कर कहा, नहीं पिताजी नहीं। यह कितना बड़ा और रुखा सुखा तथा डरावना है । मैं इसके साथ शादी नहीं कर सकती। मुझे इससे बढ़कर ज्यादा अच्छा पति चाहिए ।
तपस्वी ने पर्वत से पूछा, इस संसार में आप से भी बढ़कर कोई है? पर्वत ने कहा, हां है । मुझसे ताकतवर चूहा है । यह सच है कि मैं बड़ा मजबूत और बलवान हूं, लेकिन चूहा छोटा होने पर भी मुझे खोदकर बिल बना लेता है। देखिए, वह नीचे चूहा किस तरह मेरी जड़ों को खोद रहा है । तब तपस्वी ने चूहे को आवाज लगाई। चूहा तुरंत वहां पहुंच गया । लड़की चूहे को देखते ही बहुत खुश हुई । उसने कहा, पिताजी जिसे मैं चाहती हूं वह यही है। मैं इन्हीं से शादी करूंगी । इन्हीं के साथ रहूंगी। तपस्वी ने सोच विचार कर अपने मंत्र बल से उस लड़की को फिर से चुहिया बना दिया और उस चूहे के साथ उसका विवाह कर दिया। कहानी का तात्पर्य यह है कि किसी को भी ईश्वर की संरचना में छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।
प्रश्न - उत्तर ( पुनर्मुसिकोभव )
1. आश्रम में रहने वाले गुरु कैसे थे ?
उत्तर -- आश्रम में रहने वाले गुरु बहुत विद्वान और समझदार थे। वह सिद्ध पुरुष थे।
प्रश्न - एक दिन क्या घटना घटी ?
उत्तर - एक दिन की बात है । गुरु गंगा तट पर स्नान करके प्रार्थना कर रहे थे कि ऊपर से एक चुहिया उनकी हथेली में आकर गिर गई।
प्रश्न -- चुहिया को गुरु ने किस रूप में परिवर्तित कर दिया ?
उत्तर - चुहिया को गुरु ने एक सुंदर कन्या के रूप में परिवर्तित कर दिया।
प्रश्न -- बच्ची बड़े होने पर तपस्वी और उनकी पत्नी ने क्या सोचा?
उत्तर -- बच्ची के बड़े होने पर तपस्वी और उनकी पत्नी ने सोचा कि हम अपनी बेटी का विवाह सबसे बलवान और सुंदर वर से करेंगे।
यह कहानी कैसी लगी, कामेंट बाक्स में लिखें।
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