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कन्यादान कक्षा दसवीं में पढाई जाने वाली एक प्रेरणादाई कविता है जिसमें बालिका शोषण और उत्पीड़न के प्रति लोगों को आगाह किया गया है। इस कविता में एक मां अपनी बेटी को परंपरागत आदर्शों से हटकर कुछ उपयोगी शिक्षा दे रही है। यहां कवि ने मां - बेटी की घनिष्ठता को एक नया परिभाषा देने का प्रयास करता है। पिता बेटी की विवाह के समय बेटी का कन्यादान करता है। वहां बेटी को भावी जीवन की कुछ सीख दी जाती है। मां बेटी की सबसे निकटतम सहेली होती है। सामाजिक व्यवस्था में स्त्री के कुछ प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं, कवि उन्हीं प्रतिमानों को तोड़ने का प्रयास करता है।
पाठ का सार अथवा सारांश
कवि ऋतुराज का जीवन परिचय
कविता कन्यादान
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बांचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की।
मां ने कहा पानी में झांककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियां सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन है स्त्री जीवन के
मां ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
व्याख्या और भावार्थ
कवि कन्यादान के समय मां के दुख को बताते हुए कहता है कि मां ने जो दुख अपने जीवन में उठाए हैं वह सब प्रमाण है कि स्त्री जीवन के कुछ आचरण नियम है । वह कन्यादान के समय अपनी बेटी को अपने अंतिम पूंजी के समान किसी अन्य को दे रही है ।उसकी बेटी भोली है, समझदार नहीं है। वह सुख का अनुभव कर सकती है, पर दुख को समझना उसे नहीं आता। ऐसा लगता है जैसे वह बालिका ढूंढने प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ लैब्स पंक्तियों को पढ़ने का प्रयत्न कर रही है जीवन के सामान्य ज्ञान को मां अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेटी को दे रही है वह अपनी बेटी से भावात्मक रूप से जुड़ी है उसकी बेटी भोली है मां उसे जीवन की सच्चाई से अवगत कराना चाहती है वह उसे धूंधले प्रकाश में जीवन की सच्चाई पहचानने के लिए कहती है।
मां बेटी को समझाती हुई आगे कहती है, तुम पानी में झांककर अपने चेहरे की सुंदरता को निहारते न रहना । उससे बचकर रहना अर्थात डूब मत जाना और आग रोटियां सेकने के लिए होती है, स्वयं जलने के लिए नहीं। वस्त्र और आभूषण केवल स्त्री को भ्रम में रखते हैं । जीवन में स्त्री के बंधन है। अंत में वह समझाती है, तुम लड़की होना पर उसके जैसा दिखाई मत देना, अर्थात डरपोक और दब्बू मत बनना। साहसी और निडर बनना । कहने का तात्पर्य है कि परंपराओं के विपरीत मां बेटी को शिक्षा देती है कि तुम स्वयं को साहसी बनाना, हिम्मत हार कर वह आत्महत्या ना करें अपितु निडर होकर कठिनाइयों का सामना करें और लड़कियों की तरह वस्त्र आभूषण के भ्रम में जीवित ना रहे समाज में अपनी पहचान बनाए।
कविता की भाषा खड़ी बोली हिंदी है। शांत रस और अतुकान्त छंद का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न उत्तर questions answers
1.आपके विचार से मां ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ?
2. आग रोटियां सेकने के लिए हैं , जलने के लिए नहीं ।
3. पाठिका थी वह धूंधले प्रकाश की' कुछ तुकू और कुछ लय बंद्ध पंक्तियों की इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभर कर आ रही है उसे शब्दों में लिखिए।
4. मां को अपनी बेटी अंतिम पूंजी क्यों लग रही थी ?
उत्तर -- मां को अपनी बेटी अंतिम पूंजी इसलिए लग रही थी कि लड़की ही उसकी संचित पूंजी थी । अब तक उस पर ही मां का ध्यान केंद्रित था। उसके जाने के बाद मां बिल्कुल खाली हो जाएगी । उसके पास कुछ ना बचेगा । मां बेटी के सबसे निकट और सुख दुख के साथी होती है। इसलिए उसे अंतिम पूंजी कहा गया है ।
5 . मां ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ?
उत्तर -- मां ने बेटी को यह सीख दी कि कभी अपने सौंदर्य पर गर्व मत करना ।आग का सदुपयोग करना। आग रोटी सेकने के लिए होती है जलने के लिए नहीं। वस्त्र - आभूषणों से भ्रमित मत होना। यह स्त्री जीवन के बंधन है । लड़की होने पर भी लड़की जैसी मत दिखना । अर्थात साहसी और निडर बनना।
6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहां तक उचित है ?
उत्तर -- हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना बिल्कुल उचित नहीं है। कन्या को दान में नहीं दिया जा सकता । कन्या का अपना अस्तित्व है । उस पर किसी का अधिकार नहीं है बल्कि वह अपने मालिक स्वयं है । कन्या को दान में देने की बात करना उसकी अस्मिता पर चोट करना है।
7. मां ने बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए क्यों मना किया है ?
उत्तर -- जीवन में सुंदरता महत्वपूर्ण नहीं है । बेटी को सौंदर्य के स्थान पर मानवीय मूल्यों को महत्व देना चाहिए। यथार्थ कड़वा होता है। सौंदर्य पर रीझने के स्थान पर यथार्थ का सामना करना चाहिए ।
8 . आग रोटियां सेकने के लिए है जलने के लिए नहीं। आशय बताइए।
उत्तर -- इस पंक्ति में समाज में स्त्रियों को दहेज़ या अन्य प्रथाओं के कारण जलाए जाने की ओर संकेत किया है। मां के कथन का आशय है आग रोटी सेकने के लिए होती है। विपरीत स्थितियों में आत्मदाह के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
9. स्त्री जीवन के बंधन किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर -- वस्त्रों आभूषणों को स्त्री जीवन का बंधन कहा गया है। स्त्री इसकी कामना में अपना अन्य लक्ष्य निर्धारित नहीं करती और उन्हें बंधन की तरह अपना लेती है।
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