हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर, अक्का देवी, he mere Juhi ke phul jaise ishwar, akka devi


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हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

       हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

मंगवाओ मुझको भीख

और कुछ ऐसा करो

कि भूल जाऊं अपना घर पूरी तरह

झोली फैलाऊ और न मिले भीख

कोई हाथ बढ़ए  कुछ देने को

तो वह गीर जाए नीचे

और यदि मैं झुकूं उसे उठाने

तो कोई कुत्ता आ जाए

और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।



व्याख्या और भावार्थ

प्रस्तुत वचन कर्नाटक की सुप्रसिद्ध कवयित्री अक्का देवी द्वारा रचित है। यहां वह स्वयं को भगवान शिव जी के चरणों में समर्पित करती हुई कहती हैं --

हे जूही के फूल जैसे कोमल और  मनोरम ईश्वर ! तुम मेरा सबकुछ छीन लो। कुछ ऐसा करो कि मुझे भीख मांगनी पड़े। मैं अपना घर , गृहस्थी सब कुछ भूल जाऊं। काश ! ऐसा हो कि मैं दूसरे के सामने झोली फैलाऊं। परन्तु मुझे भीख भी न मिले। कोई मुझे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए और वह मुझे न मिलकर नीचे गिर जाए। और इतना ही नहीं, मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुकूं, तब तक उसे कुत्ता झपटकर छीन ले जाए। मैं लाचार हो जाऊं। मेरा अहंकार नष्ट हो जाए।

कवयित्री अक्का देवी स्वयं के अहंकार को मिटाकर ईश्वर की शरण में जाना चाहती है। ' हे मेरे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर ' में उपमा अलंकार है। ' मंगवाओ मुझसे भीख ' में म वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।  यह पद मुख्य रूप से कन्नड़ भाषा में रचित है जिसका हिंदी में रूपांतरण किया गया है।

गुण - प्रासाद और रस - शांत। कवयित्री अक्का देवी ने भीख न मिलने, झोली फैलाने, भीख नीचे गिरने, कुत्ते द्वारा झपटने ' में सुन्दर बिम्ब योजना की है।

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डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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