छायावादी कविता में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना, chhayavaadi kavita me rashtriya aur samajik chetna




छायावादी कविता में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना


छायावादी कविता में राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना, chhayavaadi kavita me rashtriya aur samajik chetna


छायावाद क्या है, छायावाद के प्रमुख कवि, प्रसाद, पंत, महादेवी और निराला। छायावाद की प्रवृत्तियां और विशेषताएं, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना, 



छायावाद की अवधि 1920 से 1936 ई तक मानी जाती है। सन् 1936=के बाद से छायावाद की समाप्ति होने लगती है। तब पतन का कारण घोर वैयक्तिकता और अस्पष्टता माना जाता है। फिर भी हिंदी साहित्य और समाज को छायावाद की देन को नकारा नहीं जा सकता है। छायावाद में राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक चेतना मुखर हुई है वह युगों युगों तक अमर रहेगा।


महाकवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी और निराला जी की तुलसीदास ऐसा ग्रंथ है जो विश्व मानव को एक नया प्रेरणा दायक संदेश देता है। इतना ही नहीं लगभग सभी छायावादी कवियों की कृतियों में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की भावना मुखर हुई है। इतना ही नहीं, राष्ट्रीयता की यह भावना अपने राष्ट्र तक ही नहीं सीमित रहकर संपूर्ण विश्व में फ़ैल गई है।

 प्रसाद, पंत निराला के काव्य में सामाजिक चेतना गहरे रूप में उभरी है। यद्यपि महादेवी वर्मा के काव्य में विरह की अनुभूति का आधिक्य है फिर भी उनमें सामाजिक राष्ट्रीय चेतना का रूप भी प्रस्फुटित हुआ है --
 सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की इन पंक्तियों के देखिए

"भारत माता ग्राम वाहिनी।
तीस कोटि संतान नग्न तन अर्ध क्षुधित शोषित निरस्त्र जन,
मूढ़ असभ्य अशिक्षित निर्धन नत मस्तक तरूण तल निवासिनी।"

आप देख सकते हैं इन पंक्तियों में भारतीय समाज की दुर्दशा का कैसा भावमय चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

यहां देखिए , व्यापक मानवता वाद का कैसा चित्रण किया गया है ::

जीवन मन के भेदों में सोई मति को 
मैं आत्म एकता में अनिमेष जगाता।

जन - जन को नव मानवता से जाग्रत कर
मैं मुक्त कंठ जीवन रण शंख बजाता।
मैं गीत विहग, निज मत्रर्य नीड़ से उड़कर,
चेतना गगन में मन के पर फैलाता।
मैं अपने अंतर का प्रकाश बरसा कर,
जीवन के तम को स्वर्णिम कर नहलाता।
मैं स्वर्दूतों को बांध मनोभावों में,
जन जीवन का नित उनको अंग बनाता।
मैं मानव प्रेमी नव भू स्वर्ग बसा कर,
जन धरती पर देवों का विभव लुटाता।


इस प्रकार देख सकते हैं कि छायावादी काव्य में मानवता वाद तथा राष्ट्र वाद की भावनाएं अत्यधिक मुख्य हुईं हैं। छायावाद पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि इसमें यथार्थ और समाज के प्रति दायित्व बोध नहीं था जो पूरी तरह सत्य नहीं है। महाकवि निराला की कविता जागो फिर एक बार और जयशंकर प्रसाद की मुक्तछंद कविता शेर सिंह का आत्मसमर्पण आदि ऐसी रचनाएं हैं जो कवियों के देशप्रेम को प्रकट करती हैं।


छायावाद की प्रमुख प्रवृतियां और विशेषताएं


1. स्वानुभूति की अभिव्यक्ति
2. स्वच्छंदतावादी
3.निराशा
4.करुणा
5. वेदना
6. सौंदर्यानुभूति की प्रधानता
7. प्रकृति प्रेम
8. मानवतावादी
9. कल्पना की अतिरेकता
10. नवीन शैली और मानवीकरण




डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं।

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