छाया मत छूना, कविता, tenth Hindi कवि गिरिजा कुमार माथुर, chhaya mat chhuna , poem , summary


       

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            डॉ.उमेश कुमार सिंह के द्वारा लिखित

Chhaya mat chhuna

छाया मत छूना, कविता, गिरिजा कुमार माथुर, chhaya mat chhuna , poem , summary 

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"छाया मत छूना"  कविता के माध्यम से कवि गिरिजा कुमार माथुर यह बताने का प्रयास करते हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं। सुख दुख के मिश्रण से ही जीवन बनता है। इसलिए बिते दिनों के सुख को याद कर वर्तमान के दुख को बढ़ावा देना उचित नहीं है। 

छाया मत छूना 

मन, होगा दुख दूना। 

जीवन में हैं सुरंग सुधियां सुहावनी 

छवियों की चित्र गंध फैली मनभावनी, 

तन - सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, 

कुंतल के फूलों की याद बनी चांदनी। 

भूली सी एक छुअन बनता हर जीवन क्षण -

 छाया मत छूना

 मन, होगा दुख दूना।।


यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया, 

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाता।

 प्रभुता का शरण - बिम्ब केवल मृगतृष्णा है, 

हर चन्द्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

 जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन - 

छाया मत छूना

 मन, होगा दुख दूना।


दुविधा हत साहस है, दिखता है पथ नहीं, 

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं। 

दुख है न चांद खिला शरद - रात आने पर,

 क्या हुआ जो खिला फूल रस - बसंत आने पर ? 

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,

 छाया मत छूना 

मन, होगा दुख दूना।


छाया मत छूना कविता का सारांश

 'छाया मत छूना ' कविता में कवि मन को संबोधित करते हुए कहता है कि कुहासे से बाहर निकलकर यथार्थ की कठोर भूमि पर आओ।' छाया मत छूना ' कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जीवन में सुख और दुख दोनों की उपस्थिति है। विगत के सुख को याद कर वर्तमान के दुख को और बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है । इससे दुख दूना हो जाता है ।विगत के सुख को भूलकर वर्तमान की कठिनाइयों का सामना करना अधिक अच्छा है। कवि कहता है कि जीवन के सत्य को छोड़कर विगत की छाया में भटकते रहना जीवन के कठोर सत्य को दूर करना है ।

कवि कहता है कि विगत में प्रिय का साथ, तन का सुगंध, सब सपना बन गए  हैं । कवि को यश, वैभव , सम्मान , हर्ष नहीं मिला । उसका मन भटकता ही रहा परंतु अब भूल गया कि चांदनी के पीछे गहरी कालिमा छुपी है । सब सुख स्वप्न मात्र हैं । समय निकल जाने पर यदि थोड़ा सुख मिल भी जाए तो व्यर्थ है । व्यक्ति को अप्राप्य को भूलकर भविष्य की सुध लेनी चाहिए । जीवन संघर्ष को पूरी लगन से लड़ना चाहिए।


कवि गिरिजा कुमार माथुर का जीवन परिचय


कवि गिरिजाकुमार माथुर आधुनिक युग के कवि हैं । वे मुख्य रूप से प्रयोगवादी कवि माने जाते हैं । इनका जन्म मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर सन 1918 में हुआ था इनके पिताजी ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि थे । इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई । इन्होंने अंग्रेजी  में एम ए तथा एलएलबी की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।  शुरू में ये कुछ समय वकालत भी किये, बाद में इन्होंने झांसी में रहकर आकाशवाणी में काम किया । वह दूरदर्शन से भी संबंधित है । सन 1994 में इनका निधन हो गया ।



गिरिजाकुमार माथुर की प्रसिद्ध रचनाएं निम्नलिखित है-- मंजीर,  नाश और  निर्माण, धूप के दान , भीतरी नदी की यात्रा, शिला पंख चमकीले। 'पृथ्वी कल्प' इनका प्रतिकात्मक नाट्य काव्य है। जन्म कैद एक नाटक है। नई कविता सीमाएं और संभावनाएं इनकी आलोचनात्मक रचना है। इनकी भाषा पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है। इन्होंने रोमांस और दुख को अपनी कविताओं में स्थान दिया है। उनकी रचनाओं में व्यक्तिगत अनुभूतियों की प्रमुखता है। जीवन के कटु और मधुर रूप का भी इन्होंने चित्रण किया है । सरसता, मधुरता , सौंदर्य और प्रेम के प्रति आकर्षण भी इनकी कविताओं का प्रमुख विशेषता है। गिरिजाकुमार माथुर की भाषा शैली सहज एवं सरल है। इन्होंने अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया है। इनकी भाषा प्रयोगवादी कविता के लिए अनुकूल है। इन्होंने नए-नए प्रतीकों, बिंबो और उपमानों का प्रयोग किया है। इनकी कविताओं में देशी और विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया गया है।


भावार्थ एवं व्याख्या


छाया मत छूना 

मन, होगा दुख दूना। 

जीवन में हैं सुरंग सुधियां सुहावनी 

छवियों की चित्र गंध फैली मनभावनी, 

तन - सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, 

कुंतल के फूलों की याद बनी चांदनी। 

भूली सी एक छुअन बनता हर जीवन क्षण -

 छाया मत छूना

 मन, होगा दुख दूना।।


भावार्थ एवं व्याख्या

कवि गिरिजा कुमार माथुर अपनी कविता छाया मत छूना में कहते हैं, - हे मेरे मन पुरानी बातों को याद ना कर। ऐसा करने से दुख और अधिक बढ़ जाएगा ।जीवन में रंग बिरंगी यादें बिखरी रहती हैं ।उन यादों को छवि मनमोहक चित्र के रंगों की भांति हर और दिखाई देती हैै। प्रिय के तन की सुगंध मानो तारों भरी रात के समान बीत गई है। लंबे बालों में लगे फूलों की याद चांदनी के समान हो गई है। भूल से किया गया स्पर्श मानो जीवित क्षण के समान हो गया है । हे मेरे मन ! उन क्षणों को याद मत कर अन्यथा दुख दुगना हो जाएगा। कवि के कहने का तात्पर्य है कि जीवन में सुख दुख दोनों ही आते हैं। सुख के पलों को याद करते रहने से दुख कम नहीं होते और अधिक बढ़ जाते हैं। कवि ने सुख की घड़ियों में प्राप्त आनंद के भावों को इस पद में प्रस्तुत किया है ।

काव्य सौंदर्य -  इस कविता में खड़ी बोली का प्रयोग है । तत्सम शब्दों के प्रयोग से पंक्तियां निखर गई हैं। कविता में श्रृंगार रस है तथा 'दुख दूना' और 'सुरंग सुधिया सुहावनी' में अनुप्रास अलंकार है।

अर्थ ग्रहण संबंधित प्रश्न उत्तर

प्रश्न-- कवि को मन क्या कहता है और क्यों ?

उत्तर - कवि अपने मन को विगत सुख के क्षणों को याद करने से मना करता है क्योंकि इससे बर्तमान का दुख और भी बढ़ जाएगा ।

प्रश्न--  जीवन में कैसी सुधिया है ?

 उत्तर --  जीवन की सुधिया अर्थात स्मृतियां बड़ी सुहावनी है । वह स्मृतियां मन को भ्रमाती है । 

प्रश्न  -- कुंतल फूलों से कवि का क्या आशय है ?

 उत्तर - कुंतल के फूलों से कवि अपनी प्रिया को याद कर रहा है । उसके बालों में लगे फूल उसकी देह सुगंध उसकी सुखद क्षणों की यादों में बसे हैं।



प्रश्न --  विगत स्मृतियां क्या प्रभाव डालते हैं ? 

 उत्तर --  विगत स्मृतियां हमें भ्रम में डालते हैं। वह हमें सच्चाई का सामना करने से रोकती है । इन स्मृतियों में हम कल्पना लोक में विचरण करते हैं परंतु इनसे मन का दुख दुगना हो जाता है।

भावार्थ एवं व्याख्या


यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया, 

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाता।

 प्रभुता का शरण - बिम्ब केवल मृगतृष्णा है, 

हर चन्द्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

 जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन - 

छाया मत छूना

 मन, होगा दुख दूना।


भावार्थ एवं व्याख्या


कभी कहते हैं कि मेरे पास नहीं है ना वैभव नहीं सम्मान या पूंजी जितना ही तुम विगत के सुख के पीछे भागोगे वह तुम्हें भ्रम में डाले गए परमिता के पीछे वार धोखा ही रहेगा इस सुख की चांदनी के पीछे दुख की काली मां है उन सब को छोड़ जो सच्चाई कठिन है अर्थात जीवन की कठिनाइयों का सामना करना चाहिए हे मेरे मन जीवन में विगत सुखों को याद कर उसके पीछे मत भाग नहीं तो दुख दुगना हो जाएगा।
कभी कहना चाहता है कि दुख के समय सुखों को याद करने से वे कम होने के स्थान पर अधिक बढ़ जाते हैं कभी के पास कुछ नहीं है वह सुखों की मृगतृष्णा के पीछे भाग रहा है सुख के बाद दुख आता ही है जितना हम सुखों के पीछे भागने वे दूर होते जाएंगे और हमारे दुख को बढ़ाएं इन पंक्तियों की भाषा खड़ी बोली है।

अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्न 


प्रश्न  - कवि अपने जीवन में किस-किस से वंचित रहा है  ? 

उत्तर -- कवि अपने जीवन में यश, सम्मान, धन , वैभव सभी से वंचित रह जितना इन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न किया उतना ही भ्रमित हुआ।

 प्रश्न --' प्रभुता का शरण बिंब' से कवि का क्या आशय है  ? 

उत्तर --  प्रभुता का अर्थ है बड़प्पन जिसे पाने की कल्पना एक विडंबना ही है। एक मृगतृष्णा है।  आदमी इसे पाने के लिए भटकता ही रहता है।

 प्रश्न --  हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है पंक्ति में कवि क्या बताना चाहता है  ? 

उत्तर -- कवि कहना चाहता है कि हर चांदनी के पीछे रात की कालिमा है अर्थात संसार की चकाचौंध के पीछे गहरा अंधकार छुपा है । 

 प्रश्न -- कवि क्या परामर्श देता है ? 

 उत्तर - कवि मृगतृष्णा  के पीछे न भागने का परामर्श देता है। जीवन में अनेक दुख है। कल्पना लोक में विचरण कर कुछ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए जीवन की सच्चाई का सामना करना चाहिए। व्यक्ति को यथार्थ की भूमि पर स्वयं को प्रतिष्ठित करना चाहिए।


दुविधा हत साहस है, दिखता है पथ नहीं, 

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं। 

दुख है न चांद खिला शरद - रात आने पर,

 क्या हुआ जो खिला फूल रस - बसंत आने पर ? 

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,

 छाया मत छूना 

मन, होगा दुख दूना।


भावार्थ एवं व्याख्या

कवि कहता है कि साहस होते हुए भी दुविधा रहने पर रास्ता साफ नहीं दिखाई देता । शरीर को तो सुख मिले हैं परंतु यदि मन में दुख हो तो दुखों का अंत नहीं होता। मन अशांत होने पर सुख भी व्यर्थ है। यदि शरद ऋतु के स्वच्छ आकाश में चांदनी नहीं बिखरी  तो क्या हुआ ? यदि बसंत के बीत जाने पर फूल खिले तो निराश क्यों होना? अर्थात जो है उसमें ही सुख प्राप्त करना चाहिए । जो मिला नहीं उसे याद कर दुख उठाने से अच्छा है भविष्य को अच्छा बनाने का प्रयास करो। हे मन ! पिछली बातों की छाया को मत छूना, अन्यथा मन में दुख दूना हो जाएगा। 

कवि ने स्पष्ट किया है कि जब मन में उत्साह ना हो तो कोई भी सुख उसे अच्छा नहीं लगता है । उसे जीवन का लक्ष्य स्पष्ट दिखाई नहीं देता है । इसलिए अपने दुखों को भूल कर पिछली स्मृतियों में खोए रहने के स्थान पर आगे की सोचो। भविष्य को अच्छा बनाने का प्रयत्न करो।

 शिल्प सौंदर्य --  इन पंक्तियों में खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग है।  तुकांत छंद है,  तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। प्रश्न शैली में भाव में गहनता भर दी गई है।  कवि का आशावादी दृष्टिकोण मुखरित हो रहा है। 'देह सूखी पर मन के दुख में' विरोधाभास है। शरद रात और बसंत का प्रतीकात्मक प्रयोग है।

 अर्थ ग्रहण संबंधित प्रश्न


 प्रश्न - कवि किस स्थिति में जी रहा है  ?

उत्तर -  कवि के मन में दुविधा है ।उसमें साहस है । परंतु दुविधा के कारण वह स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे उचित मार्ग नहीं दिखाई देता।

 प्रश्न - न चांद खिला शरद रात आने पर' का आशय स्पष्ट कीजिए


 उत्तर -  शरद ऋतु में चांद न दिखे चांदनी ना फैले, बसंत ऋतु में फूलों की सुगंध न हो तो क्या लाभ  ? समय बीत जाने पर यदि थोड़ा सुख मिल भी जाए तो व्यर्थ है।

 प्रश्न  - कवि क्या भूलने और क्या वरण करने को कहता है ?

 उत्तर  -- कवि कहता है कि जो मिला नहीं, अप्राप्य था उसे भूल जा और जो है उस वर्तमान और भविष्य को वरण कर। भूतकाल की स्मृतियों को भूल यथार्थ को स्वीकार करना चाहिए।

 प्रश्न -  इस काव्यांश का मूल भाव संक्षेप में बताइए।

 उत्तर - काव्यांश का मूल भाव है कि जीवन दुखों से भरा हुआ है। पिछली स्मृतियों में जीना छाया के पीछे भागना है । जो वस्तु समय बीत जाने पर मिले उसका कोई मूल्य नहीं है। कठिन यथार्थ का सामना करना ही जीवन है।

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर



प्रश्न  - कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है  ?

उत्तर  - कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि इससे ही जीवन चलता है ।हमें कल्पना की  पृष्ठभूमि से निकलकर यथार्थ के धरातल को ही अपनाना चाहिए। अर्थात जीवन की कठोर सच्चाई को समझना चाहिए। पिछले सुखों की याद के पीछे भागना व्यर्थ है । जीवन की वास्तविकता का  सामना करना ही होगा। वर्तमान का सामना करके ही भविष्य को संवारा जा सकता है।

 प्रश्न --  छाया शब्द किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ?  कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?

 उत्तर  - छाया शब्द कविता में पुरानी सुख स्मृतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है । कवि उन स्मृतियों को छूना नहीं चाहता।  क्योंकि उनको याद करने से मन का दुख और अधिक बढ़ जाता है।  स्मृतियों की छाया भ्रम पूर्ण स्थिति को भी सूचित करती है। छाया वास्तविकता से पृथक होती है । पुरानी स्मृतियों के सहारे जीवन नहीं बिताया जा सकता।  छाया के पीछे भागना मृगतृष्णा के समान है , छलावा है। वर्तमान में जीना भविष्य के लिए अच्छा है।

 प्रश्न -  मृगतृष्णा किसे कहते हैं ? छाया मत छूना कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?


उत्तर - रेगिस्तान की तपती धूप में दूर से देखा जाए तो पानी का भ्रम होता है। उसे पाने की खोज में  मृग दौड़ता है पर उसकी प्यास नहीं बुझती । इसे ही मृगतृष्णा कहा जाता है। छाया मत छूना कविता में  इसका प्रयोग  सुख की स्मृतियों के भ्रम के अर्थ में हुआ है।

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