भारतीय संस्कृति, Bhartiya sanskriti,

 

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गुरु नानक देव जी

भारतीय संस्कृति की परिभाषा, भारतीय संस्कृति का इतिहास, वैदिक काल में भारतीय संस्कृति, महात्मा बुद्ध और महावीर, महात्मा गांधी की सत्य और अहिंसा, भक्ति आन्दोलन,आलवार भक्त, सभ्यता और संस्कृति में अंतर। भारतीय संस्कृति की पहचान 

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भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत पुराना है । हमें संस्कृति  का सामान्य अर्थ समझना चाहिए। वास्तव में संस्कृति किसे कहा जाता है ? विद्वानों का मत है कि मानव जीवन के दैनिक आचार व्यवहार, रहन-सहन तथा क्रियाकलाप आदि ही संस्कृति है। संस्कृति का निर्माण एक लंबी परंपरा के बाद होता है। संस्कृति विचार और आचरण के विनियम और मूल्य हैं जिन्हें कोई समाज अपने अतीत से प्राप्त करता है। अपने पूर्वजों से प्राप्त करता है। अतः कहा जा सकता है कि हम अपने अतीत से विरासत के रूप में बहुत कुछ प्राप्त करते हैं। दूसरों शब्दों में कहा जा सकता है कि संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है। 

सभ्यता और संस्कृति में अंतर

कभी-कभी हम सभ्यता और संस्कृति को एक ही मान में लेते हैं परंतु इन दोनों में पर्याप्त अंतर है। सभ्यता का अनुमान भौतिक सुख-सुविधाओं से लगाया जा सकता है जबकि संस्कृति में आचार विचार पक्ष की प्रधानता होती है। इस प्रकार यदि कहा जाए कि सभ्यता को शरीर माना जा सकता है तथा संस्कृति को आत्मा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।इन्हें अलग-अलग करके देखा नहीं जा सकता है।


हम भारतीय संस्कृति के स्वरूप पर जब विचार करते हैं तो देखते हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। यह कब और कैसे विकसित हुई यह निश्चित रूप से कहना आसान नहीं है । फिर भी इसे समझने के लिए हम भारतीय संस्कृति को तीन चरणों में बांट कर देख सकते हैं।

वैदिक काल

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 भारतीय संस्कृति का परिचय हमें वेदों से मिलता है। वेद चार है -- ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद। इस काल के साहित्य से ज्ञात होता है कि उस युग में समाज चारों आश्रमों में बांटा था। चार प्रकार के वर्ण थे। ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इसी प्रकार चार आश्रम थे, - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। पहले वर्णों का आधार कर्म था, जन्म नहीं। समय के बीतने के साथ-साथ ही सामाजिक परिस्थितियां बदल गई तथा समाज में जाति प्रथा प्रचलित हो गई और वर्ण जन्म  के आधार पर माने जाने लगे। भगवान महावीर और गौतम बुद्ध ने समाज में पनपी ऐसी ही बुराइयों को रोकने का बहुत प्रयास किया था। इन्होंने मानव धर्म को स्थापित कर भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया । उन्होंने अहिंसा, प्रेम, सत्य आदि भावों को भी विकसित किया। चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक का काल हमारे इतिहास का सर्वोत्तम काल माना जाता है। इस काल के शासकों ने धर्म, दर्शन, साहित्य, संगीत, चित्रकला, वास्तु कला आदि को शिखर तक पहुंचाया। गुप्त काल में संस्कृत भाषा में महान साहित्य रचे गए। महाकवि कालिदास इसी युग में हुए। भारतीय और यूनानी कलाओं के मेल से कला की नई सहेलियां विकसित हुई।

मध्यकाल 


बाल विवाह

इस काल में इस्लाम धर्म के आ जाने से एक नई संस्कृति ने जन्म लिया। समाज अनेक जातियों और उप जातियों में बट गया। बाल विवाह , दहेज प्रथा जैसी बुराइयां समाज में पनपने लगे । बौद्ध धर्म और जैन धर्म अनेक शाखाओं में बट गए। इन विषम परिस्थितियों में अनेक संतों ने भक्ति आंदोलन चलाया दक्षिण में आड्यार तथा आलवार भक्तों ने भक्ति की धारा प्रवाहित की। रामानुजाचार्य तथा वल्लभाचार्य ने उत्तर भारत की यात्राएं की। ईश्वर भक्ति दो रूपों में बट गई । सगुण और निर्गुण। आगे चलकर तुलसीदास, सूरदास, कबीर , नानक, रैदास, जायसी आदि संत कवियों ने अपनी वाणी के द्वारा भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु, पंजाब में गुरु नानक देव, राजस्थान में मीराबाई महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर तथा दक्षिण भारत में संत तिरुवल्लुवर जैसे महापुरुषों ने भारतीय संस्कृति को अपनी वाणी से सींचा।

आधुनिक काल


 

राजा राम मोहन राय

इसी काल में अंग्रेजों का आगमन हुआ। अंग्रेजी शिक्षा का प्रचलन हुआ। इस काल में समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए अनेक अभियान चलाए गए । बंगाल में राजा राममोहन राय ने इस काम में पहल की । उन्होंने ब्रह्म समाज का गठन किया। उत्तर भारत में स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की। भारतीय संस्कृति के मूल्यों को स्थापित करने में महर्षि अरविंद तथा बाल गंगाधर तिलक ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का मार्ग चुना और सत्य तथा अहिंसा की भावना को बढ़ावा दिया । इस काल में भारतीय संस्कृति का जो रूप विकसित हुआ उसमें हिंदू ,मुसलमान, ईसाई तथा सिखों ने एक साथ मिलकर सहयोग दिया था। इसमें भारत की मिली-जुली संस्कृति ही है।

भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं, भारतीय संस्कृति की पहचान 

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है अनेकता में एकता। कोई भी विदेशी जो भारत से बिल्कुल अपरिचित हो भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा करें तो उसको ऐसा लगेगा कि वह कह उठेगा कि भारत एक देश नहीं बल्कि कई देशों का समूह है, क्योंकि यहां प्राकृतिक विभिन्नताएं , वेशभूषा , धर्म आदि में तरह-तरह के रूप उसे देखने को मिलेंगे । इस देश में प्राकृतिक विभिन्नताएं इतनी गहरी हैं कि वह देश नहीं बल्कि महाद्वीप के रूप में इसे समझेगा। 

भारतीय संस्कृति: विभिन्नता में एकता

जलवायु , खान-पान, वेशभूषा, भाषा में अनेक विभिन्नताएं ही यहां देखने को मिलती हैं। लेकिन ध्यान से देखा जाए तो इन विभिन्नताओं के बीच ऐसी क्षमता और एकता फैली हुई है जो अन्य विभिन्ननताओं को ठीक उसी तरह पीरो लेती है जैसे रेशमी धागा भिन्न-भिन्न फूलों को पिरो कर एक सुंदर हार तैयार कर देता है।  ऊपरी तौर पर चाहे विभिन्नताएं दिखाई देती है परंतु अपने आचार विचारों की एकता के कारण यहां सांस्कृतिक एकता बनी हुई है।  यही कारण है कि भारत में अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं।

भारतीय संस्कृति में अहिंसा और त्याग

भारतीय संस्कृति में अहिंसा को बहुत महत्व दिया गया है।  यहां त्याग की भावना को बढ़ावा दिया गया है।  यह हमारी संस्कृति की महानता है कि अब संसार की अनेक प्रसिद्ध जातियां नष्ट हो गई है तब भी हम अपना गौरव बनाए हुए हैं।  हमारी संस्कृति में गतिशीलता , लचीलापन तथा ग्रहण शीलता के गुण हैं।  इन्हीं विशेषताओं के कारण भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।


प्रश्न उत्तर 

प्रश्न  -- संस्कृति शब्द का सामान्य अर्थ क्या है इसमें क्या क्या आता है ?

 उत्तर - संस्कृति का सामान्य अर्थ है मानव जीवन के दैनिक आचार व्यवहार रहन-सहन तथा क्रियाकलाप आदि।

प्रश्न  - सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है  ? 

उत्तर -- सभ्यता और संस्कृति में अंतर है । सभ्यता का अनुमान भौतिक सुख-सुविधाओं से लगाया जा सकता है जबकि संस्कृति में आचार विचार पक्ष की प्रधानता होती है । इस प्रकार सभ्यता को शरीर माना जा सकता है तो संस्कृति को आत्मा। इन अंतर के बावजूद भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न वेद कितने हैं ? उनके नाम लिखो ।

उत्तर -- वेद चार हैं, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्व वेद और सामवेद।

प्रश्न --  चार वर्ण और चार आश्रम कौन-कौन से हैं ?

उत्तर  - चार वर्ण हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र। इसी प्रकार चार आश्रम  - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ , वानप्रस्थ और सन्यास।

 प्रश्न -- भारतीय संस्कृति के विकास में महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी का क्या योगदान है  ? 

उत्तर  -- भारतीय संस्कृति के विकास में महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है  । उन्होंने समाज में पनपी बुराइयों को रोकने का बहुत प्रयास किया। इन लोगों ने मानव धर्म को स्थापित कर भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाया । उन्होंने अहिंसा , प्रेम, सत्य आदि भावों को भी जनमानस में विकसित किया।

प्रश्न - किस काल को भारतीय इतिहास का सर्वोत्तम काल माना जाता है? और क्यों ?

 उत्तर -- चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक का काल भारत के इतिहास में सर्वोत्तम काल माना जाता है। इस काल के शासकों ने धर्म, दर्शन , साहित्य , संगीत ,चित्रकला ,वास्तुकला आदि को बढ़ावा दिया।

प्रश्न  - मध्य काल में भारतीय समाज में कौन-कौन सी कुरीतियां आ गई ?

 उत्तर  -- मध्यकाल आते आते भारतीय समाज में बाल विवाह , दहेज प्रथा, जाति प्रथा जैसी बुराइयां आ गई थी।

प्रश्न  ---  पांच संत कवियों के नाम लिखो जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनी वाणी से सींचा ?

 उत्तर  ---भारतीय संस्कृति को अपनी वाणी से सीचने वाले संत कवियों में प्रमुख हैं  -- गुरु नानक देव, मीराबाई ,संत ज्ञानेश्वर ,रैदास, तुलसीदास, सूरदास, कबीर आदि ।

प्रश्न  -- आधुनिक काल में समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर करने के क्या क्या प्रयास हुए ?

 उत्तर  -- आधुनिक काल में समाज में फैले बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए कई अभियान चलाए गए। बंगाल में राजा राममोहन राय ने इस काम में पहल की। उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की । इसी तरह उत्तर भारत में स्वामी दयानंद ने आर्यसमाज का गठन किया । भारतीय संस्कृति के मूल्यों को स्थापित करने में महर्षि अरविंद और बाल गंगाधर तिलक का भी महत्वपूर्ण योगदान था ।

प्रश्न  -- अनेकता में एकता से आप क्या समझते हैं ?

 उत्तर  -- भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का एक सुंदर मिसाल है। यहां नाना प्रकार के धर्म, जाति, वेशभूषा, खान पान ,रहन सहन के साथ-साथ प्राकृतिक विभिन्नताएं होने के बाद भी लोगों की आत्मा एक है।

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